(वार्ष‍ि‍की) : दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भरता की मजबूत नींव, 2025 में ‘कामधेनु क्रांति’ का आगाज

 


भोपाल, 23 दिसंबर (हि.स.)। कृषि और पशुपालन आधारित अर्थव्यवस्था वाले मध्य प्रदेश के लिए वर्ष 2025 दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत के रूप में उभरा है। राज्य सरकार ने जहां एक ओर किसानों और पशुपालकों की आय बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाए, वहीं प्रदेश को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का स्पष्ट रोडमैप भी तैयार किया। इसी कड़ी में डॉ. भीमराव अंबेडकर कामधेनु योजना का शुभारंभ 14 अप्रैल को भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की 135वीं जयंती पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया। यह योजना आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था, रोजगार सृजन और आधुनिक डेयरी उद्यमिता की रीढ़ बनती जा रही है।

मध्य प्रदेश लंबे समय से देश के प्रमुख कृषि राज्यों में शामिल रहा है, लेकिन दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में अभी भी व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं। इन्हीं संभावनाओं को साकार करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री उद्यमी कृषक योजना के अंतर्गत डॉ. भीमराव अंबेडकर कामधेनु योजना की शुरुआत की। इस योजना का मूल उद्देश्य पशुपालकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना, आधुनिक डेयरी इकाइयों को बढ़ावा देना और प्रदेश में संगठित डेयरी उद्योग को मजबूती देना है।

योजना के तहत 25 दुधारू पशुओं की एक आधुनिक डेयरी इकाई स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। एक इकाई की कुल लागत 36 लाख से 42 लाख रुपये के बीच निर्धारित की गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार बड़े और व्यवस्थित डेयरी प्रोजेक्ट्स को प्रोत्साहित करना चाहती है। खास बात यह है कि जरूरतमंद युवाओं, किसानों और पशुपालकों को बड़े निवेश के बोझ से राहत देने के लिए सरकार अनुदान (सब्सिडी) भी प्रदान कर रही है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के लाभार्थियों को कुल परियोजना लागत का 33 प्रतिशत तथा अन्य वर्गों को 25 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जा रहा है, जबकि शेष राशि बैंक ऋण के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का इस सबंध में स्पष्ट कहना है, ''आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के निर्माण में दुग्ध उत्पादन की अहम भूमिका है। पशुपालन न केवल किसानों की आय का पूरक साधन है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा करता है।'' यही कारण है कि सरकार इस योजना के माध्यम से डेयरी उद्योग को सुनियोजित, सुव्यवस्थित, व्यावसायिक और दीर्घकालिक रूप से लाभकारी बनाना चाहती है।

डॉ यादव ने कहा है कि आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की नींव गांवों और पशुपालकों की मजबूती से ही रखी जा सकती है। इस योजना के जरिए सरकार का फोकस ग्रामीण युवाओं, किसानों और पशुपालकों को स्थायी रोजगार और नियमित आय से जोड़ना है। आधुनिक डेयरी यूनिट स्थापित कर लोग अपने व्यवसाय को व्यावसायिक और लाभकारी बना सकेंगे। पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने वित्त वर्ष 2025-26 में इस योजना के लिए 100 करोड़ 72 लाख रुपये से अधिक का बजट तय किया है।

कामधेनु योजना की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें छोटे, मध्यम और अपेक्षाकृत बड़े डेयरी उद्यमियों तीनों को ध्यान में रखा गया है। एक हितग्राही न्यूनतम एक और अधिकतम आठ इकाइयां स्थापित कर सकता है। यानी अधिकतम 200 दुधारू पशुओं तक की डेयरी परियोजना संभव है। इससे उन किसानों और युवाओं को भी अवसर मिलता है, जो चरणबद्ध तरीके से अपने व्यवसाय का विस्तार करना चाहते हैं।

योजना के लिए पात्रता मानदंड भी स्पष्ट और व्यावहारिक रखे गए हैं। आवेदक का मध्य प्रदेश का निवासी होना, न्यूनतम आयु 21 वर्ष होना और डेयरी फार्मिंग का सरकारी प्रशिक्षण प्राप्त होना अनिवार्य है। इसके साथ ही प्रति इकाई कम से कम 3.50 एकड़ कृषि भूमि का होना जरूरी है ताकि पशुओं के आवास, चारे की खेती और डेयरी संचालन में कोई बाधा न आए। भूमि के मामले में परिवार के संयुक्त खाते को भी मान्यता दी गई है, बशर्ते अन्य सदस्यों की सहमति उपलब्ध हो।

सरकार इस बात पर भी जोर दे रही है कि पशुपालक केवल परंपरागत तरीके से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और आधुनिक पद्धतियों से डेयरी व्यवसाय संचालित करें। इसी उद्देश्य से प्रोफेशनल ट्रेनिंग को योजना का अहम हिस्सा बनाया गया है। प्रशिक्षण के माध्यम से पशुओं की नस्ल सुधार, संतुलित आहार, दुग्ध संग्रह, गुणवत्ता नियंत्रण और बाजार से जुड़ाव जैसी जानकारियां दी जा रही हैं।

योजना की पारदर्शिता भी इसे खास बनाती है। आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन रखी गई है और चयन सामान्यत: “पहले आओ–पहले पाओ” के आधार पर किया जाता है। साथ ही, उन पशुपालकों को प्राथमिकता दी जा रही है जो पहले से दुग्ध संघों या सहकारी संस्थाओं को नियमित रूप से दूध की आपूर्ति कर रहे हैं। आवेदन के लिए आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, भूमि दस्तावेज, बैंक खाता विवरण, जाति प्रमाण पत्र (यदि लागू हो) और प्रशिक्षण प्रमाण पत्र जैसे जरूरी दस्तावेज मांगे गए हैं।

कुछ अहम तथ्यों पर नजर डालें तो 25 अप्रैल को राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री पशुपालन विकास योजना के अंतर्गत इस नई योजना को औपचारिक मंजूरी दी। योजना में प्रति इकाई लागत 36 से 42 लाख रुपये तय की गई है। एक हितग्राही द्वारा अधिकतम आठ इकाइयों की स्थापना की जा सकती है और ऋण राशि का भुगतान चार चरणों में किया जाएगा, जिससे परियोजना का सुचारु क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके।

कुल मिलाकर, डॉ. भीमराव अंबेडकर कामधेनु योजना 2025 में मध्य प्रदेश के लिए एक सरकारी योजना से कहीं अधिक दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मजबूत आधार बनकर उभरी है। यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने, युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और प्रदेश को डेयरी सेक्टर में राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने की क्षमता रखती है और इस वक्‍त इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। 2025 इस मायने में सचमुच खास साबित हुआ है कि मध्य प्रदेश अब दूध उत्पादन में भी आत्मनिर्भरता की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी