भारत नंबर एक नहीं, विश्वगुरु बनना चाहता है : बीआर शंकरानंद

 




- राष्ट्रीय शोध पत्र लेखन पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित

भोपाल, 4 अक्टूबर (हि.स.)। भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बीआर शंकरानंद ने कहा कि हम सभी को भारत को पहले आत्मनिर्भर, श्रेष्ठ फिर विकसित और इसके बाद विश्वगुरु बनाना है। भारत विश्व में नंबर एक नहीं बनना चाहता, बल्कि विश्वगुरु बनना चाहता है। उन्होंने कहा कि गुरु दूसरों का विनाश नहीं करता। वह सबके मंगल के लिए कार्य करता है।

शंकरानंद शुक्रवार को यहां एलएनसीटी विश्वविद्यालय में आयोजित 'राष्ट्रीय शोधपत्र लेखन पुरस्कार वितरण समारोह' में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। भारतीय शिक्षण मंडल युवा आयाम द्वारा विजन फॉर विकसित भारत 'विविभा 2024' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय शोध पत्र लेखन प्रतियोगिता की श्रृंखला में मध्य भारत प्रांत के 60 शोधार्थियों को श्रेष्ठ शोध पत्र लेखन करने पर इस कार्यक्रम में पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम के विशेष अतिथि भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय महामंत्री प्रोफेसर भरत शरण सिंह, भारतीय शिक्षा मंडल (भाशिमं) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. संजय पाठक, भाशिमं के अखिल भारतीय सह कोष प्रमुख अजय धारकस, भाशिमं के मध्य भारत प्रांत अध्यक्ष डॉ नरेंद्र थापक, प्रांत मंत्री डॉ शिव कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता एलएनसीटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. अनुपम चौकसे ने की।

शंकारानंद ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को श्रेष्ठ बनाना है तो हम सभी को एक साथ जुड़कर कार्य करना आवश्यक है। हमें भारत को शक्तिशाली बनाने की इच्छा रखते हुए भी विश्व गुरु बनाना है। प्रतिस्पर्धा से द्वेष आ सकता है। प्रतिस्पर्धा होती है तो विनाश सुनिश्चित होता है। आज नंबर एक बनने की प्रतिस्पर्धा में विश्व में युद्ध हो रहे हैं। भारत को विश्व गुरु बनने से विश्व को विनाश से बचाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि 1922 से 1947 तक स्वतंत्रता के लिए एक आग प्रज्वलित हो रही थी। वैसी ही आग 2047 तक भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए हर भारतीय के हृदय में धधकना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश को भारत केंद्रित विचार से चलना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद भारत, भारत के रूप में रहा ही नहीं, यह इंडिया बन गया। इंडिया दैट इस भारत। श्रीलंका और म्यांमार जैसे छोटे देश अपने विचारों पर केंद्रित हो गए लेकिन अपने यहां ऐसा नहीं हो सका। भारत का सम्मान विश्व में हो इसके लिए हमें जागना आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि विकसित भारत बनाने में प्रत्येक शिक्षा संस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका होना चाहिए। शिक्षा संस्थानों के माध्यम से विज्ञान और अध्यात्म में संतुलन होना चाहिए। पाठ्यक्रमों को भारत केंद्रित बनाना आवश्यक है। पाठ्यक्रम में यदि भारत नहीं है तो वह अर्थहीन है।‌ हमें भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम को मूल्य आधारित, रामत्व से युक्त बनाने की आवश्यकता है। विजन फॉर विकसित भारत देश में आंदोलन की तरह चल रहा है। देशभर के विद्यार्थी शोध पत्र लिख रहे हैं। भारत के बच्चे अद्वितीय हैं। भारत केंद्रित गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान करते हुए प्रत्येक युवा कौशल युक्त और योग्य बनना चाहिए। इससे निश्चित ही 2047 तक भारत का विश्व गुरु बनना तय है।

कार्यक्रम में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ संजय पाठक ने भारतीय शिक्षण मंडल एवं 'विविभा 2024' की जानकारी दी। उन्होंने युवाओं से भारतीय शिक्षण मंडल से जोड़ने का आह्वान किया। इससे पूर्व कार्यक्रम को भारतीय शिक्षण मंडल के मध्य भारत प्रांत के अध्यक्ष प्रो. नरेंद्र थापक एवं प्रांत मंत्री डॉ शिव कुमार शर्मा ने भी संबोधित किया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में संगठन गीत शेखर करहारकर, ध्येय श्लोक सत्यम मिश्रा, ध्येय वाक्य का वचन राजू पाटिल ने किया। भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांत मंत्री डॉ शिव कुमार शर्मा ने अंत में सभी का आभार व्यक्त किया।

सभी शोधार्थियों को किया पुरस्कृत

उत्कृष्ट शोध आलेख लिखने वाले सभी चयनित शोधार्थियों को अतिथियों द्वारा मंच पर पुरस्कृत किया गया। चयन समिति की डॉक्टर संगीता जौहरी को भी सम्मानित किया गया।

दूसरे सत्र में शोधार्थियों से हुआ संवाद

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में सभी चयनित शोधार्थियों से भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बीआर शंकरानंद में संवादकिया। इस अवसर पर शोधार्थियों द्वारा अपने शोध कार्य से संबंधित उत्कृष्ट जानकारियां प्रदान की गई।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर