(अपडेट) महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में जल्द होने चाहिए फैसले : प्रधानमंत्री
-कहा, न्यायपालिका ने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए भारत की एकता और अखंडता की रक्षा की
नई दिल्ली, 31 अगस्त (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को कहा कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और बच्चों की सुरक्षा आज समाज में एक गंभीर चिंता का विषय है। देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई सख्त कानून बनाए गए हैं। महिलाओं पर अत्याचार से जुड़े मामलों में जितनी जल्दी फैसले होंगे, आधी आबादी को उतना ही सुरक्षा का आश्वासन मिलेगा। प्रधानमंत्री आज नई दिल्ली के भारत मंडपम में जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बाेल रहे थे।
प्रधानमंत्री माेदी ने कहा कि 2019 में सरकार ने फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतें स्थापित करने की योजना बनाई थी। फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों के तहत महत्वपूर्ण गवाहों के लिए गवाही केंद्र का प्रावधान है। उन्होंने फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतों के तहत जिला निगरानी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया, जिसमें जिला न्यायाधीश, जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली के विभिन्न पहलुओं के बीच समन्वय बनाने में समिति की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उन्हाेंने इन समितियों को और अधिक सक्रिय बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। प्रधानमंत्री ने जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में डाक टिकट और सिक्के का भी अनावरण किया।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय सम्मेलन में जिला न्यायपालिका से संबंधित मुद्दों जैसे कि बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन, सभी के लिए समावेशी न्यायालय, न्यायिक सुरक्षा और न्यायिक कल्याण, केस प्रबंधन और न्यायिक प्रशिक्षण पर विचार-विमर्श और चर्चा के लिए पांच कार्य सत्र आयोजित किए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री माेदी ने कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय की 75 वर्षों की यात्रा लोकतंत्र की जननी के रूप में भारत की महिमा को बढ़ाती है। यह सत्यमेव जयते, नानृतम् के सांस्कृतिक उद्घोष को मजबूत करता है। उन्होंने इस अवसर पर न्यायिक प्रणाली की सभी बिरादरी और भारत के नागरिकों को बधाई दी और जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने वालों को अपनी शुभकामनाएं भी दीं।
प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया, “न्यायपालिका को हमारे लोकतंत्र का संरक्षक माना जाता है।” मोदी ने इसे अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी बताते हुए इस दिशा में अपनी जिम्मेदारियों का कुशलतापूर्वक निर्वहन करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों पर होने वाले हमलों से भी रक्षा की और जब भी राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल आया, न्यायपालिका ने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए भारत की एकता और अखंडता की रक्षा की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि न्याय तक सरल और आसान पहुंच जीवन की सुगमता के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि यह तभी संभव हो सकता है, जब जिला अदालतें आधुनिक बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी से सुसज्जित हों। प्रधानमंत्री मोदी ने जिला अदालतों में लगभग 4.5 करोड़ मामलों के लंबित होने की ओर इशारा करते हुए कहा कि न्याय में इस देरी को खत्म करने के लिए पिछले दशक में कई स्तरों पर काम किया गया है। उन्होंने बताया कि देश ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए लगभग 8 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं। उन्होंने आगे कहा कि पिछले 25 वर्षों में न्यायिक बुनियादी ढांचे पर खर्च किया गया 75 प्रतिशत धन केवल पिछले 10 वर्षों में हुआ है। उन्होंने कहा कि इन 10 वर्षों में जिला न्यायपालिका के लिए 7.5 हजार से अधिक कोर्ट हॉल और 11 हजार आवासीय इकाइयां तैयार की गई हैं।
ई-कोर्ट के महत्व को रेखांकित करते हुए मोदी ने कहा कि प्रौद्योगिकी के हस्तक्षेप ने न केवल न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज किया है बल्कि वकीलों से लेकर शिकायतकर्ताओं तक की समस्याओं को भी तेजी से कम किया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश में अदालतों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति इन सभी प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शन में जिला न्यायपालिका को नई प्रणाली में प्रशिक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का भी आग्रह किया। उन्होंने जजों और वकील साथियों को भी इस अभियान का हिस्सा बनने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि जनता को इस नई प्रणाली से परिचित कराने में हमारे वकीलों और बार एसोसिएशनों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा