मथुरा : रावण-अहिरावण का पुतला धूं-धूं कर जला, जय श्रीराम के जयकारों से गूंजा रामलीला मैदान
मथुरा, 24 अक्टूबर (हि.स.)। मंगलवार शाम रणभेरी बजते ही श्रीराम और दशानन की सेनाएं जैसे ही नजदीक आयीं, दोनों में घनघोर युद्ध हुआ। श्रीराम ने दशानन की नाभि में तीर से प्रहार किया, तो उसमें से अमृत छलका और मुख से जयश्रीराम कहते हुए रावण धड़ाम हो गया। वैसे ही 68 फुट अहिरावण और 72 फुट का रावण का ऊंचा पुतला धूं-धूं कर जल उठा। मंगलवार देर शाम यह दृश्य महाविद्या कॉलोनी स्थित रामलीला मैदान में चल रही रामलीला मंचन में जीवंत हुआ, तो चारों दिशाएं जयश्रीराम के जयकारों से गूंज उठीं। मथुरा पुलिस ने सुरक्षा की दृष्टि से कड़े बंदोबस्त किये हुए थे।
रामलीला मैदान महाविद्या पर रावण व अहिरावण वध की लीला हुयी। पाताल लोक से अपने प्रतापी पुत्र अहिरावण को बुलाने के लिए रावण भगवान पंकरजी की उपासना करता है। रावण के ध्यानमग्न होने से पातल में अहिरावण का मन विचलित होता है। वह लंका में रावण के पास पहुंच कर कारण जानना चाहता है रावण युद्ध का पूरा समाचार सुनाने के बाद पत्रुओं का नाश का उपाय करने को कहता है। अपने चाचा विभीषण का वेश बनाकर रामादल में मोहिनी मंत्र से सभी को निद्रित करके राम व लक्ष्मण को पाताल में कामदा देवी की बलि चढ़ाने के लिये ले जाता है। हनुमानजी प्रभु की खोज में जाते समय मार्ग में गर्भवती गिद्धनी व गिद्ध के संवाद से स्पष्ट हो जाता है कि अहिरावण प्रभु राम व लक्ष्मण को ले गया है। हनुमान जी पाताल लोक में अपने पुत्र मकरध्वज से मिलते हैं जो अहिरावण की सेवा में लगा है। वह दोनों भाईयों का पता बताता है। हनुमानजी द्वारा अहिरावण का वध कर मकरध्वज को पाताल का राजा बना कर राम व लक्ष्मण को रामादल में ले आते हैं। अहिरावण की मृत्यु के बाद रावण स्वयं युद्ध करने जाता है। भयंकर युद्ध होता है। युद्ध में ब्रह्मास्त्र चलाकर लक्ष्मण को मूर्छित कर देता है। यह देख हनुमानजी रावण पर मुश्टिक प्रहार करते हैं, रावण मूर्चित होकर गिरता है, फिर मूर्छा टूटने पर उठता है। लक्ष्मण की मूर्छा टूटने पर वे रावण को परास्त कर लंका लौटा देते हैं। रावण विजय यज्ञ करता है। वानर भालू उसके यज्ञ का विध्वंश कर देते हैं। तत्पश्चात राम व रावण के युद्ध में रावण की मायावी पक्तियों का प्रयोग राम द्वारा नष्ट कर रावण के नाभि में बने अमृत कुण्ड पर अग्नि वाण चलाने पर रावण राम- राम कहते हुए पृथ्वी पर गिर पड़ता है। राम राजनीति के ज्ञाता व महान पंडित रावण से राजनीति को शिक्षा के लिए लक्ष्मण को भेजते हैं। रावण शिक्षा प्रदान करता है व श्रीराम से कहता है कि विजय मेरी ही हुई है क्योंकि मैं आपके बैकुण्ठ लोक में जा रहा हूँ लेकिन आप मेरे जीवित रहते हुये लंका में प्रवेष नहीं कर पाये। श्रीराम मुस्कुरा जाते हैं। सीता जी की अग्नि परीक्षा के बाद प्रभु उन्हें वामांग लेते हैं। मैदान में प्रभु के अग्नि बाण चलाते ही रावण के पुतले की नाभि से अमृत वर्षों मुस्कुराहट व घोर गर्जना के साथ धूं-धूं कर जल उठा। जिसे देखकर सम्पूर्ण मैदान में उपस्थित जनसमुदाय राजा रामचन्द्र की जय जय घोषों से गूंज उठा। भव्य आतिशबाजी हुई।
हिन्दुस्थान समाचार/महेश/आकाश