वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने खो खो और उसके खिलाड़ियों का भविष्य किया सुनहरा: निर्मला भाटी
-खो खो छोड़ने के विचार से भारत का प्रतिनिधित्व करने तक के संघर्ष का नाम है निर्मला भाटी
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (हि.स.)। भारतीय संस्कृति में गहरी जड़ों वाला एक स्वदेशी खेल 'खो खो', जो अब अत्याधुनिक खेल विज्ञान से लैस होकर वैश्विक मंच पर अपनी जगह मजबूती से बना रहा है। इस खेल की होनहार खिलाड़ी राजस्थान की मूल निवासी और भारतीय टीम की सदस्य 25 वर्षीय निर्मला भाटी ने एक जुनून से इस खेल को काफी करीब से बदलते देखा है।
खो-खो के पारंपरिक से सुविधा संपन्न खेल बनने को लेकर निर्मला का कहना है कि, मैं बचपन में ही खो खो से जुड़ी थी और जब भी हम सभी बच्चे सड़कों पर खेलने के लिए इकट्ठा होते थे, तो मैं हमेशा खो खो को प्राथमिकता देती थी। हालांकि स्ट्रीट गेम्स से पेशेवर खेलों तक का उनका सफर आसान नहीं रहा। अभी कुछ साल पहले खो-खो खिलाड़ियों को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ा था। निर्मला ने कहा कि खो खो के खेल में कोई करियर नहीं था या नौकरियों के लिए कई विकल्प नहीं थे इसलिए मैंने खेल छोड़ने पर भी विचार किया।
हालांकि 2017 में स्थिति बदलनी शुरू हुई जब भारतीय खो खो महासंघ के भीतर नए नेतृत्व ने खेल में एक नया दृष्टिकोण लाया। अब, जब भारत पहली बार खो-खो विश्व कप की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है, तो गर्व और उत्साह की स्पष्ट भावना है।
खो खो में नए विकास और बेहतर एथलीट बनने के लिए अपनी जीवनशैली को कैसे बदला जाए, इस पर निर्मला ने कहा, मानव रचना यूनिवर्सिटी में एक कैंप लगा था, उससे पहले हमें स्पोर्ट्स साइंस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हमें पता था कि हमें दौड़ना है इसलिए हम सिर्फ उसी पर फोकस करते थे, लेकिन जैसे-जैसे कैंप आगे बढ़ता गया, हमें बहुत कुछ पता चला। इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने प्रशिक्षण विधियों में क्रांति ला दी है।
निर्मला ने कहा, अब हम दौड़ने के साथ प्रॉपर मैथड से कंप्लीट वर्कआउट करते हैं। कांप में एक दिनचर्या निर्धारित की गई। हमारे परीक्षण के साथ हमारी कमजोरियों को समझने में मदद की गई। कैसे दौड़ना है, हमारी कैलोरी का सेवन, क्या करें और क्या न करें.. सब बताया गया। यदि शिविर न होता तो एक खिलाड़ी के रूप में खुद में हम सुधार नहीं कर पाते।
पारंपरिक कौशल और आधुनिक विज्ञान का यह मिश्रण खो खो को एक नए युग में ले जा रहा है, जहां निर्मला जैसे खिलाड़ी सिर्फ एथलीट नहीं हैं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से प्रशिक्षित पेशेवर हैं।
महत्वाकांक्षी खिलाड़ियों को, निर्मला एक सरल लेकिन शक्तिशाली संदेश देती हैं। वह कहती हैं, हमें बस एक बार खो खो को अपनाने की जरूरत है। उसके बाद, महासंघ आपको अपना लेगा।
इन शब्दों में एक ऐसे खेल का वादा छिपा है जो सिर्फ खेल जीतने के बारे में नहीं है, बल्कि परंपरा और नवीनता के सही मिश्रण के माध्यम से जीवन को बदलने के बारे में है।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे