अंग्रेजों ने किया सिखों को सनातन से लड़ाने का षड्यंत्रः सरदार इकबाल सिंह

 




नई

दिल्ली, 04 सितम्बर (हि.स.)। सनातन, जैन, बौद्ध और सिख, इन सभी की मां एक है,

लेकिन अंग्रेजों ने सिख और सनातन में फूट डालने का षड्यंत्र कर समाज में भेद पैदा

किया। जबकि गुरुग्रंथ साहिब में लिखा है कि प्रथम गुरु नानक देव जी भगवान विष्णु

के ही अवतार हैं। इसलिए गुरु नानक जी सिर्फ सिखों के नहीं, पूरे भारत के हैं। यह

बातें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ इकबाल सिंह लालपुरा ने बुधवार को

राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में आयोजित सिख गुरुओं की राष्ट्रीय दृष्टि नामक

पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर कही।

सिख

साहित्य के अनुपम विद्वान रहे स्व. राजेंद्र सिंह जी की लिखी एवं संकलित पुस्तक सिख

गुरुओं की राष्ट्रीय दृष्टि का लोकार्पण कार्यक्रम सरदार दयाल सिंह सांध्य

महाविद्यालय में संपन्न हुआ। पुस्तक का लोकार्पण डॉ इकबाल सिंह लालपुरा एवं दिल्ली

सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी के मुख्य सलाहकार सरदार परमजीत सिंह चंडोक ने किया।

जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो.

जगबीर सिंह ने की।

कार्यक्रम

को संबोधित करते हुए परमजीत सिंह चंडोक ने कहा कि सिख गुरुओं ने हमेशा मानवता का

संदेश दिया और इसी मंशा से खालसा पंथ की स्थापना की। ऐसे में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व

में देश में पहली बार ऐसी सरकार आई है, जो गुरुओं के दिवसों का उत्सव आयोजित कर

रही है। देश की स्वाधीनता के 75 वर्षों में पहली बार इसी सरकार ने करतारपुर साहिब

कॉरिडोर खोलकर वहां तक आमजन की पहुंच को सुगम बनाया।

पंजाब

केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. जगबीर सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन

में कहा कि बंदा बहादुर और राजा रणजीत सिंह तक हम एक रहे हैं। बाद में अंग्रेजों

ने हमें अलग करने का षड्यंत्र किया। उन्होंने काहन सिंह नाभा जैसे लोग खड़े किये,

जिन्होंने आधे-अधूरे उद्धरणों से फूट डालने का कार्य किया। ऐसे में पुस्तक सिख

गुरुओं की राष्ट्रीय दृष्टि इन सभी षड्यंत्रों का उन्मूलन करती है। इस पुस्तक

का मूल भाव है कि सिख समाज भारत का एक अभिन्न अंग रहा है। प्रथम गुरु नानकदेव जी

ने भारत को एक समग्र इकाई के रूप में प्रस्तुत किया था। वे पूरे भारत को एक समग्र

रूप में देखते थे और तदनुरूप ही उन्होंने विधर्मी आक्रांताओं और उनके अत्याचारों

का वर्णन किया। आज के विभाजनकारी दौर में गुरु नानकदेव की शिक्षाओं का पुनर्स्मरण

करने की आवश्यकता है। इस बात को ध्यान में रख कर ही प्रस्तुत पुस्तक लिखी गई है।

पुस्तक के लेखक स्व. राजेंद्र सिंह जी ने श्रीराम जन्मभूमि मामले में सर्वोच्च

न्यायालय में गवाही देते हुए सि ख साहित्य में श्रीराम जन्मभूमि का उल्लेख होने के

प्रमाण भी प्रस्तुत किये थे।

पुस्तक

लोकार्पण कार्यक्रम में जीवन के विविध आयामों में समाज के लिए उल्लेखनीय योगदान देने

के लिए सिख समाज के 14 हस्तियों

को सम्मानित भी किया गया। सम्मानित होने वाले महानुभावों में उत्कृष्ट श्रेणि में शहीद-ए-आजम

भगत सिंह के प्रपौत्र यदविंदर सिंह तथा रंजीत कौर रहीं। वहीं विशिष्ठ श्रेणी वर्ग

में एसपीएम कॉलेज (डीयू) की पूर्व प्राचार्यडॉ सुरजीत कौर, सिख इतिहास एवं गुरबाणी फोरम के निदेशक डॉ हरबंस कौर, व्यवसायी

इंद्र देव सिंह मुसाफिर, सेवानिवृत्त जस्टिस गुरिंदर सिंह, पद्मश्री जितेंद्र सिंह

शंटी, पूर्व विधायक एवं समाज सेवी आर.पी. सिंह, समाजसेवी बलदेव सिंह ढिल्लो, लेखक

एवं ज्योतिषी गुरपीत सिंह, युवा नेता रणधीर सिंह कालेर और लाजपत नगर से पार्षद

आर्जुन पाल सिंह मारवाह को सम्मानिक किया गया।

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हिन्दुस्थान समाचार / आकाश कुमार राय