sawan 2024 : यहां माता पार्वती के साथ हर रात चौसर खेलने आते हैं भोलेनाथ! ऐसी है इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता
ओंकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित नर्मदा नदी के बीच मन्धाता नाम के द्वीप पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे ॐ के आकार वाले द्वीप पर स्थित है, इसलिए ही इस मंदिर का नाम ‘ओंकारेश्वर’ पड़ा। इस मंदिर का उल्लेख हिन्दू धर्म के अनेक प्राचीन ग्रंथों जैसे कि स्कंद पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत में भी मिलता है। यहां पर भगवान शिव को ओंकारेश्वर और ममलेश्वर दो रूपों में पूजा जाता है।
ओंकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित नर्मदा नदी के बीच मन्धाता नाम के द्वीप पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे ॐ के आकार वाले द्वीप पर स्थित है, इसलिए ही इस मंदिर का नाम ‘ओंकारेश्वर’ पड़ा। इस मंदिर का उल्लेख हिन्दू धर्म के अनेक प्राचीन ग्रंथों जैसे कि स्कंद पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत में भी मिलता है। यहां पर भगवान शिव को ओंकारेश्वर और ममलेश्वर दो रूपों में पूजा जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर मान्यताएं
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर बहुत सी मान्यताएं प्रचलित हैं। इनमें से सबसे प्रमुख मान्यता ये है कि भगवान शिव रात के समय ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में निवास करते हैं। वे यहां आकर रात में विश्राम करते हैं, इसलिए रात में यहां भगवान शिव के लिए बिस्तर लगाया जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर एक अन्य मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में भगवान शिव माता पार्वती के साथ चौसर या चौपड़ खेलते हैं। इसलिए रात्रि के समय यहां पर चौपड़ बिछाई जाती है और गर्भगृह के दरवाजे को बंद कर दिया जाता है। सबसे आश्चर्य की बात ये है कि मंदिर के भीतर रात के समय कोई भी नहीं जा सकता है, फिर भी यहां सुबह चौसर और उसके पासे इस तरह से बिखरे हुए मिलते हैंं, जैसे रात्रि के समय किसी ने यहां चौपड़ खेला हो। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर एक खास मान्यता ये भी है कि ओंकारेश्वर मंदिर में जल चढ़ाए बिना, साधक की सभी तीर्थ यात्राएं अधूरी मानी जाती हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की पौराणिक कथा
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना को लेकर कुछ पौराणिक कथाएं हैं जिनमें से सबसे खास राजा मांधाता से जुड़ी हुई कथा है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में, राजा मांधाता बहुत धार्मिक और शक्तिशाली शासक थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे. एक बार उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए ओंकार पर्वत पर स्थित नर्मदा नदी के किनारे कठोर तपस्या आरंभ की। उनकी तपस्या इतनी गहन और कठिन थी कि उसका प्रभाव संपूर्ण ब्रह्मांड पर पड़ा।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए और उनसे दो वरदान मांगने को कहा। राजा मांधाता ने पहले वरदान में भगवान शिव से इसी पवित्र स्थान पर सदैव विराजमान रहकर अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने को कहा। अपने दूसरा वरदान उन्होंने ये मांगा कि इस पवित्र स्थान के नाम के साथ मेरा नाम भी हमेशा के लिए आपसे जुड़ा रहे, ताकि लोग मुझे याद रखें।
तब भगवान शिव ने राजा मांधाता के दोनों वरदान को पूर्ण किया और उस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। इसलिए ही माना जाता है कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है, यानी इसका निर्माण किसी मनुष्य ने नहीं करवाया, बल्कि ये स्वयं प्रकट हुआ है। तब से भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में इस पवित्र स्थान पर विराजमान हैं। और इस क्षेत्र को मांधाता के नाम से जाना जाता है।
धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में ओंकारेश्वर मंदिर का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। माना जाता है कि ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने और नर्मदा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पवित्र स्थल पर ध्यान और पूजा करने से मन को शांति और आध्यात्मिक बल मिलता है। यह स्थान ध्यान और साधना के लिए बहुत शानदार है। ओंकारेश्वर में स्थित ज्योतिर्लिंग से दिव्य ऊर्जा का संचार होता है। यहां की सकारात्मक ऊर्जा से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।