भारत के मूल में है सेक्युलरिज्म और सस्टेनेबल डेवलपमेंट : मोहन भागवत

 






अंग्रेजों की बनाई गई व्यवस्था को बदलने की जरूरत : भागवत

ग्रेटर नोएडा, 26 नवम्बर(हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत ने रविवार को कहा कि भारत के मूल में सेक्युलरिज्म और सस्टेनेबल डेवलपमेंट है। इन्हीं के जरिए आगे बढ़कर भारत विश्व गुरु बन सकता है। जरूरत पड़ने पर दुनिया को दिशा दिखा सकता है।

श्री भागवत ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने पूरी दुनिया को अपनी शक्ति से अवगत करा दिया है। हमारी दादी और नानी के द्वारा तैयार किए गए कार्य और अन्य नुक्शे ने इस महामारी को पराजित किया। आरएसएस प्रमुख श्री भागवत दो दिन के प्रवास पर नोएडा पहुंचे हैं। यहां पर शारदा विश्वविद्यालय के सभागार में उन्होंने 'स्व आधारित भारत' विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया।

आयुर्वेद की ताकत को दुनिया ने पहचाना

अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया सेक्युलरिज्म और टिकाऊ विकास की बात कर रही है, जबकि भारत युगों से इन्हीं दो महत्वपूर्ण आधारों पर टिका हुआ है। उन्होंने कहा कि विदेश वाले आयुर्वेद और योग को जादू टोना समझते थे,लेकिन अब पूरी दुनिया योग दिवस का आयोजन कर रही है। आयुर्वेद की ताकत को दुनिया ने पहचान लिया है। हमें भी इस ताकत को पहचानना होगा। उन्होंने कहा कि भारत की उन्नति की प्रतीक्षा पूरी दुनिया कर रही है। इसलिए भारत को खुद खड़ा होना होगा।

भारत दुनिया की जरूरत, हम बने हैं, हमें बनाया नहीं गया

उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की जरूरत है। हम बने हैं, हमें बनाया नहीं गया है। हमारा जीवन प्रकृति रूप से सदियों से चल रहा है। भारत प्राकृतिक रूप से चारों तरफ से सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि पूरी दुनिया में राष्ट्र एक लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्पन्न हुए हैं। उसे लक्ष्य को हासिल करने के बाद उनका अवसान हो जाता है। जब इतिहास का जन्म हुआ तो हमें राष्ट्र के रूप में देखा था। हमारा राष्ट्र सनातन है। तब भी विविधता थी। हम तब भी बहुभाषी थे। सभी प्रकार की आबोहवा थी। भारत का प्रयोजन अक्षय दुनिया को इसकी आवश्यकता सदैव है, भारत की यात्रा अनंत है।

सबको पचाकर हम आज भी उपस्थित हैं

सरसंघचालक ने कहा कि अथर्वेद के पृथ्वी सूक्त में कहा गया है कि हम पृथ्वी के पुत्र हैं। सीमा का कोई उल्लेख नहीं था। समृद्धि थी तो बाहर से आने वाले से कोई विवाद नहीं था। सारे विश्व को अपना परिवार मानने वाला विविधतापूर्ण समाज उस समय से लेकर आज तक चल रहा है। उन्होंने कहा शक, कुषाण, हूण, यवन, ब्रिटिश व प पुर्तगाल वाले आए। हमले किये लेकिन सबको पचाकर हम आज भी उपस्थित हैं।

भारत की यात्रा को नियंत्रित करता है 'धर्म'

उन्होंने कहा कि आज का प्रजातंत्र यही है। हमारे मत भिन्न है, लेकिन एक साथ चलेंगे। रास्ते अलग होते हैं, लेकिन सब एक स्थान पर जाते हैं। इसलिए समन्वय से चलो क्योंकि यह देश धर्म परायण है। धर्म प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य निर्धारित करता है। भारत की यात्रा को धर्म नियंत्रित करता है।

