50वें खजुराहो नृत्य समारोह के छठवें दिन हुआ विविध कलाओं का संगम

 




- सांस्कृतिक सरोकारों की शीतलता में दमका पुरखों की विरासत के सच्चे पहरेदारों का हुनर

भोपाल, 25 फरवरी (हि.स.)। भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों के गुरु-प्रशिक्षक, नर्तक, कला मर्मज्ञ और कलानुरागियों के महाकुंभ 50वां खजुराहो नृत्य समारोह के छठवें दिन भी विविध कलाओं का संगम देखने को मिला। सुबह का आगाज जहां कला के अंतर्संबंधों को जानने से हुआ तो शाम को कथक नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों को मुग्ध कर दिया। नृत्य का यह सिलसिला लगभग अपने अंतिम पायदान तक पहुंच चुका है। सांस्कृतिक सरोकारों की शीतल छाया में पुरखों की विरासत के सच्चे पहरेदारों ने अपनी साधना से समारोह के स्वर्णिम वर्ष को सार्थक कर दिया है। परम्पराओं और प्रयोगों की साझेदारी ने खजुराहो नृत्य समारोह के मंच पर भारतीय संस्कृति की चमक और भी दमक उठी है।

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में यह अंतरराष्ट्रीय आयोजन 20 से 26 फरवरी तक किया जा रहा है। खजुराहो नृत्य समारोह के छठवें दिन रविवार को उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत भिसे ने आमंत्रित कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।

समारोह में रविवार की खूबसूरत शाम में नृत्य का सिलसिला पुणे की प्रेरणा देशपांडे के कथक नृत्य से शुरू हुआ। उन्होंने शिव वंदना से नृत्य का आरंभ किया। उसके पश्चात तीनताल में शुद्ध नृत्य की प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने कुछ तोड़े, टुकड़े, परन आदि की पेशकश दी। नृत्य का समापन उन्होंने रामभजन से किया। उनके साथ तबले पर सुप्रीत देशपांडे, सितार पर अनिरुद्ध जोशी, गायन में ऋषिकेश बडवे, हारमोनियम पर यश खड़के और पढंत पर ईश्वरी देशपांडे ने साथ दिया।

देश के प्रसिद्ध कथक गुरु और हाल ही में जिनके निर्देशन में कथक कुंभ में वर्ल्ड रिकॉर्ड बना, ऐसे पंडित राजेन्द्र गंगानी ने भी छठवें दिन समारोह में नृत्य प्रस्तुति देकर चार चांद लगा दिए। उन्होंने शिव स्तुति से नृत्य का शुभारंभ किया। नृत्य भावों से उन्होंने भगवान शिव को साकार करने की कोशिश की। इसके बाद तीन ताल में शुद्ध नृत्य प्रस्तुत करते हुए उन्होंने तोड़े, टुकड़े, परण, उपज का काम दिखाया और कुछ गतों का काम भी दिखाया। नृत्य का समापन उन्होंने राम स्तुति-श्री रामचंद्र कृपालु भजमन पर भाव पूर्ण नृत्य पेश कर किया। उनके साथ तबले पर फतेह सिंह गंगानी, गायन में माधव प्रसाद, पखावज पर आशीष गंगानी और सारंगी पर अमीर खां ने साथ दिया।

तीसरी प्रस्तुति में बैंगलोर से आईं नव्या नटराजन का भरतनाट्यम नृत्य हुआ। उन्होंने वर्णम की प्रस्तुति दी। भरतनाट्यम में वर्णम एक खास चीज है। इस प्रस्तुति में नव्या ने भगवान शिव के तमाम स्वरूपों को नृत्य भावों में पिरोकर पेश किया। उन्होंने नृत्य भावों के साथ लय के ताल मेल और आंगिक संतुलन को बखूबी दिखाया। राग नट कुरिंजी के सुरों और आदिताल में सजी रचना-पापना सम शिवम के साथ रावण द्वारा रचित शिवतांडव के छंदों पर नव्या ने भरतनाट्यम की तैयारी और तेजी दोनों का प्रदर्शन किया। उनके साथ गायन में रघुराम आर, नटवांगम पर डीवी प्रसन्न कुमार, मृदंगम पर पी जनार्दन राव और बांसुरी पर रघुनंदन रामकृष्ण ने साथ दिया।

नृत्य के इस खूबसूरत सिलसिले का समापन बनारस से पधारीं डॉ. विधि नागर और उनके साथियों के कथक नृत्य से हुई। विधि नागर ने तीव्रा ताल में निबद्ध राग गुणकली में ध्रुपद की बंदिश डमरू हर कर बाजे पर बड़े ही ओजपूर्ण ढंग से नृत्य प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में उन्होंने भगवान विश्वनाथ के सौंदर्य को नृत्य भावों में सामने रखा। अगली प्रस्तुति समस्या पूर्ति की थी। इसमें उन्होंने साहित्य और नृत्य का समावेश दिखाया। राग शिवरंजनी की रचना केहि कारन सुंदरी हाथ जरयो के जरिए उन्होंने भाव पेश किया। फिर दरबारी में उन्होंने शुद्ध नृत्य से कथक का तकनीकी पक्ष दिखाया। काफी की ठुमरी - कहा करूं देखो गाड़ी डेट कन्हाई पर भी उन्होंने सोलो नृत्य पेश कर भावाभिनय पेश किया। नृत्य का समापन उन्होंने संलयन्म से किया। इन प्रस्तुतियों में उनके साथ शिखा रमेश, अदिति थपलियाल, अमृत मिश्रा, रागिनी कल्याण और चित्रांशी पाणिकर ने सहयोग किया जबकि विशाल मिश्र ने गायन एवं हारमोनियम, आनंद मिश्र ने तबला, आदित्य दीप ने पखावज सुधीर कुमार ने बांसुरी उमेश मिश्र ने सारंग रनित चटर्जी ने सितार पर साथ दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/प्रभात