पॉक्सो मामले में पीड़ित बच्चों को तेजी से मिल रहा है इंसाफ

 


नई दिल्ली, 18 दिसंबर (हि.स.)। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) से जुड़े पुराने लंबित मामलों को लेकर देश ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। अदालतों में पॉक्सो मामले अब दर्ज होने की तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ी से निपटाए जा रहे हैं।

पेंडेंसी टू प्रोटेक्शन: अचीविंग द टिपिंग पॉइंट टू जस्टिस फॉर चाइल्ड विक्टिम्स ऑफ सेक्सुअल एब्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 में कुल 80,320 नए मामले दर्ज हुए, जबकि अदालतों ने पुराने और नए मिलाकर 87,754 मामले निपटाए। इससे 109 प्रतिशत की निपटान दर हासिल हुई। यह रिपोर्ट बच्चों के लिए कानूनी कार्रवाई और व्यवहार परिवर्तन केंद्र (सी-लैब), राष्ट्रीय बाल संरक्षण की एक पहल ने तैयार की है। 24 राज्यों में भी निपटान दर 100 प्रतिशत से ऊपर दर्ज की गई।

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि कानूनी काम को तेज करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल सिस्टम का सहारा लिया जाए। इन 600 नई अदालतों के लिए लगभग 1,977 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, जिसे 'निर्भया फंड' से लिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अभी भी पुराने मामले ज्यादा लंबित हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (रिसर्च) के निदेशक पुरुजित प्रहराज ने कहा कि बच्चों को समय पर न्याय दिलाना अब केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि हकीकत बन रहा है। पहली बार भारत में पॉक्सो मामले दर्ज होने से ज्यादा निपटाए जा रहे हैं। न्याय में देरी बच्चों के मानसिक तनाव को बढ़ाती है, इसलिए हमें इस सुधार की रफ्तार को थमने नहीं देना है ताकि हर पीड़ित बच्चे को जल्द इंसाफ मिल सके।

उल्लेखनीय है कि भारत की अदालतों पर अक्सर 'तारीख पे तारीख' का ठप्पा लगता था, लेकिन यह डेटा दिखाता है कि अब सिस्टम केवल मामले दर्ज नहीं कर रहा, बल्कि उन्हें तेज़ी से खत्म भी कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब न्याय समय पर मिलता है, तो अपराधियों में डर बैठता है और पीड़ितों को सही मायने में सुरक्षा मिलती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रद्धा द्विवेदी