Pitru Paksha 2024 : यहां अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों का किया जाता है पिंडदान, सत्तू चढ़ाने से मिलता है मोक्ष

पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तीर्थ स्थलों पर जाकर पिंडदान और तर्पण करते हैं।जिसमें से बिहार के गया को पितरों के पिंडदान और आत्मा की शांति के लिए सबसे प्रमुख स्थान माना जाता है। मान्यता के अनुसार, यहां लोग एक, तीन, पांच, सात, पंद्रह या सत्रह दिनों तक अपने पितरों के मोक्ष के लिए पूजा करते हैं। बिहार के गाया में ही एक स्थान ऐसा भी है जहां विशेष रूप से अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों का पिंडदान किया जाता है। इसके अलावा यहां पितृपक्ष से जुड़ी एक और पंरपरा है, जिसमें सत्तू चढ़ाने पर पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। 

 

पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तीर्थ स्थलों पर जाकर पिंडदान और तर्पण करते हैं।जिसमें से बिहार के गया को पितरों के पिंडदान और आत्मा की शांति के लिए सबसे प्रमुख स्थान माना जाता है। मान्यता के अनुसार, यहां लोग एक, तीन, पांच, सात, पंद्रह या सत्रह दिनों तक अपने पितरों के मोक्ष के लिए पूजा करते हैं। बिहार के गाया में ही एक स्थान ऐसा भी है जहां विशेष रूप से अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों का पिंडदान किया जाता है। इसके अलावा यहां पितृपक्ष से जुड़ी एक और पंरपरा है, जिसमें सत्तू चढ़ाने पर पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। 

कहां हैं ये जगह?
बिहार के गया शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर प्रेतशिला नाम का पर्वत है। ये गया धाम की उत्तर-पश्चिम दिशा में है। इस पर्वत की चोटी पर प्रेतशिला नाम की वेदी है, लेकिन पूरे पर्वतीय प्रदेश को प्रेतशिला के नाम से जाना जाता है। इस प्रेत पर्वत की ऊंचाई लगभग 975 फीट है। जो लोग सक्षम हैं वो लगभग 400 सीढ़ियां चढ़कर पिंडदान के लिए जाते हैं। माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से किसी भी वजह से अकाल मृत्यु से मरने वाले लोग जो प्रेतयोनि में भटकते हैं उन्हें मुक्ति मिल जाती है। 

सत्तू चढ़ाने से मिलता है मोक्ष
प्रेतशिला पर्वत पर जहां पिंडदान का खास महत्व है वहीं इस पहाड़ी की चोटी पर एक चट्टान है। जिस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति बनी है। श्रद्धालु इस पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा करते हैं और उसपर सत्तू उड़ाते हैं। मान्यता है, कि यहां सबसे ऊंची चोटी पर प्रेत वेदी यानी कि जो चट्टान है और उसमें जो दरार है, वह पिंडदान और सत्तू उड़ाने से पितरों के लिए स्वर्ग का मार्ग खुलता है। 

श्रीराम ने भी यहीं किया था पिंडदान
किंवदंतियों के अनुसार, इस पर्वत पर भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता सहित यहां आए थे। जिसके बाद उन्होंने प्रेतशिला स्थित ब्रह्मकुंड सरोवर में स्नान किया था। उसके बाद अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। यह भी कहा जाता है कि पर्वत पर ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं आज भी देखी जाती हैं।