तानसेन समारोहः सुबह के सर्द मौसम में घुले गुनगुने सुर, पूर्व और पाश्चात्य संगीत के मिलन ने बिखेरी अनुपम आभा

 


- गायन के माधुर्य, बांसुरी के सम्मोहन और बेलाबहार के रोमांच से सराबोर हुए रसिक

ग्वालियर, 17 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सुर सम्राट तानसेन की स्मृति में आयोजित भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े महोत्सव पांच दिवसीय तानसेन संगीत समारोह के तीसरे दिन बुधवार को सजी संगीत सभा में रसिक, गायन के माधुर्य, बांसुरी के सम्मोहन और दुर्लभ वाद्य यंत्र बेलाबहार की स्वर लहरियों में गोते लगाते नजर आए। सुबह के सर्द मौसम में गायन-वादन से झर रहे गुनगुने सुरों ने गर्माहट ला दी। सुरीली सरगम में संगीत के स्वरों ने जैसे ही वातावरण को आलोकित किया, श्रोतागण ध्यान, आनंद और भाव–विभोरता की एक अलौकिक अनुभूति में डूबते चले गए। वहीं सुदूर पश्चिमी देश इटली से आए साधक ने बांसुरी वादन से पूर्व व पाश्चात्य संगीत के मिलन की अनुपम आभा बिखेरी।

तानसान समारोह में बुधवार को सजी प्रातःकालीन सभा का आरंभ परंपरानुसार ध्रुपद गायन से हुआ। राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर के विद्यार्थियों ने राग वैरागी भैरव में चौताल की रचना “ए मन तू जो सुख चाहत हो…” से सभा को आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान की। तत्पश्चात सूलताल में “नमामि शंकरा…” की प्रस्तुति ने वातावरण को शिवमय बना दिया। इस प्रस्तुति का निर्देशन डॉ. पारुल दीक्षित ने किया। तानपुरा पर यशी समाधिया एवं स्नेहा राठौर, पखावज – जयवंत गायकवाड़, सारंगी – अब्दुल हामिद खां ने संगत की।

भूपाली तोड़ी में नाद की कोमल अनुगूंजप्रातःकाल की प्रथम संगीत प्रस्तुति में मंच दुर्लभ वाद्ययंत्र बेलाबहार के स्वरों से सजा। युवा एवं प्रतिभाशाली संगीतज्ञ पंडित नवीन गंधर्व ने राग भूपाली तोड़ी में सूक्ष्म आलाप के माध्यम से राग की संरचना को अत्यंत सौंदर्य और सधे हुए विन्यास के साथ उकेरा। बेलाबहार के मृदुल और गूंजते स्वरों में राग की भावभूमि इतनी सहजता से उभरी कि श्रोता एकाग्र तल्लीनता में डूबते चले गए। संतुलित लयकारी और स्वर–शुद्धता ने प्रातःकालीन वातावरण को आध्यात्मिक शांति से भर दिया। की–बोर्ड पर देवानंद गंधर्व, तबला पर प्रसाद लोहार और तानपुरा पर गगन कटीक की संगत रही।

‘चरण पड़े अब राखौ पति रघुपति…’ध्रुपद के दिव्य रस से सराबोर अगली प्रस्तुति में मंच पर संगीत नाटक अकादमी सम्मानित पंडित विनोद कुमार द्विवेदी एवं आयुष द्विवेदी उपस्थित रहे। उन्होंने राग बिलासखानी तोड़ी में मत्तताल की रचना “तारी ऋषि गौतम नाही…” और सूलताल में “चरण पड़े अब राखौ पति रघुपति…” को गहन भावाभिव्यक्ति और नादात्मक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया। इसके पश्चात राग चारुकेशी में तानसेन को समर्पित ध्रुपद रचना “धन धन तानसेन गायन गुनी गंधर्व…” ने श्रोताओं को भाव–विभोर कर दिया। पखावज पर संगत राजकुमार झा ने की।

बांसुरी में विश्व संगीत की सुगंधप्रातःकालीन सभा में विश्व संगीत का अद्भुत रंग घुला जब रोम (इटली) से पधारे बांसुरी वादक सिमोन मेटीएलो मंच पर आए। उन्होंने राग गौर सारंग में आलाप, जोड़ और झाला के माध्यम से राग का सुस्पष्ट विस्तार किया। तीनताल में विलंबित एवं मध्य लय की गतों में उस्ताद अली अकबर खां की रचनाओं की संवेदनशील प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। दादरा ताल में राग मांझ खमाज की उपशास्त्रीय धुन के साथ प्रस्तुति का मधुर समापन हुआ। तबला पर उस्ताद सलीम अल्लाहवाले ने संगत की।

भीमपलासी में ग्वालियर की स्वर–गरिमाप्रातःकालीन सभा का समापन ग्वालियर की सुविख्यात गायिका डॉ. साधना देशमुख मोहिते की भावप्रवण प्रस्तुति से हुआ। उन्होंने राग भीमपलासी में तीनवाड़ा ताल का बड़ा खयाल “लोग जवावे…” और तीनताल में द्रुत बंदिश “गर्वा हरवा डारेंगे…” प्रस्तुत की। अंत में भैरवी में अष्टपदी ने सभा को कोमल और शांत विराम दिया। तबला पर अजिंक्य गलांडे, हारमोनियम पर दीपक खसरावल, तानपुरा पर अश्विनी नासेरी एवं अथर्व दुबे ने संगत की। संगीत सभा में शीतल प्रातः बेला में गूँजते सुरों ने मन–मस्तिष्क को शांति प्रदान की और तानसेन की दिव्य संगीत परंपरा को एक बार फिर जीवंत कर दिया।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर