संघ समाज में परिवर्तन लाने के लिए एक जीवंत संगठन: दत्तात्रेय होसबले

 




















- गोरखपुर में 'संघ की 100 वर्ष की यात्रा एवं भविष्य की दिशा' विषय पर जन गोष्ठी गोरखपुर, 17 दिसंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने आज गोरखपुर में 'संघ की 100 वर्ष की यात्रा एवं भविष्य की दिशा' विषयक जन गोष्ठी में सारगर्भित तरीके से संघ के गठन के औचित्य से लेकर भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा संघ समाज में परिवर्तन लाने के लिए एक जीवंत संगठन है और संगठन का कार्य निरंतर चलना चाहिए, इसीलिए 'शाखा' की पद्धति विकसित की गई है।

संबोधन से पहले संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले सहित अतिथियों ने भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्चन के साथ गोष्ठी का शुभारंभ किया। संघ शताब्दी वर्ष के निमित्त आयोजित इस गोष्ठी में मुख्य वक्ता संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा देश के स्वाधीनता संघर्ष के कई नायकों को तो हम जानते हैं, लेकिन अनेक ऐसे परिवार भी हैं, जिन्हें इतिहास ने भुला दिया। दुनिया को यह बताना आवश्यक है कि हमारे साथ क्या हुआ, जिस प्रकार कई देशों ने 'होलोकास्ट म्यूजियम' बनाए हैं, उसी भाव को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का निर्णय लिया है।

सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए धर्म रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी और उनके शिष्यों के बलिदान का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि गुरु महाराज गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों को निर्दयतापूर्वक दीवारों में चुनवा दिया गया पर उन्होंने धर्म नहीं छोड़ा। भारत ने स्वाधीनता के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी, जिसमें जन्मजात देशभक्त डॉ. हेडगेवारजी ने भी भूमिका निभाई। उनके मन में यह विचार आया कि अंग्रेज तो चले जाएंगे, पर क्या केवल उनका जाना ही वास्तविक स्वतंत्रता होगी? इसी प्रश्न के उत्तर के रूप में संघ की स्थापना हुई।

उन्होंने कहा कि भारत के महापुरुषों ने अपने जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए बलिदान दिए। क्या भारत उन्हें याद रख पाएगा? इसी चिंता और भारत के ज्ञान व मूल्यों से विश्व को परिचित कराने के लिए संघ कार्य कर रहा है। भारत ने दुनिया को 64 कलाएं, व्याकरण, संगीत के सप्त स्वर और वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया। परंतु संपन्न होने के बाद भी समाज आपस में लड़ने लगा। स्वाधीनता के बाद देश को एकता के सूत्र पिरोने का जो सपना उस समय स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था, उसे पूर्ण करने के लिए डॉ. साहब ने संघ की स्थापना की। स्वामी विवेकानंद के शिकागो सम्मेलन से वापस आने पर जब उनसे पूछा गया कि आप हमें क्या सीख देंगे तो उन्होंने कहा कि आप संगठित रहो ।

संगठन और सामाजिक परिवर्तन संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि संगठन का कार्य निरंतर चलना चाहिए, इसीलिए शाखा की पद्धति विकसित की गई। जाति, भाषा, पंथ और ऊंच-नीच के भेदभाव के रहते संगठन संभव नहीं है, इसलिए एक राष्ट्र-एक भाव का होना अनिवार्य है। संघ समाज में परिवर्तन लाने के लिए एक जीवंत संगठन है। समाज का मुख्य मार्ग धर्म है, जिसका अर्थ है- मनुष्य हित, राष्ट्र हित और प्रकृति हित। संघ किसी को विरोधी नहीं मानता, बल्कि सबको साथ लेकर चलने वाला संगठन है। संघ की भविष्य की दिशा-पंच परिवर्तन उन्होंने कहा कि भारत कभी केवल अपने लिए नहीं जिया; जब भी समृद्ध हुआ, विश्व कल्याण के लिए कार्य किया। आज भारत पुनः उठ खड़ा हुआ है। भारत भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बनाकर चलता है। इसी उद्देश्य हेतु संघ ने 'पंच परिवर्तन' के पांच विषयों को समाज के सम्मुख रखा है -

सामाजिक समरसता-समाज से छुआछूत और भेदभाव को समाप्त करना।

पर्यावरण संरक्षण-जल, जमीन और जंगल को बचाना, प्लास्टिक हटाना।

कुटुंब प्रबोधन-परिवारों में संस्कार और संवाद को बढ़ावा देना।

स्वदेशी जीवन शैली-अपनी भाषा, वेशभूषा, भजन और भोजन में भारतीयता को अपनाना।

नागरिक कर्तव्य-समाज के प्रति अपने दायित्वों, नियमों का निर्वहन करना।

गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ उद्यमी चैतराम पहुजा ने कहा कि यह हमारे लिए परम सौभाग्य का विषय है कि हम सभी संघ के 100 वर्ष पूर्ण होने की यात्रा के सहभागी बन रहे हैं। संघ संपूर्ण हिन्दू समाज की चिंता करता है और यह गोष्ठी समाज जागरण की दिशा में एक प्रमुख घटक बनेगी। अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में जन्मे चैतराम जी ने 17 वर्ष की आयु में झेली विभाजन की पीड़ा और अपने सगे-संबंधियों के कष्टों को व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा दुर्भाग्य किसी दुश्मन देश को भी न मिले और ऐसी विभीषिका का पुन: कभी न हो।

कार्यक्रम का संचालन विभाग कार्यवाह संजय व आभार ज्ञापन अरुण मल्ल ने किया। गोष्ठी में क्षेत्र प्रचारक अनिल, प्रांत प्रचारक रमेश, सह प्रांत प्रचारक सुरजीत, हरे कृष्ण, संकर्षण, ईश्वर शरण विश्वकर्मा, सुशील, विभाग प्रचारक अजय नारायण सहित विभिन्न शिक्षण संस्थानों के प्रबंधक, प्राचार्य, अध्यापक, अधिवक्ता, व्यवसायी, गोरखपुर विश्वविद्यालय व तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, डॉक्टर आदि उपस्थित रहे। वंदे मातरम के साथ समापन हुआ।------------------------

हिन्दुस्थान समाचार / प्रिंस पाण्डेय