वैभव और बल संपन्न चाहिए भारत

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता और सम्पन्नता एक साथ संभव नहीं है। यह दोनों तभी संभव है जब बंधुता होती है। यह अपनापन से आती है। अपनापन ही धर्म है। सारे विश्व में अशांति का कारण ही अपनेपन की कमी है। भारत भी कुछ हजार साल पहले इस भावना के चपेट में आ गया है। मोहन भागवत ने कहा कि वैभव और बल संपन्न भारत चाहिए। सत्य की स्थापना के लिए बल अवश्य चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म के चार आधार पर हमारा आचरण होना चाहिए।

पूजा पद्धति कोई भी हो, लेकिन भारत भक्ति अनिवार्य

उन्होंने कहा कि आपकी पूजा पद्धति कोई भी हो, लेकिन भारत भक्ति अनिवार्य है। भारत की भौगोलिक एकता को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना है। हम कटते चले गए, अब यह सब आगे नहीं होगा। हम भाई हैं, दो भाई हैं लेकिन एक रहेंगे। हमें क्या चाहिए, उसे क्या चाहिए वह मांगते रहे लेकिन हमें आपस में भेद, ऊंच—नीच या छोटा-बड़ा नहीं होना चाहिए। इस काम को सरकार नहीं कर सकती, इसे समाज को करना पड़ेगा।

अंग्रेजों की बनाई गई व्यवस्था को बदलने की जरूरत है : भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत को विकसित करने के लिए व्यवस्था नहीं बनाई थी। उन्होंने व्यवस्था यहां से लूट के लिए बनाई थी। उन्होंने भारतीयों को अपना काम पूरा करने के लिए अनुशासन में रखा। अपना काम चलाने के लिए सड़क, रास्ते और रेल बनाए थे। उनके बनाए सिस्टम में बहुत कमियां हैं। उस सिस्टम को अब तक बदला नहीं गया है। सिस्टम को भारत के 'स्व' के आधार पर बदलने की ज़रूरत है। कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को पूरी जानकारी है। उन्हें बस भारतीयता को समझना है। मतलब, सिस्टम को धीरे-धीरे बदलने की जरूरत है।'

उपभोग पर नियंत्रण से मूल्यों पर होगा नियंत्रण

मोहन भागवत ने कहा, 'देश में विकेंद्रीकृत भरपूर उत्पादन किया जाना चाहिए। उपभोग पर नियंत्रण होना चाहिए। इससे मूल्यों पर नियंत्रण होगा। हमारे पास अपना तकनीकी ज्ञान है। युवाओं के पास टैलेंट की कमी नहीं है। उनके लिए विकेंद्रीकृत उत्पादन, न्यायीय वितरण और नियंत्रित उपभोग कारगर है। अपने प्राचीन ज्ञान को युगानुकूल और बाहरी ज्ञान को देशानूकूल बनाते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है।

हम लक्ष्मी के उपासक हैं, गरीबी के नहीं

उन्होंने कहा कि सबकी न्यूनतम जरूरत पूरी होनी चाहिए। अगर कोई ख़ुद जरूरत पूरी नहीं कर पा रहा है तो उसे दें। केवल अध्यात्म और केवल भौतिकता काम नहीं आती है। इन दोनों आचरण का समन्वय होना चाहिए। किसी के कमाने पर कोई पाबंदी नहीं है लेकिन कमाई का जरूरतमन्द को बांटना चाहिए। हम लक्ष्मी के उपासक हैं, गरीबी के नहीं हैं।'

रूढ़िवाद को बदल दीजिए, अब उसे ढोने की जरूरत नहीं

उन्होंने कहा, 'रूढ़िवाद को बदल दीजिए। अब उसे ढोने की जरूरत नहीं है। यह काम सबको मिलकर करना पड़ेगा। शाश्वत दृष्टि के आधार पर चलना पड़ेगा। नहीं तो आज विकास बहुत तेज़ी से दिखेगा, लेकिन कल प्रकृति का थप्पड़ पड़ेगा और सबकुछ ध्वस्त हो जाएगा। भारत स्वाभाविक रूप से सेल्यूलर है। हम हज़ारों वर्षों से सेल्यूलर हैं। हमारे पूर्वज सेल्यूलर थे। हमें से किसी को सेक्यूलरिज्म की सीख देने की जरूरत नहीं है।'

हिन्दुस्थान समाचार/फरमान

/राजेश