(वार्षिकी) भारत का नया ‘फूड-बास्केट’ बना मप्र; रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन, तेज विकास दर और किसान समृद्धि के ठोस आंकड़े

 


भोपाल, 23 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश आज कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा के लिहाज से देश की धुरी बन चुका है। तेज आर्थिक विकास दर, ऐतिहासिक खाद्यान्न उत्पादन और किसान-केंद्रित नीतियों के चलते प्रदेश ने 2025 में ‘भारत का नया फूड-बास्केट’ बनने की मजबूत पहचान हासिल कर ली है। खेत से बाजार तक, सिंचाई से भंडारण तक और उत्पादन से प्रोसेसिंग तक देखा जाए तो कृषि का पूरा इकोसिस्टम आज राज्‍य में एक नई ऊंचाई पर पहुंचता हुआ दिखाई देता है।

कभी सीमित सिंचाई, अस्थिर बिजली आपूर्ति और कमजोर आधारभूत ढांचे के कारण पिछड़ा माना जाने वाला मध्य प्रदेश आज कृषि क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। हालिया आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश ने लगभग 24 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की है, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। इस विकास दर में सबसे बड़ा योगदान कृषि एवं इससे जुड़े क्षेत्रों का है, जिसने राज्य की अर्थव्यवस्था को नई मजबूती दी है।

प्रदेश सरकार ने कृषि को अपनी नीतियों के केंद्र में रखते हुए किसानों की आय बढ़ाने और खेती को लाभकारी बनाने के लिए बहुआयामी कदम उठाए। भावांतर भुगतान योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना, एमएसपी पर रिकॉर्ड खरीदी और उस पर बोनस भुगतान ने किसानों को आर्थिक सुरक्षा का मजबूत आधार दिया। बीते कुछ वर्षों में राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदी का आंकड़ा लगातार बढ़ा है। उदाहरण के तौर पर, 2023-24 वित्तिय वर्ष में ही प्रदेश में करीब 130 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी की गई, जो देश में सर्वाधिक रही। इस साल का आंकड़ा भी मार्च 2026 के बाद सामने आएगा। उम्‍मीद है कि वो पहले के आंकड़ों को पार कर जाएगा।

प्रदेश में सिंचाई विस्तार ने कृषि उत्पादन में निर्णायक भूमिका निभाई है। नर्मदा घाटी विकास परियोजना, पार्वती–कालीसिंध–चंबल लिंक और केन–बेतवा राष्ट्रीय नदी जोड़ परियोजना जैसी योजनाओं से लाखों हेक्टेयर भूमि सिंचाई के दायरे में आई है। वर्तमान में प्रदेश का लगभग 50 प्रतिशत से अधिक कृषि रकबा सिंचित हो चुका है, जबकि दो दशक पहले यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से भी कम था। साथ ही किसानों को खेतों में सोलर पंप लगाने के लिए अनुदान देकर सरकार ने ऊर्जा लागत को भी कम किया है।

इन प्रयासों का सीधा असर खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ा है। आज मध्यप्रदेश गेहूं उत्पादन में देश में पहले स्थान पर है। वर्ष 2024-25 में राज्य का गेहूं उत्पादन लगभग 350 लाख मीट्रिक टन के आसपास पहुंच चुका है, जिसने पंजाब और हरियाणा जैसे परंपरागत कृषि राज्यों को पीछे छोड़ दिया। दलहन उत्पादन में भी राज्‍य की स्थिति अत्यंत मजबूत है। देश के कुल चना उत्पादन का करीब 30 प्रतिशत, मसूर का 35 प्रतिशत और सोयाबीन का लगभग 40 प्रतिशत उत्पादन अकेले मप्र में अभी हो रहा है। यही कारण है कि प्रदेश इस साल 2025 में “दालों का कटोरा” कहने की स्‍थ‍िति में पहुंच चुका है।

धान उत्पादन के क्षेत्र में भी प्रदेश ने उल्लेखनीय प्रगति की है। बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, सिवनी और बैतूल जैसे जिले अब धान उत्पादन के प्रमुख केंद्र बन चुके हैं। इन जिलों से देश के विभिन्न राज्यों में चावल की आपूर्ति हो रही है। राज्य का कुल खाद्यान्न उत्पादन बीते 15 वर्षों में लगभग दोगुना हो चुका है जोकि कृषि क्षेत्र में आई क्रांति का स्पष्ट प्रमाण है।

राज्‍य में खेती-किसानी की सोच भी अब बदलती हुई दिखती है। किसान आधुनिक तकनीकों को तेजी से अपना रहे हैं। ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, जैविक और प्राकृतिक खेती, मल्टीक्रॉपिंग और फसल विविधीकरण से उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से हर साल लाखों किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वे बाजार की मांग के अनुसार फसलें उगा सकें।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि मध्यप्रदेश की यह उपलब्धि किसानों की मेहनत और सरकार की संवेदनशील नीतियों का परिणाम है। आज प्रदेश गेहूं, चना, मसूर, सोयाबीन और तिलहन उत्पादन में अग्रणी बन चुका है। खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए सरकार ने सिंचाई, बिजली, एमएसपी खरीदी, भावांतर भुगतान और कृषि यंत्रीकरण पर विशेष ध्यान दिया है। इसके साथ ही डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण जैसे सहायक क्षेत्रों में भी तेजी से विकास हुआ है।

इस संबंध में भोपाल संभाग की संयुक्‍त संचालक कृषि सुमन प्रसाद का कहना है कि गेंहू, दाल, दलहन तीनों में ही नहीं, सब्‍जियों और औषधिय पौधों की खेती में भी इन दिनों मप्र अच्‍छा कर रहा है। आज कृषक एक ही भूमि पर अनेक प्रयोग और वर्ष भर में अलग-अलग कई खेतियों के लाभ ले रहा है। इससे वह आर्थ‍िक रूप से सशक्‍त हुआ है और खेती अब कई स्‍थानों पर लाभ देने वाली हमारे यहां हुई है। यही कारण है कि हमने देश के अनेक राज्‍यों को जिनका कि परंपरागत खेती में नाम रहा है, आज पीछे छोड़ दिया है।

उन्‍होंने कहा कि कृषि समृद्धि का प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर साफ दिखाई देता है। गांवों में रोजगार के नए अवसर बने हैं, कृषि आधारित उद्योगों और फूड प्रोसेसिंग इकाइयों का विस्तार हुआ है। ई-नाम पोर्टल, कृषि मंडियों का डिजिटलीकरण और कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क किसानों को बेहतर दाम दिलाने में सहायक साबित हो रहे हैं। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) योजना के तहत स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच मिल रही है।

इस तरह देखें तो मध्य प्रदेश आज देश की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ बन चुका है। वह कृषि आधारित औद्योगिक विकास की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। किसानों की समृद्धि, मजबूत उत्पादन आंकड़े और दूरदर्शी नीतियां इस बात का संकेत हैं कि आने वाले वर्षों में राज्‍य भारत का सबसे सशक्त ‘फूड-बास्केट’ बनकर उभरेगा और वैश्विक कृषि मानचित्र पर भी अपनी अलग पहचान स्थापित करेगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी