साहित्य की विविध विधाओं की शुरुआत बुंदेलखंड से ही हुई : संजय तिवारी
झांसी, 4 अगस्त (हि.स.)। वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में साहित्य की विविध विधाओं की शुरुआत ही बुंदेलखंड से ही हुई।
बीयू के हिंदी विभाग के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड की साहित्यिक परंपरा पर लंबे समय तक अनवरत चर्चा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कोई भी कृति तभी प्रसिद्ध होती है जब उसमें लोक तत्व शामिल हो। उन्होंने कहा कि हिंदी कविता ही नहीं गद्य साहित्य में भी बुंदेलखंड का स्थान अहम है। यदि बुंदेलखंड के साहित्य को अलग कर दें तो हिंदी का साहित्य अधूरा रह जाएगा।
उन्होंने कहा कि गौर करें तो बुंदेलखंड का हर लेखक वीर सैनिक सा दिखता है। बुंदेलखंड की लोक बोली में वह ताकत है जो खास प्रभाव स्थापित करती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे हिंदी का साहित्य और समृद्ध होगा।
राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की जयंती के उपलक्ष्य में हिंदी विभाग के डा वृंदावन लाल वर्मा सभागार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डा रचना विमल ने कहा कि डा वृंदावन लाल वर्मा का लेखन अद्वितीय रहा।
उन्होंने डा वर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी को सुनकर हम बड़े हुए। यह पंक्तियां हमें सतत प्रेरणा देती रहीं। उन्होंने कहा कि लार्ड मैकाले ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने का साजिश रचा। विविध उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि डा वृंदावन लाल वर्मा शब्दों के जादूगर थे। उन्होंने बड़ी खूबसूरती से शिकारी साहित्य का सृजन और वर्णन किया है। उन्होंने सभी साहित्यकारों से डा वृंदावन लाल वर्मा के आदर्शो को शिद्दत से आत्मसात करने का आह्वान किया।
हिंदी गद्य साहित्य के विकास में बुंदेलखंड का योगदान विषयक दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो चंदन कुमार ने कहा कि
हिंदी के बड़े साहित्यकार औपचारिक हिंदी शिक्षण से मुक्त रहें। आखिर क्या कारण है कि एक साहित्यकार की दृष्टि सत्ता के प्रभाव से ग्रस्त हो जाती है। उन्होंने कहा कि हिंदी के बोध को रागात्मक और एकात्म बनाने में उप भाषाओं का अहम योगदान रहा है। ग्रियर्सन ने भारत में भाषा और बोली का अजीबोगरीब पेंच फंसाया जो आज भी जारी है। हिंदी जिन शब्दावली में नायकत्व को रचती है उसमें बुंदेलखंड का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। हिंदी गद्य का उत्साह यमुना के पार कैसे गायब हो गया यह प्रश्न भी विचारणीय है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की जिन्होंने पैरोकारी की उनमें से अधिकांश अहिंदी भाषी थे। इस तथ्य को ध्यान में रखें। उन्होंने मस्तानी पर साहित्य क्षेत्र में काम करने का सुझाव दिया। राष्ट्रीयता के विकास में मुस्लिम रचनात्मकता के योगदान पर भी काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि साहित्य को सम्यक दृष्टि से रचिए।
वर्धा से आए डा अवधेश कुमार शुक्ल ने केदारनाथ अग्रवाल और नागार्जुन के संबंधों को रेखांकित करने वाली एक रचना सुनाई। उन्होंने साहित्यकार केदारनाथ अग्रवाल की किसान की दशा को रेखांकित करती एक रचना का भी उल्लेख किया। उन्होंने बुंदेलखंड के साहित्यकारों की रचनाओं खासकर नाटकों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड के अनेक रचनाकार देश के लोगों में राष्ट्र प्रेम और स्वतंत्रता का भाव भरने में लगे थे। उन्होंने कहा कि ऐतिहासि सामाजिक उपन्यास और कहानियां लिखने में डा वृंदावन लाल वर्मा का कोई सानी नहीं है।
छपरा से आए प्रो सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि विविध लोक भाषाओं के साहित्य से ही हिन्दी समृद्ध हुई है। उन्होंने मैथिली शरण गुप्त की रचनाओं की सर्व ग्राह्यता को भी रेखांकित किया। उन्होंने पीड़ा भरे शब्दों में कहा कि लोक साहित्य के साथ न्याय नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि अपनी जमीन और संस्कृति से जुड़ने की कोशिश होनी चाहिए। उन्होंने कुछ कहानियों के बहाने डा वृंदावन लाल वर्मा के कथा दृष्टि का भी उल्लेख किया।
डा महेंद्र प्रजापति ने कहा कि गोपाल राय ने बड़ी तन्मयता से डा वृंदावन लाल वर्मा पर लिखा है। उन्होंने डा वृंदावन लाल वर्मा और सियाराम शरण गुप्त की कहानियों का उल्लेख कर उनके कथ्य और शिल्प को अनुपम बताया।
दिल्ली से आए डा गोपेश्वर दत्त पाण्डेय ने कहा कि हिंदी गद्य के विकास में व्यंग्य विधा के माध्यम से हरिशंकर परसाई ने अद्वितीय योगदान दिया। परसाई जी से पूर्व हम व्यंग्य को निबंध में गिनते थे। राष्ट्र की जनता की चिंताओं को व्यंग्य से जोड़कर परसाई जी ने अनूठा कार्य किया। उनकी व्यंग्य रचनाएं आम आदमी की कुंठाओं को स्वर देती हैं। हिंदी साहित्य के विकास में बुंदेलखंड की धरती का अतुलनीय योगदान है।
डा बलजीत श्रीवास्तव ने कहा कि बुंदेलखंड की धरा ने अनेक रचनाकारों को जन्म दिया। उन्होंने सियाराम शरण गुप्त की रचनाओं और उनकी विशेषताओं का प्रमुखता से उल्लेख किया।
डा विनोद कुमार द्विवेदी ने कहा कि हिंदी गद्य साहित्य के विकास में डा वृंदावन वर्मा का अविस्मरणीय योगदान रहा। उन्होंने मैत्रेयी पुष्पा की रचनाओं की विशेषताओं का उल्लेख किया।
कला संकाय अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी साहित्यकारों और विशेषज्ञों का स्वागत किया। डा प्रेमलता ने भी सबका स्वागत किया।
इस कार्यक्रम में डा नीति शास्त्री, डा अचला पाण्डेय, साहित्यकार प्रमोद अग्रवाल, डा श्रीहरि त्रिपाठी, डा प्रेमलता, डा सुनीता वर्मा, डा सुधा दीक्षित, डा द्युतिमालिनी, डा पुनीत श्रीवास्तव, डा राघवेन्द्र दीक्षित, उमेश शुक्ल, डा अजय कुमार गुप्त, डा पवन अग्रवाल, डा बीवी त्रिपाठी,डा जेपी पाण्डेय, डा विपिन समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। सभी अतिथियों को सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया / बृजनंदन यादव