दिल्ली की केएम चंदा ने राष्ट्रीय खेलों के 800 मीटर स्पर्धा में जीता स्वर्ण पदक
पणजी, 3 नवंबर (हि.स.)। चीन में हुए एशियाई खेलों में पदक नहीं मिलने के कारण दिल्ली की मध्यम दूरी की धाविका केएम चंदा इतनी निराश हुईं थीं कि उन्होंने वहां क्या हुआ और कैसे हुआ के संबंध में अपने कोच से भी बात नहीं की।
22 वर्षीय खिलाड़ी ने उस स्थिति से बाहर निकलने और उस निराशा को पीछे छोड़ने के लिए गोवा में जारी 37वें राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने का फैसला किया। गोवा में उन्होंने 1500 मीटर स्पर्धा में रजत पदक जीता और फिर गुरुवार को 2:01.74 मिनट समय के समय के साथ 800 मीटर में स्वर्ण पदक जीत लिया।
चंदा ने कहा, '' मैंने सोचा कि मैं बाहर जाऊंगी और बेहतर महसूस करूंगी। मैं बस दिनचर्या से गुजर रही हूं और ज्यादा जोर नहीं लगा रही हूं। मैंने राष्ट्रीय खेलों को चीन में खराब प्रदर्शन से उबरने के अवसर के रूप में देखा। मैं अपने प्रदर्शन से खुश हूं। मैं 1500 में स्वर्ण नहीं जीत पाने से निराश थीं लेकिन 800 मीटर दौड़ में मैं आश्वस्त थी और यह प्रदर्शन में दिखा।''
लेकिन चीन में हुए हांग्झोऊ एशियाई खेलों की निराशा चंदा को अब भी परेशान करती है। उन्हें हांग्झोऊ में महिलाओं की 800 मीटर स्पर्धा में पदक के दावेदारों में से एक माना जा रहा था। उनका व्यक्तिगत और सीज़न का सर्वश्रेष्ठ समय 2:01.58 सेकंड था। यह इस साल किसी भारतीय महिला धावक द्वारा निकाला गया सबसे तेज समय था। लेकिन चीजें योजना के मुताबिक नहीं हुईं और इसका उन पर मानसिक असर पड़ा।
इसके बाद फिर उन्होंने कुछ समय के लिए खुद को कमरे में सीमित कर लिया। उन्होंने कहा, ''मैंने इस बारे में किसी से बात नहीं करना पसंद किया कि मैं एशियाई खेलों में पदक जीतने में कैसे असफल रही।''
हांग्झोऊ एशियाई खेलों के अपने अनुभव को याद करते हुए, चंदा ने कहा कि जैसे-जैसे दौड़ आगे बढ़ी, वह मध्यम दूरी की दौड़ की कठिन रणनीति के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम नहीं हो पाई और पदक की दौड़ से बाहर हो गई।
उन्होंने कहा, '' मेरी ट्रेनिंग सही रास्ते पर थी। अच्छी तैयारी और चरम फिटनेस के बावजूद, मैं पदक नहीं जीत सकी। मैं चौंक गईं। यह अब भी मुझे चोट पहुंचाती है। ''
मध्य दूरी की दौड़ में आंतरिक लेन के लिए धक्का-मुक्की सहित कठोर रणनीति आम है। चंदा ने कहा कि 800 मीटर फाइनल की शुरुआती लैप के दौरान उन्हें दो बार कोहनी लगी थी और अयोग्य घोषित होने के डर से उन्होंने जवाबी अटैक नहीं किया।
उन्होंने कहा, '' मैंने अन्य धावकों को धक्का नहीं दिया क्योंकि मुझे इसकी सजा मिलने का डर था। अगर मुझे धक्का देने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया होता, तो यह मेरे लिए और भी बुरा होता।''
बैन से बचने के लिए, चंदा दूर चली गई। हालांकि, जैसे ही धावकों ने फिनिश लाइन के लिए जोर लगाना शुरू किया, चंदा जवाब देने में सक्षम नहीं थी। उन्होंने कहा, '' मैं दौड़ पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी। मेरी बॉडी सुन्न हो गया था। मैं सही समय पर आगे नहीं बढ़ पाई।''
चंदा, कल्याण चौधरी के नेतृत्व में कोर ग्रुप के साथ बेंगलुरु में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) परिसर में अभ्यास करती हैं।
राष्ट्रीय खेलों के पदक जीतने से उनका आत्मविश्वास वापस आ गया है, लेकिन अब वह अगले सीजन के लिए ट्रेनिंग शुरू करने से पहले कुछ समय आराम करना चाहती है।
उन्होंने कहा, '' मैं एक हफ्ते का ब्रेक लूंगी और फिर अपने कोच से बात कर अगले साल के लिए रणनीति बनाऊंगी।''
हिन्दुस्थान समाचार/ सुनील