पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजना अब मूर्त रूप ले रही, मप्र-राजस्थान दोनों ओर से लाखों लोगों को मिलेगा लाभ

 


पत्रकार वार्ता में बोले मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और भजनलाल शर्मा

भोपाल, 30 जून (हि.स.)। मध्य प्रदेश और राजस्थान की नदियों को लेकर एक योजना 2004 में बनी थी, लेकिन दोनों राज्य (मप्र-राजस्थान) लगभग 20 साल से अधिक समय से छोटे-छोटे विषय लेकर आपस में दूरी बनाए हुए थे। हालांकि राज्यों के अपने-अपने हित होते हैं लेकिन देश का हित सबसे बड़ा है और उससे बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगभग दो दशकों से लंबित पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना मूर्त रूप ले रही है। आज मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों ने मिलकर यह तय किया कि इस परियोजना का काम अतिशीघ्र शुरू हो। इसकी सफलता से देश में जहां लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा, वहीं जल की आपूर्ति और कई लाख हेक्टेयर सिंचाई का रकबा बढ़ेगा। यह बातें रविवार को मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ संयुक्त पत्रकार वार्ता के दौरान कही।

राजधानी भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में आयोजित पार्वती-कालीसिंध-चंबल अंतरराज्यीय नदी लिंक परियोजना के कार्यान्वयन हेतु संयुक्त पहल के अवसर पर रविवार को उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि आज मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच पार्वती-कालीसिंध-चम्बल अंतरराज्यीय नदी लिंक परियोजना के लिए एमओयू हुआ है। इस परियोजना से प्रदेश के लाखों किसान परिवारों को लाभ मिलेगा।

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लगभग दो दशकों से लंबित यह परियोजना अब मूर्त रूप ले रही है। इस योजना के मूर्त रूप लेते ही मध्य प्रदेश के चंबल और मालवा अंचल के 13 जिलों को लाभ पहुंचेगा। प्रदेश के ड्राई बेल्ट वाले जिलों जैसे मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, भिंड और श्योपुर में पानी की उपलब्धता बढ़ेगी और औद्योगिक बेल्ट वाले जिलों जैसे इंदौर, उज्जैन, धार, आगर-मालवा, शाजापुर, देवास और राजगढ़ के औद्योगीकरण को और बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ प्रदेश के मालवा और चंबल अंचल में 3.37 लाख हेक्टेयर का सिंचाई रकबा बढ़ेगा। लगभग 30 लाख किसान परिवार लाभान्वित होंगे। हम पानी की एक-एक बूंद का संरक्षण कर पाएंगे।

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बताया कि इसके परिणामस्वरूप इन अंचलों के धार्मिक और पर्यटन के विकास के भी नए द्वार खुलेंगे। यह परियोजना पश्चिमी मध्य प्रदेश के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। उन्होंने बताया कि कुल 72 हजार करोड़ की यह परियोजना है, जिसमें कि 35 हजार करोड़ मप्र को और 37 हजार करोड़ राजस्थान की ओर के इलाके में योजना की पूर्ति में राशि खर्च होगी। इससे संपूर्ण रूप से 6.17 लाख हेक्टेयर का सिंचाई रकबा बढ़ेगा।

डॉ यादव ने बताया कि इसी प्रकार यूपी के साथ भी केन-बेतवा योजना पर काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच धार्मिक पर्यटन के लिए बहुत संभावना है। श्री कृष्ण जब उज्जैन, सांदीपनी आश्रम शिक्षा ग्रहण करने आए होंगे तो वह राजस्थान से होकर ही आए, ऐसे में श्रीराम पथ की तरह से यहां भी दोनों राज्यों के बीच श्रीकष्ण पथ सर्किट तैयार किया जा सकता है। दोनों राज्यों में प्रचुर खनिज संपदा है, आयुर्वेद के क्षेत्र में भी मिलकर काम करने की अपार संभावना है, केरल ने इस संदर्भ में बहुत अच्छा काम किया है हम भी करें। राजस्थान से लगे रतलाम, मंदसौर, नीमच में मेडिकल कॉलेज खुले हैं, 1000 सीटों के ये हैं। स्वभाविक है कि राजस्थान से मरीज भी यहां स्वास्थ्य लाभ लेने आएंगे, इसलिए दोनों ही राज्यों के बीच टूरिज्म, चिकित्सा, धार्मिक, पर्यावरण, जैव विविधता के आधार पर डेवलपमेंट की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। अत: इन सभी संभावनाओं पर दोनों राज्य मिलकर क्या काम कर सकते हैं, यह देखा जा रहा है।

इस दौरान राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि इससे हमारे राज्य में 2.80 लाख हेक्टेयर भूमि का सिंचाई रकबा बढ़ेगा। मध्यप्रदेश की तरह ही इसमें राजस्थान के पुराने 13 जिले शामिल हैं, जिन्हें इस योजना के मूर्त रूप लेते ही पर्याप्त पानी सिंचाई के लिए सुलभ हो जाएगा। उन्होंने बताया कि दोनों ही राज्यों की कई सेक्टर्स में मिलकर कार्य करने की अपार संभावना है, जिसे देखते हुए कई कार्यों पर आपसी सहमति बनी है।

मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा कि राजस्थान पर्यटन की दृष्टि से बहुत अच्छा काम कर रहा है, ऐसे में हमारी कोशिश रहेगी कि पर्यटन के क्षेत्र में कुछ ऐसे कॉरिडोर बने। जिनके माध्यम से जो लोग राजस्थान आएं उसकी मध्य प्रदेश घूमने की भी इच्छा हो जाए और वहीं जो मध्य प्रदेश आ रहे हैं वह भी राजस्थान में घूमने के लिए प्रेरित हो सके। दोनों ही प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की इस वार्ता में रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान, कूनो, चंबल नदी में घड़ियाल, डॉल्फिन और मगरमच्छों के साथ टाइगर, चीता एवं अन्य वन्य प्राणियों का जिक्र भी आया और पर्यटक इनका लुत्फ कैसे उठा सकते हैं। इसके लिए भी अलग-अलग योजना बनाकर कार्य करने के बारे में इन्होंने यहां बताया है।

हिन्दुस्थान समाचार/मयंक/आकाश