पं. विद्यानिवास मिश्र का लेखन केवल साहित्य नहीं, बल्कि भारत-बोध की एक सशक्त धारा : रामबहादुर राय
- आईजीएनसीए न्यास अध्यक्ष बोले—हिन्दू धर्म में संस्थाएं है लेकिन हिन्दू धर्म संस्थागत धर्म नही
- पंडित विद्यानिवास मिश्र की जन्मशती पर बीएचयू में राष्ट्रीय संगोष्ठी
वाराणसी, 17 दिसंबर (हि.स.)। प्रख्यात भाषाविद् एवं हिंदी साहित्यकार पद्म भूषण पंडित विद्यानिवास मिश्र की जन्मशती के अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) की पहल पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “भारत बोध: स्वरूप तथा आयाम” का शुभारंभ बुधवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में हुआ। संगोष्ठी का आयोजन बीएचयू के मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र सभागार में किया गया है। संगोष्ठी का उद्घाटन आईजीएनसीए न्यास अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार पद्म भूषण रामबहादुर राय, मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के कुलाधिपति डॉ अच्युतानंद मिश्र, विद्याश्री न्यास के सचिव डॉ दयानिधि मिश्र तथा आईजीएनसीए के संकाय प्रमुख प्रो. रमेशचंद्र गौड़ ने संयुक्त रूप से किया।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और पद्म भूषण राम बहादुर राय ने पंडित विद्यानिवास मिश्र के लेखों और पुस्तक के जरिए उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को रेखांकित किया। उन्होंने पं. विद्यानिवास मिश्र के साथ अपने संबधों और संस्मरणों का खास तौर पर उल्लेख कर कहा कि आपातकाल के दौर में 16 महीने जेल में गुजारने के बाद उनसे मैं आगरा में मिला था। उस दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ कार्य करने वालों को लोग भूत प्रेत की तरह भगा देते थे।
वर्ष 1979 में पंडित मिश्र की लिखित एक पुस्तक के कुछ लाइनों को पढ़कर सुनाते हुए वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि 'पुस्तक कैसे लिख गई' मुझे खुद अचरज होता है। उन्होंने कहा कि भारत आज जिस बात की तलाश कर रहा है इसके सूत्र इस पुस्तक में है। ज्ञान का पूरा भंडार इस पुस्तक में है।
रामबहादुर राय ने कहा कि विद्यानिवास जी का लेखन केवल साहित्य नहीं, बल्कि भारत-बोध की एक सशक्त धारा है। आज ही एक अखबार के स्पीकिंग ट्री कॉलम में प्रकाशित पतंजलि योग सूत्र पर आधारित लेख का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जहां आधुनिक विज्ञान और आइंस्टीन की सीमाएं समाप्त होती हैं, वहीं भारतीय दर्शन, विशेषकर पतंजलि के सूत्र, आगे का मार्ग दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दू,हिन्दुत्व और भारत बोध पर बदलते विश्व में अपने को जाने। हिन्दू धर्म में संस्थाएं है लेकिन हिन्दू धर्म संस्थागत धर्म नही है।
संगोष्ठी के विषय भारत बोध का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि 2025 में देश में एक समन्वय की दृष्टि पैदा हुई है। पुराण और आर्कियोलॉजिकल सर्वे से नई दृष्टि मिली है। वर्ष 2014 के बाद आर्कियोलॉजिकल के उपकरणों का उपयोग हुआ है। भारत का भविष्य, इतिहास के विस्तृत अतीत को जो जानना चाहते है उन्हें नया आधार मिला है। भारत का विस्तृत इतिहास जानने और समझने का प्रयास करना ही भारत बोध है।
संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि डॉ अच्युतानंद मिश्र ने पंडित विद्यानिवास मिश्र के व्यक्तित्व को सुसंस्कृत और गहरे चिंतन से परिपूर्ण बताया। उनका कहना था कि पंडित मिश्र के लेखन में भारतीयता का गहरा बोध था। डॉ. मिश्र ने कहा कि जब तक राष्ट्र की चिंता करने वाले, युवाओं में देशप्रेम जगाने वाले ऐसे चिंतक समाज में नहीं होंगे, तब तक सशक्त युवा समाज का निर्माण संभव नहीं है। यही बात पंडित विद्यानिवास के विचारों में उन्हें सबसे अधिक प्रभावशाली लगी। उन्होंने कहा कि अपने दौर के अनेक बड़े आचार्यों के बीच विद्यानिवास जी की विशेषता यह थी कि वे विद्वत्ता से आगे बढ़कर स्पष्ट कहते थे- देश की रक्षा पहले होगी, तभी राष्ट्र और युवाओं का भविष्य सुरक्षित होगा।
मुख्य अतिथि ने कहा कि ऐसे महान चिंतकों का आशीर्वाद उन्हें मिला है और आज अनेक लेखकों को स्मरण करते हुए पं. विद्यानिवास जी का एक प्रसिद्ध लेख विशेष रूप से याद आता है। विद्यानिवास जी ने मेरे राम का मुकुट भींग रहा लेख में अपने आसपास के ग्रामीण संस्कृति का जिक्र किया है। वे परिवार से गहराई से जुड़े थे, मातृभाषा भोजपुरी में संवाद करते थे और आवश्यकता अनुसार अन्य भाषाओं का भी प्रयोग करते थे। उनके लेखों में ग्रामीण संस्कृति, पारिवारिक भाषा, व्यवहार और जीवन मूल्यों का व्यापक चित्रण मिलता है। कुल मिलाकर, किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का सही मूल्यांकन उसके घर, परिवार, सामाजिक परिवेश, गुरुओं और उसके समय के समाज को समझे बिना संभव नहीं है।
संगोष्ठी के दौरान बीज-भाषण में डॉ दयानिधि मिश्र ने पंडित विद्यानिवास मिश्र के साहित्यिक योगदान और उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि पंडित मिश्र का लेखन भारतीय संस्कृति और साहित्य को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभा रहा है।
संगोष्ठी की शुरुआत में आईजीएनसीए के संकाय प्रमुख प्रो. रमेशचंद्र गौड़ ने स्वागत वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने केन्द्र के कार्यो का खासतौर पर उल्लेख किया। संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामसुधार सिंह और धन्यवाद ज्ञापन केन्द्र के क्षेत्रीय निदेशक अभिजीत दीक्षित ने किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी