बुलंद हौसलों की पिच पर व्हील चेयर क्रिकेट खिलाड़ियों की जुनून की जीत
नई दिल्ली, 09 जनवरी (हि.स.)। कहते हैं मंजिल उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। ये पंक्तियां व्हील चेयर क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए बिल्कुल सही साबित होती दिखाई देती हैं जिनके सपनों के पंख बुलंद हौसलों से लबरेज हैं। कुछ ऐसी ही प्रेरणा देने वाली कहानियां इन दिनों गोवा में चल रहे अंतरराष्ट्रीय पर्पल फेस्ट में आयोजित व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट में देखने को मिल जाएंगे। राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले इन खिलाड़ियों के पास न ही सुविधा है और न ही संसाधन फिर भी इनके जिद और जज्बे के आगे सारी मुश्किलें घुटने टेक देती हैं।
इंदौर के रहने वाले व्हील चेयर क्रिकेट खिलाड़ी अजय यादव पेशे से ऑटो ड्राइवर हैं लेकिन क्रिकेट के लिए हमेशा समय निकाल लेते हैं। पहले सैंडल फैक्टरी में काम किया करते थे लेकिन छुट्टी नहीं मिलने के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी। फिर ऑटो चलाने का काम शुरू किया जिससे वे 15 हजार महीने तक कमा लेते हैं। अपने परिवार के भरण पोषण के लिए जिस तत्परता से ऑटो चलाते हैं वैसे ही क्रिकेट की पिच पर चौके और छक्के भी जड़ते हैं। अजय यादव बताते हैं कि वे ऑटो चलाते समय अपनी कहानी लोगों को भी सुनाते हैं ताकि उनके जैसे दिव्यांग लोगों की क्रिकेट खेलने की दबी चाहत को हवा और हिम्मत मिले। उन्होंने बताया कि दिव्यांग लोगों के लिए तो घर से ग्राउंड तक जाने का सफर बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में सरकार को भी सहायता के लिए आगे आना चाहिए।
भारतीय व्हील चेयर क्रिकेट टीम के कप्तान सोमजीत सिंह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में उन्होंने दस साल पहले व्हील चेयर क्रिकेट की शुरुआत की। बीसीसीआई के तहत दो साल पहले दिव्यांग लोगों के लिए डीसीसीआई दिव्यांग क्रिकेट कमेटी बनी है जो अब इस ओर थोड़ा ध्यान दे रही है। राष्ट्रीय स्तर पर करीब 20 टीमें हैं। गोवा में पहली बार व्हील चेयर क्रिकेट टीम बनी है और इस अंतरराष्ट्रीय पर्पल फेस्ट में भाग ले रही है। उन्होंने बताया कि इस फेस्ट में पहली बार यह टूर्मार्मेंट कराया जा रहा है जिसमें देशभर से आठ टीमें भाग ले रही हैं। सभी खिलाड़ियों की अपनी अपनी संघर्ष की कहानी है। यहां ज्यादातर वो खिलाड़ी हैं जो रोजमर्रा की जरुरतों के लिए मजदूरी करते हैं। कोई फल बेचता है तो कोई ट्यूशन पढ़ाकर अपने लिए क्रिकेट के लिए वक्त निकालता है। सोमजीत ने उम्मीद जताई कि जिस तरह से महिला क्रिकेट टीम को अब लोकप्रियता मिली है उसी तरह से व्हील चेयर क्रिकेट को भी वो ही मान सम्मान मिलेगा, दर्शक मिलेंगे, स्पॉन्सर मिलेंगे।
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के रहने वाले फल विक्रेता गोलू चौधरी ने बताया कि काम के बाद जो भी वक्त मिलता है उसे वे क्रिकेट के स्कूल के मैदान पर प्रैक्टिस करते हैं। वे बताते हैं कि उन्हें यकीन है एक दिन उनका भी नाम क्रिकेट जगत में होगा। इसी तरह मध्यप्रदेश से खेल रहे राहुल भी एक किसान हैं। जिंदगी की तमाम दुश्वारियों के बाद भी अपने सपने को परवाज देने में जुटे हैं। इसी तरह की कुछ कहानी तेलंगाना के अरुण जॉन की है। वे एक हादसे में स्पाइनल चोट के कारण दिव्यांग हुए लेकिन अपने शौक को उन्होंने जारी रखा। वे बताते हैं कि दिव्यांग खिलाड़ियों की चाहत के आगे पैसों की मुसीबतों से लेकर मैदान तक पहुंचने का सफर बहुत मुश्किलों भरा होता है। ऐसे में सरकारी संस्थाओं को भी खिलाड़ियों का हाथ थामने और उनका हौसला बढ़ाने के लिए आगे आना चाहिए।
इन खेलों के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ प्रणव गाउंकर भी बताते हैं कि जिंदगी की कई चोट के बाद अब खेल के मैदान में गिरने और चोटिल होने पर भी वे भी उसकी परवाह किए बगैर खेलना जारी रखते हैं। शायद यही इनकी लगन है जो न केवल इनकी कमियों खत्म करती है बल्कि प्रेरित भी करती है।
हिन्दुस्थान समाचार / विजयलक्ष्मी/प्रभात