सृष्टि के निर्माण का आधार पंच महाभूतः डॉ. चिन्मय पंड्या

 


नई दिल्ली, 29 नवंबर (हि.स.)। प्रेरणा शोध संस्थान न्यास के तत्वावधान में नोएडा के सेक्टर 12 स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजित 'प्रेरणा विमर्श 2024' के अंतर्गत पंच परिवर्तन के पांच सूत्रों पर तीन दिवसीय कार्यक्रम के समापन के मौके पर बतौर मुख्य अतिथि देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने कहा कि मनुष्य के जीवन में सौभाग्य तभी आता है, जब वह उसे पहचानने की स्थिति में होता है। भारत की भूमि साधु, संतों और तपस्वियों की भूमि है। पूरी सृष्टि के निर्माण का आधार पंच महाभूत है।

उन्होंने कहा कि आज वायु प्रदूषण से जितने लोग मर रहे हैं, उतना युद्ध से नहीं। सोचना है कि गंगा का इतिहास पढ़ाना चाहते हैं या भूगोल। हाल यह है कि 34 प्रतिशत बारिश तेजाबी हो रही है और भवनों की उम्र तीन गुना कम हो रही है।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति संस्कारी है तो श्रेष्ठ समाज का निर्माण करता है। भारतीय चिंतन का ऐसा उपसर्ग है, जिसमें संस्कृति पोषित होती है। हमें कर्तव्यों का निर्माण करना चाहिए। अगर व्यक्ति के अंदर कर्तव्यों का भान है तो समाज के उत्थान की धारा प्रशस्त हो जाती है।

इस दौरान मुख्य वक्ता के रूप में पधारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण है। अगर संकट संस्कृति पर है तो संकट राष्ट्र पर भी है। हमें रिश्तों की समझ होनी चाहिए। हर रिश्ते की एक विशेषता और उसके लिए कर्तव्य होते हैं।

उन्होंने कहा कि परिवार की एकता, जीवन शैली, व्यवस्था, पर्यावरण और आर्थिक व्यवस्था आदि सभी एक दूसरे से जुड़े हैं। इन सबको एक दूसरे से मिलकर देखने की आवश्यकता है। पंच परिवर्तन के सभी विषयों को समाज के सभी वर्गों तक ले जाना चाहिए, माध्यम अलग-अलग भी हो सकते हैं।

इससे पूर्व तीसरे और समापन के दिन स्व और नागरिक कर्तव्य पर देश के लेखकों, विचारकों और विद्वानों ने चर्चा कर स्व और नागरिकों के कर्तव्यों को लेकर चिंतन किया।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र में 'स्व' विषय स्वधर्मे निधनं श्रेय पर मंथन करते हुए मुख्य अतिथि स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संगठक सतीश कुमार ने अपने उद्बोधन में कहा कि सामान्यजन को व्यक्तिगत, परिवार और कार्य स्थल पर अपने स्व के बारे में बोध होना चाहिए। हम इच्छा से देशी और मजबूरी से विदेशी वस्तुओं को ले सकते हैं। स्वदेशी के प्रति मानसिक और बौद्धिक चेतना जागृत करें। गांधी जी ने स्व को बड़ी कुशलता से देश के आंदोलन में बदल दिया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, विनोबा भावे और दत्तोपंत ठेगडी जैसे महापुरुषों ने स्वदेशी और विकेंद्रीकरण को आगे बढ़ाया। अपनी भाषा और वेशभूषा पर हमें गर्व होना चाहिए। सोचना है कि हमारे चिंतन, संवाद, व्यापार, परिवार संवाद, स्वावलंबन आदि में स्वदेशी का भाव झलकता है कि नहीं।

सत्र के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार टोली सदस्य मुकुल कानितकर ने कहा कि स्वाभिमान के साथ अपने स्व का पालन करें। अपनी भाषा, भूषा, भजन, भोजन, भवन और भ्रमण में स्वदेशी अपनाएं। धर्म भारत का प्राण और स्व है। विदेशियों का स्वभाव अलग हो सकता है लेकिन भारत के स्वभाव में विश्व गुरु बनने की नियति है। भारत की विश्व दृष्टि है, भारत के व्यापारियों ने विश्व में भारत की संस्कृति फैलाई है। भारत ने विदेशों की परंपराओं को समाप्त नहीं किया बल्कि वहां के स्व को विकसित होने का अवसर दिया।

उन्होंने आह्वान किया कि अपने आचरण, व्यवहार और कर्म में स्व का बोध को आत्मसात करें। अंत में सत्र के अध्यक्ष अणंज त्यागी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पंच परिवर्तन के सूत्रों को अपनी जीवन शैली में लाना चाहिए।

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में 'नागरिक कर्तव्य' विषय पर अधिकार से पहले कर्तव्य पर चर्चा और मंथन करते हुए मुख्य अतिथि डीन, भारत विद्या संकाय, भारतीय विद्या भवन की प्रो. डॉ. शशिबाला ने अपने संबोधन में कहा कि कर्तव्यों का निर्माण न होने से परिवार टूट रहे हैं, कर्तव्य परायणता संस्कारों से आएगा। संस्कार हमारी संस्कृति से आते हैं। जो पूर्वजों की देन हैं, उनका संरक्षण और संपोषण हमारा कर्तव्य है। कर्तव्य मन से आता है और उनका पालन तब होगा जब मन संस्कारित होगा।

सत्र के मुख्य वक्ता सासंद और उप्र के पूर्व डीजीपी बृज लाल ने कहा कि संविधान की मूल भावना को हम बदल नहीं सकते। हमारा कर्तव्य है कि संविधान की रक्षा करें और उनके निर्देशों का पालन करें। संस्कार विहीनता तेजी से फैल रही है। अगर एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे। देश के संघर्ष से हमें प्रेरणा मिलती है। जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया उन्हें याद रखना चाहिए। मुगलों ने हमारी संस्कृति को नष्ट किया है। नई पीढ़ी को इतिहास बताने की जरूरत है, संस्कृति और भाषा नष्ट हुई तो हम गुलाम हो जाएंगे। इंडोनेशिया ऐसा देश हैं, जहां वे अपनी संस्कृति को संजोए हुए हैं। इंडोनेशिया की करेंसी पर गणेश जी हैं तो सचिवालय पर मां शारदा का चित्र है।

इस मौके पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अशोक सिन्हा ने कहा कि चित्त और मन से सीखने और सिखाने को सक्रिय रहना चाहिए, तभी अनुशासित समाज खड़ा कर सकते हैं।

अंत में वक्ताओं ने श्रोताओं के मन में उपजे विषय परक प्रश्नों के उत्तर देकर उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया।

कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख कृपाशंकर, प्रेरणा शोध संस्थान न्यास की अध्यक्ष प्रीति दादू के अतिरिक्त प्रेरणा विमर्श 2024 के अध्यक्ष अनिल त्यागी, समन्वयक, श्याम किशोर सहाय, संयोजक अखिलेश चौधरी और सचिव मोनिका चौहान ने कार्यक्रम का संयोजन किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / माधवी त्रिपाठी