बांग्लादेश पर रिपोर्ट में दावा, सत्ता पलट में अमेरिकी भूमिका, अल्पसंख्यकों का भविष्य खतरे में
नई दिल्ली, 04 सितंबर (हि.स.)। सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लुरलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की हालिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बांग्लादेश में 5 जून के बाद हुए छात्र आंदोलन में अमेरिका का सीधा हाथ था। इसमें कहा गया है कि छात्र आंदोलन से पहले ही बांग्लादेश में अमेरिकी राजनयिकों और दूतों की भागीदारी बढ़ गई थी। साथ ही सत्ता परिवर्तन के बाद अब अल्पसंख्यकों का बांग्लादेश में भविष्य खतरे में है।
सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लुरलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स ने बुधवार को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में बुधवार 4 सितंबर को रिपोर्ट जारी की। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश में अल्पसंख्यक वर्ग और हिंदूओं पर हो रहे अत्याचारों पर विस्तार से जमीनी स्थिति की जानकारी देना था। कार्यक्रम में पूर्व सांसद एवं विशिष्ठ पत्रकार स्वपन दासगुप्ता मुख्य अतिथि थे एवं बीइंग हिंदू इन बांग्लादेश के लेखक और पत्रकार दीप हलदर तथा प्रख्यात पत्रकार एवं लेखक अभिजीत मजूमदार सम्मानित अतिथियों के रुप में कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 05 जून को कोटा मुद्दे पर शुरू हुए प्रदर्शनों ने एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का रूप ले लिया, जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों पर व्यापक रूप से हमले हुए। अमेरिकी डीप स्टेट की भागीदारी ने समस्या की गंभीरता एवं जटिलता का विस्तार दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दीप हलदर ने कहा कि शेख़ हसीना ने बांग्लादेश में हिंदुओं को जो सुरक्षा प्रदान की थी, वह अब समाप्त हो चुकी है। उनके शासनकाल में भी हिंदुओं पर हमले हुए थे और आज उन अल्पसंख्यक हिन्दू परिवारों की सहायता के लिए शायद कोई भी नहीं है। वैश्विक समुदायों को बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों का पर्यवेक्षण करते हुए उनकी परिस्थितियों में सुधार किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न शेख हसीना सरकार के समय में भी हुआ। मदरसा युवाओं के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत फ़ैलाने के संगठन के रूप में कार्य कर रहा है।
कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि अभिजीत मजूमदार ने कहा कि बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति भारत सरकार एवं भारतीय हिन्दू समाज की विफलता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने बीएनपी एवं जमात के अलावा किसी तीसरे विकल्प के विषय में नहीं सोचा और इसी के फलस्वरूप संपूर्ण देश बिखर गया। जिस तरह से भारत ने तालिबान और अफगान सरकार दोनों के साथ मैत्री स्थापित की थी यदि बंगलादेश में भी अन्य विकल्पों पर ध्यान दिया गया होता तो परिस्थिति इतनी नकारात्मक नहीं होती।
डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने कहा कि इस्लामीकरण इतना बढ़ चुका है कि संपूर्ण देश एक ज्वालामुखी के ऊपर बैठा सा प्रतीत हो रहा है जिसमें किसी भी समय विस्फोट हो सकता है। यह बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए अत्यधिक घातक साबित होगा। वर्तमान परिस्थिति से यह स्पष्ट है की बांग्लादेश अल्पसंख्यक हिंदुओं, बौद्धों, जैनों, सिक्खों, ईसाइयों एवं मुसलमानों के जीवन यापन हेतु सर्वथा अनुपयुक्त है। विभिन्न राष्ट्रों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों व संस्थाओं के द्वारा यदि कोई अच्छा कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में हिंदू समेत सभी अल्पसंख्यक बांग्लादेश ससे धीरे-धीरे खत्म हो जायेंगे।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा