सर्पदंश से होने वाली मौतों को कम करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की राष्ट्रीय कार्ययोजना

 




नई दिल्ली, 12 मार्च (हि.स.)। देश में साल 2030 तक सांपों के काटने से होने वाली मौतों को आधा करने के मकसद से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को राष्ट्रीय कार्य योजना जारी की है। 200 पन्नों की इस कार्ययोजना में सभी राज्यों को ध्यान में रख कर तैयार किए गए उपाय और स्वास्थ्य कार्यक्रम को शामिल किया गया है। इसके साथ सर्पदंश की घटनाओं से प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों को तत्काल सहायता, मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने के लिए सर्पदंश हेल्पलाइन (15400) पांच राज्यों में शुरू की जाएगी। पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह हेल्पलाइन पुडुचेरी, मध्य प्रदेश, असम, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में शुरू किया जाएगा।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय कार्ययोजना की शुरुआत करने के साथ सर्पदंश की स्थिति में क्या करें और क्या न करें पर पोस्टर और इसके लिए जागरूकता पर 7 मिनट का वीडियो सहित आईईसी सामग्रियों की एक श्रृंखला भी लॉन्च की गई। इस अवसर पर राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम वेबसाइट भी लॉन्च की गई। यह एक व्यापक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा कि भारत में सर्पदंश की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपी-एसई) लॉन्च की गई है, जिसके तहत 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों को आधा करने की दिशा में काम किया जाएगा। एनएपीएसई राज्यों को 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण के माध्यम से सर्पदंश के प्रबंधन, रोकथाम और नियंत्रण के लिए अपनी स्वयं की कार्य योजना विकसित करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है।

उल्लेखनीय है कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख सर्पदंश की घटनाओं में से लगभग 50,000 मौतें होती हैं, जो वैश्विक स्तर पर सर्पदंश से होने वाली सभी मौतों का आधा हिस्सा है। विभिन्न देशों में सांप के काटने से पीड़ित लोगों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही क्लीनिक और अस्पतालों में रिपोर्ट करता है और सांप के काटने का वास्तविक बोझ बहुत कम बताया जाता है।

भारत में लगभग 90 प्रतिशत सर्पदंश कॉमन क्रेट, इंडियन कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के काटने से होता है। कोबरा, रसेल वाइपर, कॉमन क्रेट और सॉ स्केल्ड वाइपर के खिलाफ एंटीबॉडी युक्त पॉलीवैलेंट एंटी-स्नेक वेनम (एएसवी) का प्रशासन सर्पदंश के 80 प्रतिशत मामलों में प्रभावी है, हालांकि, सर्पदंश के रोगियों के इलाज के लिए प्रशिक्षित मानव संसाधनों और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी चिंता का कारण बनी हुई है।

हिन्दुस्थान समाचार/ विजयलक्ष्मी/दधिबल