(वार्षिकी) मध्य प्रदेश 2025 में हुआ नक्सल मुक्त, सुरक्षा से विकास तक का ऐतिहासिक सफर

 


भोपाल, 23 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के इतिहास में वर्ष 2025 एक ऐसे निर्णायक मोड़ के रूप में दर्ज हो गया है, जिसने दशकों पुरानी नक्सल समस्या पर पूरी तरह विराम लगा दिया। 11 दिसंबर 2025 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जब यह घोषणा की कि प्रदेश अब पूरी तरह नक्सल मुक्त हो चुका है, तब लगा कि ये कोई स्‍वप्‍न तो नहीं! लेकिन आज ये हकीकत है। वर्षों की रणनीति, सुरक्षा बलों के साहस और सरकार की स्पष्ट राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम इसे आप मान सकते हैं।

दरअसल बालाघाट जिले के अंतिम सक्रिय नक्सली दीपक उइके और रोहित के आत्मसमर्पण के साथ ही राज्य से नक्सलवाद का अध्याय समाप्त हो गया। यह उपलब्धि केंद्र सरकार के मार्च 2026 तक नक्सल मुक्त भारत के लक्ष्य से तीन महीने पहले हासिल कर ली गई।

राज्‍य देश के अन्‍य कुछ प्रदेशों की तरह ही लंबे समय तक नक्‍सल प्रभावित रहा है, यहां बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जैसे जिलों में नक्सल गतिविधियां लगातार दर्ज होती देखी गईं। घने जंगल, सीमावर्ती क्षेत्र और सीमित विकास ने नक्सलियों को यहां पनपने का अवसर दिया। हालांकि, बीते कुछ वर्षों में हालात बदले और 2025 आते-आते सरकार ने इस समस्या के स्थायी समाधान का संकल्प लिया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में राज्य सरकार ने स्पष्ट रणनीति अपनाई, सख्त सुरक्षा कार्रवाई के साथ-साथ आत्मसमर्पण और पुनर्वास की नीति ने अपना असर दिखाया और अब नक्‍सल यहां के लिए बीते दिनों की बात हो गई है।

अब इसीलिए कहा जा रहा है कि आज मध्यप्रदेश नक्सलवाद से पूर्णतः मुक्त है। बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जैसे पूर्व नक्सल प्रभावित जिलों में अब कोई सक्रिय नक्सली कैडर मौजूद नहीं है। फरवरी 2025 में बालाघाट में हुए एक एनकाउंटर के बाद राज्य में कोई भी घातक नक्सली घटना दर्ज नहीं की गई। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि लंबे समय तक ये इलाके हिंसा, बारूदी सुरंगों और मुठभेड़ों के लिए जाने जाते थे।

वर्ष 2025 की शुरुआत से ही नक्सल उन्मूलन अभियान को निर्णायक रूप दिया गया। अप्रैल महीने में सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने लाल आतंक के खिलाफ एक सख्त और स्पष्ट कार्ययोजना तैयार की। बालाघाट, मंडला और डिंडोरी के जंगलों में नक्सलियों के ठिकानों की पहचान कर लगातार छापेमारी की गई। हॉक फोर्स, जिला पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतरीन तालमेल देखने को मिला। ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी और पुख्ता खुफिया इनपुट के जरिए नक्सलियों की गतिविधियों पर नजर रखी गई।

इस अभियान का असर जल्द ही दिखने लगा। महज 42 दिनों के भीतर 42 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिन पर कुल 7.75 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। यह आत्मसमर्पण नीति की सफलता का बड़ा प्रमाण था। आत्मसमर्पण करने वालों में कई ऐसे कैडर शामिल थे जोकि वर्षों से सक्रिय थे और जिनकी तलाश सुरक्षा एजेंसियों को लंबे समय से थी।

प्रदेश में नवंबर और दिसंबर 2025 में नक्‍सल मुक्‍त अभियान अपने चरम पर पहुंचता दिखा। हॉक फोर्स ने बालाघाट क्षेत्र में सक्रिय केबी डिवीजन को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। इस दौरान कुल 10 नक्सली मारे गए, जो पिछले 21 वर्षों में किसी एक वर्ष में सबसे अधिक संख्या थी। इन कार्रवाइयों के बाद नक्सल संगठन पूरी तरह बिखर गया। अंततः 11 दिसंबर 2025 को अंतिम सक्रिय नक्सली दीपक उइके और रोहित ने आत्मसमर्पण कर दिया और इसके साथ ही राज्य को नक्सल मुक्त घोषित कर दिया गया।

यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो 2025 में नक्सली हिंसा में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई। इससे पहले वर्ष 2024 में 3 नक्सली मारे गए और 3 घटनाएं हुईं। वर्ष 2023 में 4 नक्सली मारे गए और 5 घटनाएं दर्ज हुईं। इस वर्ष 2025 में 10 नक्सली मारे गए, 13 से अधिक ने आत्मसमर्पण किया और केवल एक घातक घटना दर्ज हुई, जबकि विशेष बात यह रही कि सुरक्षा बलों का बहुत अधिक नुकसान नहीं हुआ। यह स्पष्ट करता है कि 2025 में न केवल नक्सली नेटवर्क टूटा, बल्कि हिंसा भी लगभग समाप्त हो गई। केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 126 से घटकर केवल 11 रह गई है और मध्यप्रदेश इस सूची से पूरी तरह बाहर हो चुका है।

मुख्यमंत्री यादव ने इस सफलता का श्रेय केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय, हॉक फोर्स और अन्य सुरक्षा बलों को दिया है। उनका कहना है कि केंद्र-राज्य समन्वय, स्पष्ट नीति और जमीनी स्तर पर सटीक कार्रवाई ने यह परिणाम संभव बनाया। उन्होंने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने का अवसर देने पर भी जोर दिया और इसे सामाजिक एकीकरण की दिशा में बड़ा कदम बताया।

नक्सलवाद के समाप्त होने के बाद अब इन क्षेत्रों में विकास की नई राह खुल गई है। बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जैसे जिलों में सड़क निर्माण, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, मोबाइल नेटवर्क और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर तेजी से काम हो रहा है। निवेशकों का भरोसा बढ़ा है और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर तैयार हो रहे हैं। वर्षों से डर और हिंसा के साए में जी रहे ग्रामीण अब सामान्य जीवन की ओर लौट रहे हैं।

कुल मिलाकर 2025 राज्‍य के लिए नक्सल उन्मूलन का वर्ष रहा है। यह साबित करता है कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, सुरक्षा बलों की रणनीतिक क्षमता और विकास की समानांतर सोच के साथ सबसे जटिल समस्याओं का भी समाधान संभव है। मध्य प्रदेश का नक्सल मुक्त होना पूरे देश के लिए एक संदेश है कि लाल आतंक के खिलाफ निर्णायक लड़ाई जीती जा सकती है, बशर्ते विकास ही उसका स्थायी उत्तर हो।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी