दुनिया में बदलते युद्ध के तरीकों ने वैश्विक स्तर पर बढ़ाई हथियार जमा करने की होड़
- कई देशों में हथियार जमा करने के चलते भारत का भी रक्षा हथियार निर्यात बढ़ा
- अफ्रीका,म्यांमार, इजराइल, फिलीपींस और आर्मेनिया ने कई बड़े ऑर्डर किए
नई दिल्ली, 22 अगस्त (हि.स.)। रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-हमास संघर्ष के मद्देनजर कई देशों में हथियार जमा करने की होड़ के चलते भारत का रक्षा निर्यात बढ़ा है। भारत का रक्षा उद्योग अब 90 से ज्यादा देशों को हथियारों की आपूर्ति करता है और 10 साल के भीतर निर्यात में 30 गुना से ज्यादा की वृद्धि हुई है। भारत से रक्षा आयात के मामले में अमेरिका के साथ ही अफ्रीका, म्यांमार, इजराइल, फिलीपींस और आर्मेनिया देश आगे बढ़े हैं और कई बड़े ऑर्डर भी किये हैं।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीपरी) की वार्षिक रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा किया गया है कि रूस-यूक्रेन और हमास-इजरायल संघर्ष ने हथियारों का जखीरा बढ़ाने के लिए कई देशों को आकर्षित किया है। इसी वजह से नए-नए हथियार बनाने वाले देशों का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। यूरोपियन देशों ने प्रमुख हथियारों का आयात लगभग दोगुना (+94 प्रतिशत) कर दिया है। चीन का परमाणु शस्त्रागार जनवरी, 2023 में 410 वॉरहेड से बढ़कर जनवरी, 2024 में 500 हो गया है। इसके अलावा नौ परमाणु हथियार संपन्न देश अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजराइल अपने-अपने परमाणु शस्त्रागार का लगातार आधुनिकीकरण कर रहे हैं।
भारत से निर्यात किए जाने वाले उपकरणों में छोटे हथियारों से लेकर लड़ाकू तेजस विमान, ब्रह्मोस मिसाइल, स्नाइपर राइफल, बुलेटप्रूफ जैकेट और हेलमेट, इलेक्ट्रॉनिक सामान, कई तरह के बख्तरबंद वाहन, हल्के टॉरपीडो, सिमुलेटर, ड्रोन और तेज हमला करने वाले जहाज शामिल हैं। केंद्र सरकार अफ्रीका और अन्य देशों को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिए आसान ऋण और कूटनीतिक प्रयास के साथ ध्यान केंद्रित कर रही है। अमेरिकी रक्षा कंपनी लॉकहीड मार्टिन हैदराबाद में टाटा समूह के साथ अपने दो संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत के लिए निर्यात बाजार को आगे बढ़ा रही है। लड़ाकू पंखों का उत्पादन अब भारत में भी किया जाता है। इनके अलावा अमेरिका भारत से कई अन्य उपकरण और विमानों के लिए विजन सिस्टम आयात करता है।
रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 2024-2025 की पहली तिमाही में निर्यात में 78 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। अप्रैल-जून में रक्षा निर्यात एक साल पहले की समान अवधि के 3,885 करोड़ रुपये से बढ़कर 6,915 करोड़ रुपये हो गया। रक्षा निर्यात पहले से ही बढ़ रहा था, क्योंकि 2023-2024 में यह रिकॉर्ड 21,083 करोड़ रुपये (लगभग 2.63 बिलियन डॉलर) पर पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2022-2023 के 15,920 करोड़ रुपये से 32.5 प्रतिशत अधिक है। केंद्र सरकार ने 2020 में अगले पांच वर्षों के लिए एयरोस्पेस एवं रक्षा वस्तुओं और सेवाओं में 35 हजार करोड़ रुपये का निर्यात लक्ष्य रखा था। यह 2025 तक रक्षा विनिर्माण में 1.75 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हासिल करने की सरकार की योजना का हिस्सा था।
म्यांमार भारत से मुख्य रूप से फ्यूज और गोला-बारूद खरीद रहा है। हाल के वर्षों में इजराइल और आर्मेनिया जैसे देश भी महत्वपूर्ण खरीदार बनकर उभरे हैं।इजराइल अपनी सहायक कंपनी के जरिये छोटे हथियारों के साथ-साथ कुछ फ्यूज और गोला-बारूद के अलावा ड्रोन संरचनाओं का आयात करता है। भारत ने फिलीपींस के साथ ब्रह्मोस मिसाइल, आर्मेनिया के साथ आर्टिलरी गन और वायु रक्षा प्रणालियों के लिए कुछ बड़े सौदे किए हैं। भारतीय रक्षा वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक अमेरिका है, जो भारत के कुल रक्षा निर्यात का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा है। अमेरिकी कंपनियां ऑफसेट प्रतिबद्धताओं के हिस्से के रूप में भारत से सालाना एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य के सिस्टम, सब सिस्टम और पार्ट्स खरीदती हैं।
अमेरिकी कंपनी बोइंग ने 2016 में टाटा समूह के साथ हैदराबाद में टाटा बोइंग एयरोस्पेस लिमिटेड (टीबीएएल) नामक एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया। यह कंपनी बोइंग के एएच-64 अपाचे हेलीकॉप्टर के लिए एयरो स्ट्रक्चर बनाती है, जिसमें फ्यूजलेज, सेकेंडरी स्ट्रक्चर और वर्टिकल बॉक्स शामिल हैं। इसके अलावा बेंगलुरु स्थित डायनामेटिक टेक्नोलॉजीज कंपनी अमेरिकी चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टरों के लिए रैंप और पिछले हिस्से का निर्माण कर रही है। साथ ही पी-8 पोसिडॉन समुद्री टोही विमान के लिए पावर और मिशन कैबिनेट भी बना रही है। बेंगलुरु स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और रॉसेल टेकसिस कंपनी कई अमेरिकी हेलीकॉप्टरों और लड़ाकू विमानों के लिए वायर हार्नेस और इलेक्ट्रिकल पैनल बनाती है।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत निगम