महादेव की नगरी में कैसे होती है फूलों की खेती,खेतों से मंडी तक कैसे पहुंचते हैं ये फूल, पढ़े ये खास रिपोर्ट

 

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक! मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक! हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता ने फूल, फूलों की खेती और उन्हें करने वालों को अमर कर दिया। फूलों के सभी उपयोगों की मालाओं को गूंध के बनी इस कविता की माला में फूल और जीवन का सार छुपा हुआ है। इसी सार को जानने Live VNS की टीम फूलों की खेती के लिए मशहूर फुलवरिया गांव पहुंची, जहां माली फूलों को तोड़ने में लगे थे।

फूलों की खेती कैसे की जाती है और कैसी सावधानियां बरती जाती है और उसके बाद कैसे खेत से फूल मंडी तक पहुंचता है। इन सबके विषय में हमने विस्तार से जानकारी ली, पेश है फूल की खेती से लेकर उसके व्यापार तक पर विशेष रिपोर्ट

जहाँ तक नजरे दौड़ाएंगे आपको फूल ही फूल दिखाई देंगे। वाराणसी के कई इलाकों में फूलों की खेती की जाती है। वहीं  बनारस के फुलवरिया में फूलों की खेती की जाती है, जिसमें कुंद, श्रीकांति, गुलाब, गेंदा,टेंगरी के फूलों की खेती बहुतायत से की जाती है। आपको बता दें कि फूल की खेती के लिए किसान नर्सरी से फूल की बीजों को खरीदते हैं। उसके बाद बीज के लिए खेत को तैयार करते हैं, जिसके बाद उसमें बीजों को छींटते हैं।लगभग 2 महीने में बीज से निकले पौधों में कलियाँ लगनी शुरू हो जाती है और फूल खिलने लगते हैं। इस बीच किसानों को काफी मेह्नत करनी पड़ती है। खेत की निराई, पौधे की कटाई तब जाकर कहीं फूल का एक पौधा तैयार होता है खिलने के लिए।  

यूँ तो बनारस के आस पास के अलग अलग इलाकों में फूल की खेती की जाती है, जिसमें गेंदा, श्रीकांति और देसी गुलाब की खेती शामिल है। जब फूल तैयार हो जाता है तो उन फूलों को माली मालों में पिरोकर बाजार में बेचने के लिए मंडी में ले जाता है। वहीं, माली को  20 से 25 माला बनाने में करीब 3 घंटे तक का समय लग जाता है।

किसानों का कहना है कि फूल की खेती में मेहनत ज्यादा लगती है। इसकी खेती कुछ लोग खुद की जमीन पर करते हैं तो कुछ लीज पर जमीन लेकर फूलों  की खेती करते हैं। आपको बता दें कि इन फूलों की डिमांड सबसे ज्यादा शादी के सीजन में रहती है। जिसकी वजह से फूल किसानों की आमदनी अच्छी हो जाती है। वहीं किसान ने बताया कि हर फूल बारह महीने नहीं खिलता है। वो अपने सीजन के हिसाब से खिलता है। जहाँ देसी गुलाब का सीजन बारहों महीने का होता है तो वहीँ कुंद सिर्फ जाड़ों में खिलता है। श्रीकांति और गेंदा 2 महीने में ही खिलना शुरू हो जाता है। वहीं बेला सिर्फ चार महीने ही खिलता है।

इसके बाद फूलों का सफर शुरू होता है, जब खेतों से निकल कर फूल की मंडी में किसान अपने फूलों को बेचने के लिए जाते हैं। आपको बता दें कि बनारस के आस पास के किसान वाराणसी के इंग्लिशिया लाइन स्थित या फिर चौक स्थित फूल मंडी में अपने फूलों को बेचने के लिए जाते हैं। जहाँ वो अपने मन मुताबिक दामों पर फूलों को बेचते हैं। वहीं, मंडी के व्यापारियों की माने तो शादियों के सीजन में गेंदे के फूल का डिमांड ज्यादा होता है और सोने के भाव में  बिकता है। वहीँ देसी गुलाब और उसकी पंखुड़ियों की भी  डिमांड रहती है।

तो देखा आप ने जिन फूलों को हम अपने घरों और समारोह आदि में सजाने के लिए ले जाते हैं वो कितना लंबा सफर तय कर के हमारे तक पहुँचते हैं। शादी विवाह में सजने वाले ये फूल बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं। जो अपनी महक और सुंदरता से पूरे माहौल में कहीं ना कहीं अनोखा रंग भर देते हैं।

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