(अपडेट) डॉ. कृष्ण गोपाल ने पं. विध्यानिवास मिश्र रचनावली का लोकार्पण किया
नई दिल्ली, 16 नवंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने गुरुवार को एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में साहित्यकार पं. विध्यानिवास मिश्र के 21 खंडों में प्रकाशित ‘पं. विध्यानिवास मिश्र रचनावली” का लोकार्पण किया। डॉ. दयानिधि मिश्र ने रचनावली का संपादन किया है।
इस मौके पर कृष्ण गोपाल ने कहा कि पं. विध्यानिवास मिश्र के लेखन का केंद्र बिन्दू भारत था। उन्होंने कहा कि भारतीयता एक निरंतरता का नाम है। पश्चिम की राष्ट्रवाद की अवधारणा को भारत से अलग बताते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिम का केंद्र बिन्दू मनुष्य है जबकि भारत का केंद्र बिन्दू ईश्वर है। भारतीयता सबको लेकर चलती है और वह किसी से भेद नहीं करती है। उन्होंने कबीर, रामानुज और गुरु गोविंद सिंह का उदाहरण देते हुए कहा कि वह संपूर्ण भारत के हैं।
भारत भूमि के प्रति भक्ति और कृतज्ञता दर्शाने के लिए उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ाई करने वाली दुनिया की पहली महिला संतोष यादव और स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के संस्मरणों को साझा किया।
सह-सरकार्यवाह ने मोबाइल और इंटरनेट के युग में लोगों की पुस्तकों से दूरी बनाने पर चिंता जताते हुए कहा कि आज घरों में प्रवेश करने पर ग्रंथ और पुस्तकें दिखाई नहीं देते हैं। उनका स्थान अन्य साजो सामान ने ले लिया है। साथ ही उन्होंने मातृभाषा के अध्ययन पर भी जोर दिया।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ श्रेत्र के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि ने कहा कि पं. विध्यानिवास मिश्र सांस्कृतिक चेतना के उद्गाता थे। पुराणों को मिथक बताये जाने पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा कि यह हमारा इतिहास हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम भाषा के आवरण को हटाकर यदि इनका अध्ययन करेंगे तो यह लोक कल्याणकारी सिद्द होंगे।
उन्होंने विश्व कल्याण के लिए भारतमाता की भक्ति की जरूरत पर बल दिया और कहा कि भारत के समर्थ होने पर ही विश्व कल्याण संभव है। इस कार्य में पं. विध्यानिवास मिश्र का वागमय दिशा दिखाने का कार्य करेगा।
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने ‘पं. विध्यानिवास मिश्र रचनावली’ को शोधार्थी और साहित्यकारों के लिए उपयोगी बताते हुए कहा कि यह ग्रंथ उनके लिए प्रेरणा का कार्य करेगा। उन्होंने कहा कि पंडित जी के लेखन में परंपरा, परिवर्तन और आधुनिकता तीनों मिलते हैं।
‘पं. विध्यानिवास मिश्र रचनावली” के खंडों की संरचना - प्रथम खंड अभी अभी हूं अभी नहीं है। इसके बाद क्रमश, जोड़ने जुड़ने की राह, दादुर वक्ता भए, आत्मीयता की तलाश, तेरे अनगिन कितने चेहरे, राम और कृष्ण: जन-जन के अपने, नमोवांक प्रशास्महे, हिंदी साहित्य की काल निचोड़ प्रतिभा, तुम दिया हम बाती, साहित्य और लोक की पहचान, सहृदय हृदय संवाद, भाषा चिंतन, आहत पर अप्रतिहत हिंदी, भारतीय परंपरा ओर भारत, हिंदू होने का मतलब, संस्कृति संवाद, मुकुर निज पानी, परस्पर, पाणिनियन भाषाविज्ञान, वक् और रस और भारतीय विचार और संस्कृति है।
हिन्दुस्थान समाचार/सुशील
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