सूर्य का उत्तरायण होना और संक्रांति दो अलग-अलग तथ्य

 


- पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने पर आधारित है मकर संक्रांति का पर्व

भोपाल, 13 जनवरी (हि.स.)। देशभर में सूर्य की आराधना से जुड़ा पर्व दक्षिण में पोंगल, पूर्व में बिहु तो मध्यभारत में मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हो जाता है, लेकिन वास्तव में अब ऐसा नहीं होता है। सूर्य उत्तरायण होना और संक्रांति दो अलग-अलग तथ्य है। हजारों साल पहले मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हुआ करता था, इसलिये यह बात अब तक प्रचलित है। यह जानकारी नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने दी।

उन्होंने शनिवार को मकर संक्रांति पर्व के वैज्ञानिक पक्ष की जानकारी देने के उद्देश्य से सूर्य का साइंस कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे शामिल हुए। कार्यक्रम में सारिका ने बताया कि वैज्ञानिक रूप से सूर्य गत 22 दिसम्बर को प्रात: 8 बजकर 57 मिनट पर उत्तरायण हो चुका है। उस समय सूर्य मकर रेखा पर था। इसके बाद दिन की अवधि बढ़ने लगी है।

उन्होंने बताया कि संक्रांति का अर्थ सूर्य का एक तारामंडल से दूसरे तारामंडल में पहुंचने की घटना है। सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती पृथ्वी एक साल में 360 डिग्री घूमती है। इस दौरान पृथ्वी के आगे बढ़ने से सूर्य के पीछे दिखने वाला तारामंडल बदलता जाता है। जब सूर्य धनु तारामंडल छोड़ कर मकर तारामंडल में प्रवेश करता दिखता है, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इस वर्ष मान्यता के अनुसार यह 15 जनवरी को होने जा रहा है।

सारिका ने बताया कि अभी से लगभग 1800-2000 वर्ष पूर्व मकर संक्रांति 22 दिसंबर के आसपास मानी जाती थी। उस समय संक्रांति और सूर्य उत्तरायण एक साथ होते थे। इसी गति और समय अन्तराल के बढ़ते क्रम के कारण यह संक्रांति अब 14-15 जनवरी तक आ गई है। लगभग 80 से 100 वर्ष में यह संक्रांति काल एक दिन बढ़ जाता है। एक गणना के अनुसार एक साल में संक्रांति नौ मिनट आगे बढ़ जाती है तथा 400 साल में औसत रूप से 5.5 दिन आगे बढ़ जाती है।

उन्होंने कहा कि सूर्य का उत्तरायण 22 दिसम्बर को चुका है, लेकिन पतंग और तिल गुड़ की मान्यता के साथ सूर्य की महिमा को बताने वाले मकर संक्रांति पर्व को सोमवार, 15 जनवरी को पूरे उत्साह के साथ मनाने के लिए तैयार रहें।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/संजीव