50वां खजुराहो नृत्य समारोह: चौथे दिन हुई चार प्रस्तुतियां, दर्शक हुए भाव-विभोर

 


- समारोह के साधना स्वरूपी मंच पर कलाकार अर्पित कर रहे नृत्यांजलि

भोपाल, 23 फरवरी (हि.स.)। विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में अंतरराष्ट्रीय नृत्य समारोह कलाकारों और कलानुरागियों को ऐसी चिर स्मृति प्रदान कर रहा है जो मानस पर अमिट रूप में दाखिल होती जा रही है। कलाकार भी खजुराहो नृत्य समारोह के साधना स्वरूपी मंच को अपनी नृत्यांजलि अर्पित कर रहे हैं। समारोह के चौथे दिन शुक्रवार की शाम चार नृत्य प्रस्तुतियां हुई, जिनमें मोमिता घोष वत्स का ओडिसी, पद्मश्री नलिनी कमलिनी का कथक, मार्गी मधु एवं साथी का कोच्चि-कुड्डी अट्टम त्रयी, डॉ.सुचित्रा हरमलकर का कथक और रोशाली राजकुमारी के समूह का मणिपुरी ने रसिकों को विभोर कर दिया।

समारोह की चौथे दिन शुक्रवार शाम को मोमिता घोष वत्स के ओडिसी नृत्य से शुरुआत हुई। राग विभास और एक ताल में निबद्ध नाजिया आलम की संगीत रचना पर मोमिता घोष ने बड़े ही मनोहारी ढंग से अपने नृत्य अभिनय और भंगिमाओं से भगवान विष्णु को साकार किया। अगली पेशकश में उन्होंने समध्वनि की प्रस्तुति दी। यह शुद्ध ओडिसी नृत्य था। इस प्रस्तुति में मोमिता घोष ने अंग क्रियाओं और लय का तालमेल दिखाया। राग गोरख कल्याण और एक ताल में निबद्ध रचना पर उन्होंने विविध लयकारियों का चलन दिखाया। उन्होंने नृत्य का समापन जयदेव कृत गीत गोविंद की अष्टपदी धीर समीरे यमुना तीरे से किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम को अपने नृत्य भावों से प्रदर्शित किया। इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन पंडित भुवनेश्वर मिश्रा का जबकि नृत्य संरचना पद्मविभूषण केलुचरण महापात्र ने की। मोमिता के साथ गायन में सुकांत नायक, मर्दल पर प्रशांत महाराना, वायलिन पर गोपीनाथ स्वैन, सितार पर लावण्या अंबाडे और बांसुरी पर सिद्धार्थ दल बेहरा ने साथ दिया।

दूसरी प्रस्तुति में पद्मश्री नलिनी कमलिनी का मनोहारी कथक नृत्य हुआ। कथक के बनारस घराने की प्रतिनिधि कलाकार नलिनी कमलिनी ने शिव स्तुति से कंदरिया महादेव को नृत्यांजलि अर्पित की। राग मालकौंस के सुरों में पागी और 12 मात्रा में निबद्ध ध्रुपद अंग की रचना चंद्रमणि ललाट भोला भस्म अंगार पर दोनों बहनों ने नृत्य की प्रस्तुति से शिव को साकार करने की कोशिश की। इसके पश्चात तीन ताल में कलावती के लहरे पर उन्होंने शुद्ध नृत्य की प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने पैरों की तैयारी के साथ सवाल-जवाब और विविधतापूर्ण लयकारी का प्रदर्शन किया। दोनों बहनों ने होली की ठुमरी पर भाव नृत्य भी किया। पंडित जितेंद्र महाराज द्वारा लिखी गई ठुमरी मत मारो श्याम पिचकारी पर उन्होंने बेहतरीन नृत्य प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में नीलाक्षी सक्सेना और शालिनी तिवारी ने भी साथ दिया। समापन में भैरवी में पद संचालन करके उन्होंने द्रुत तीन ताल का काम दिखाया। उनके साथ गायन में नलिनी निगम, तबले पर अकबर लतीफ, वायलिन पर अफजल जहूर, बांसुरी पर शिवम ने साथ दिया। होली का नृत्य संयोजन पंडित जितेंद्र महाराज का था।

मध्यप्रदेश की जानी मानी कथक नृत्यांगना डॉ. सुचित्रा हरमलकर ने भी अपने समूह के साथ खजुराहो के समृद्ध मंच पर खूब रंग भरे। रायगढ़ घराने से ताल्लुक रखने वाली सुचित्रा हरमलकर ने भी अपने नृत्य का आगाज शिव आराधना से किया। तीनताल में दरबारी की बंदिश- हर हर भूतनाथ पशुपति पर नृत्य करके उन्होंने शिव के रूपों को सामने रखने की कोशिश की। दूसरी प्रस्तुति में उन्होंने जटायु मोक्ष की कथा को नृत्य भावों में पिरोकर पेश किया। अगली प्रस्तुति में उन्होंने जयदेव कृत दशावतार पर ओजपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति दी। समापन उन्होंने द्रुत तीनताल में तराने से किया। इन प्रस्तुतियों में उनके साथ योगिता गड़ीकर, निवेदिता पंड्या, साक्षी सोलंकी, उन्नति जैन, फागुनी जोशी, महक पांडे और श्वेता कुशवाह ने साथ दिया। साज संगत में तबले पर मृणाल नागर, गायन में वैशाली बकोरे, मयंक स्वर्णकार और सितार पर स्मिता वाजपाई ने साथ दिया।

मणिपुरी नृत्य की जानी मानी कलाकार रोशली राजकुमारी के समूह ने भी खजुराहो नृत्य समारोह में अपनी प्रस्तुति दी। इस समूह ने भागवत परंपरा की पंचाध्यायी पर आधारित बसंत रास की प्रस्तुति दी। जयदेव की कृतियों पर मणिपुरी नर्तकों की टोली ने बड़े ही श्रंगारिक ढंग से यह प्रस्तुति दी। वास्तव में ये एक तरह की रासलीला थी जिसमें नर्तकों के हाव भाव और चाल बेहद संयमित थे। इस प्रस्तुति में संध्यादेवी, मोनिका राकेश्वरी देवी और साथियों ने नृत्य में सहयोग किया। जबकि गायन में लांसन चानू ने साथ दिया। संगीत राजकुमार उपेंद्रो सिंह और नंदीकुमार सिंह का था। समूह ने राकेश सिंह के निर्देशन में यह प्रस्तुति दी।

अंतिम पेशकश केरल के प्रसिद्ध कोच्चि कोडिअट्टम नृत्य की रही। केरल के कलाकार मार्गी मधु और उनके साथियों ने इस नृत्य के माध्यम से जटायु मोक्ष की लीला का प्रदर्शन किया। दरअसल यह नृत्य नाटिका थी। इसमें गुरु मार्गी मधु चक्यार ने रावण, इंदु ने सीता, हरि चकयार ने जटायु का अभिनय किया। इस प्रस्तुति में सीता हरण से लेकर जटायु मोक्ष तक की लीला का वर्णन था।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/प्रभात