लोकसभा चुनाव: लखनऊ बना कमल का साथी, पसंद नहीं आए साइकिल और हाथी
लखनऊ, 23 मार्च (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। सपा और बसपा के उभार के बाद प्रदेश में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन लगातार सिकुड़ती गई। हालांकि प्रदेश की राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाने के बावजूद सपा और बसपा लखनऊ संसदीय सीट जीतने में कामयाब नहीं हुईं। कांग्रेस ने लखनऊ सीट अंतिम बार 1984 में जीती थी।
पिछले तीन दशकों से लखनऊ सीट पर भाजपा का कब्जा है। लखनऊ भाजपा का वो अभेद्य दुर्ग है जिसे 1991 से 2019 तक हुए सात चुनाव में विपक्ष विजय पताका फहरा नहीं पाया। वर्ष 2007 में बसपा ने और 2012 में सपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, बावजूद इसके सपा और बसपा लखनऊ लोकसभा सीट जीतने का ख्वाब पूरा नहीं कर पाईं।
लखनऊ में हाथी की चाल सुस्त ही रही-
बसपा को प्रदेश की सत्ता चार बार संभालने का मौका मिला। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हिट रहा। बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। विधानसभा चुनाव के दो साल बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के खाते में 20 सीटें ही आईं। सपा ने 23, भाजपा ने 10, कांग्रेस ने 21, रालोद ने 5 और 1 सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में बसपा ने लखनऊ सीट से पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र डॉ.अलिखेश दास को मैदान में उतारा था। अखिलेश दास ने जीत के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई। लखनऊवासियों ने जीत का सेहरा भाजपा प्रत्याशी लालजी टंडन के सिर पर बांधा। कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी दूसरे और बसपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। ये वो समय था जब प्रदेश में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी।
वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी जगमोहन सिंह वर्मा लखनऊ सीट पर चौथे स्थान पर रहे। ये चुनाव जनता दल के मंदाता सिंह ने जीता था। 1991 के चुनाव में बसपा के बलबीर सिंह सलूजा पांचवें स्थान पर रहे। 1996 में वेद प्रकाश ग्रोवर तीसरे, 1998 में डा. दाऊ जी गुप्ता तीसरे, 1999 में इजहारूल हक और 2004 में नसीर अली सिद्दीकी चौथे स्थान पर रहे। वर्ष 1991 से 2004 तक भाजपा प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी ने लगातार लखनऊ सीट पर जीत दर्ज की। वर्ष 2004 के चुनाव में चौथे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी नसीर अली सिद्दीकी को तो निर्दलीय प्रत्याशी राम जेठमलानी से भी कम वोट हासिल हुए थे। जेठमलानी तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 2014 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार नकुल दूबे तीसरे स्थान पर रहे। चुनाव भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह ने जीता। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था।
सपा की साइकिल लखनऊ में दौड़ नहीं पाई
बसपा की तरह सपा भी अब तक लखनऊ संसदीय सीट जीत नहीं पाई। वर्ष 1996 के चुनाव में सपा प्रत्याशी राज बब्बर दूसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1998 में मुजफ्फर अली दूसरे, 1999 में भगवती सिंह तीसरे और 2004 में डॉ. मधु गुप्ता दूसरे स्थान पर रहे। ये सारे चुनाव भाजपा प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी ने भारी अंतर से जीते। 2009 के चुनाव में सपा प्रत्याशी नफीसा अली सोढ़ी चौथे स्थान पर रहीं। ये चुनाव भाजपा प्रत्याशी लालजी टंडन ने जीता। बसपा तीसरे स्थान पर थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने शानदार जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। विधानसभा चुनाव के दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में सपा समेत विपक्ष का सूपड़ा लगभग साफ हो गया। सपा के हिस्से में परिवार की पांच सीटें ही आईं। 2014 में सपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्र चौथे और 2019 में पूनम सिन्हा दूसरे स्थान पर रहीं। ये दोनों चुनाव भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह ने बड़े अंतर से जीते।
लखनऊ का जातीय समीकरण-
लखनऊ लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा सीटें आती हैं। ये सीटें- लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तरी, लखनऊ पूर्वी, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट हैं। लखनऊ के जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां करीब 71 फीसदी आबादी हिंदू है। इसमें से भी 18 फीसदी आबादी राजपूत और ब्राह्मण हैं। ओबीसी 28 फीसदी और मुस्लिम 18 फीसदी हैं। साल 2022 में हुए चुनाव में पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा जीती थी।
राजनाथ सिंह तीसरी बार मैदान में-
भाजपा की ओर से तीसरी बार राजनाथ सिंह मैदान में हैं। इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। गठबंधन के सीट बंटवारे में लखनऊ सीट सपा के खाते में है। सपा ने लखनऊ मध्य विधानसभा सीट के विधायक रविदास मेहरोत्रा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में राजनाथ सिंह 5,61,106 (54.27 फीसदी) वोट पाकर विजयी हुए। जीत का अंतर 2 लाख 72 हजार से ज्यादा था। कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी 2,88,357 (27.89 फीसदी) वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं। तीसरे स्थान पर रहे नकुल दूबे को 64,449 (6.23 फीसदी) और चौथे स्थान पर रहे सपा प्रत्याशी अभिषेक मिश्र को 56,771 (5.49 फीसदी) वोट मिले।
पिछले चुनाव में राजनाथ को 6,33,026 (56.70 फीसदी) वोट मिले। दूसरे स्थान रही सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा के खाते में 2,85,724 (25.59 फीसदी) वोट आए। जीत का अंतर लगभग साढे़ तीन लाख वोट का था। कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णन 1,80,011 (16.12 फीसदी) वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है बावजूद इसके भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त है। हालांकि इस बार उसका फोकस जीत के अंतर को बढ़ाने पर है।
हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. आशीष वशिष्ठ/राजेश/पवन