पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने तिरुपति बालाजी के प्रसाद में मिलावट पर जतायी चिंता

 




- बीएचयू में जैविक कृषि और पंचगव्य चिकित्सा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का किया उद्घाटन

- हमें गोवंश को प्राचीन काल की तरह जीवन शैली में लाने की जरूरत : रामनाथ कोविंद

वाराणसी, 21 सितंबर (हि.स.)। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी इस्तेमाल किए जाने को बेहद चिंताजनक बताया है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं में प्रसाद को लेकर जो श्रद्धा होती है अब उसमें शंका उत्पन्न हो गई है। ये देश के हर मंदिर की कहानी हो सकती है। हर तीर्थ स्थल में ऐसी मिलावट हो सकती है। सनातन हिंदू धर्म के अनुसार ये बहुत बड़ा पाप है। यह एक विचारणीय विषय है।

पूर्व राष्ट्रपति कोविंद शनिवार को बीएचयू के कृषि शताब्दी सभागार में भारतीय गाय, जैविक कृषि एवं पंचगव्य चिकित्सा विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे बीएचयू के आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग और नागपुर के देवलापार स्थित गो-विज्ञान अनुसंधान केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित गोष्ठी में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि शुक्रवार रात मेरे कुछ सहयोगी श्री काशी विश्वनाथ धाम गए थे। रात में मुझे बाबा का प्रसादम दिया तो मेरे मन में तिरुमाला की घटना याद आई और मेरे मन में थोड़ा खटका। मैंने बाबा विश्वनाथ से कान पकड़कर माफी मांगी कि इस बार मैं आपका दर्शन नहीं कर पाया लेकिन बाबा विश्वनाथ के प्रसादम में हर किसी का अटूट भरोसा और श्रद्धा है।

पूर्व राष्ट्रपति ने संगोष्ठी के विषय का उल्लेख कर कहा कि आदिकाल से भारतीय कृषि की आधारशिला गोवंश रही है। ऋग्वेद के एक श्लोक का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि हजारों साल से संस्कृति का केंद्र रही गोवंश आज कचरे के ढेर में पाई जाती है। अपने भूमि में उत्पादन बढ़ाने, रासायनिक कीटनाशक के बढ़ते प्रयोग से गोवंश की उपयोगिता में कमी आई है। इसके कारण खेतों में प्राकृतिक उर्वरता में भी कमी आई है। हमने अपनी उत्पादकता तो बढ़ा ली लेकिन अब इसके उपभोग की कीमत चुका रहे है। हमने अपने बचपन में कैंसर का नाम नहीं सुना था लेकिन आज कैंसर के मरीज हर जगह हैं।

उन्होंने कहा कि हमें गो वंश को प्राचीन काल की तरह जीवन शैली में लाने की जरूरत है। इसके लिए मुहिम और जनजागरण चलाने का आह्वान कर उन्होंने कहा कि सरकार पर निर्भरता कम से कम होनी चाहिए। गोवंश हर घर में होनी चाहिए। खासकर गांवों में रह रहे संयुक्त परिवार में अवश्य होनी चाहिए। देश के 25 करोड़ संयुक्त परिवार में 25 करोड़ गोवंश होना चाहिए। रासायनिक खेती की जगह हमें जैविक और पारम्परिक खेती को अपनाना होगा। इसके लिए हमें अपने ही एक खेत से इसकी शुरुआत करनी है। इसके बाद आसपास के गांवों में भी किसानों को इसके लिए जागरूक करना होगा।

गोष्ठी में प्रदेश के राज्यमंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र 'दयालु', राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय गौ-सेवा प्रमुख अजित महापात्रा, पूर्व सांसद मेघराज जैन आदि की भी उपस्थिति रही। गोष्ठी में नागपुर के देवलापार स्थित गो-विज्ञान अनुसंधान केंद्र के समन्वयक सुनील मानसिंहका ने अतिथियों का परिचय दिया। बीएचयू आईएमएस के डायरेक्टर प्रो. एसएन संखवार ने स्वागत उद्बोधन दिया। गोष्ठी की शुरुआत महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और भगवान धनवंतरी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुई।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी