भारत में जल, जंगल, जमीन ही नहीं, गो संरक्षण भी जरूरीः डॉ. रविकांत पाठक

 


नई दिल्ली, 17 नवंबर (हि.स.)। भारत में जल, जंगल और जमीन के मुद्दों के साथ गो संरक्षण अहम मसला है। गो संरक्षण से इन सभी का समाधान संभव है। यह बात भारत उदय : द राइज ऑफ भारत मूवमेंट के संस्थापक और स्वीडन के गोथनबर्ग विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय वैज्ञानिक और एसोसिएट प्रोफेसर (डॉ.) रविकांत पाठक ने कही।

स्वीडन से बुंदेलखंड के संक्षिप्त प्रवास पर पहुंचे डॉ. पाठक ने नई दिल्ली में 'हिन्दुस्थान समाचार' से इन मुद्दों पर बातचीत की। उनके भीतर जैविक खेती से जल, जंगल और जमीन बचाने की लौ धधक रही है। वह इस समय दुनिया के पहले जल विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए बेचैन हैं। इस विश्वविद्यालय की स्थापना उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में करने की घोषणा वह पहले ही कर चुके हैं। बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के छेड़ी बसायक गांव में जन्मे पाठक ने आईआईटी मुंबई से लेकर हांगकांग, अमेरिका और स्वीडन तक का सफर तय किया है। फिलहाल वह स्वीडन में रहते हैं, मगर उनका दिल भारत के लिए धड़कता है। वह खेती और उसकी उर्वरता, गोशाला, आहार, आरोग्य से आगे की बात करते हैं। वह बच्चों में राष्ट्रीय चरित्र और नेतृत्व गढ़ने की बात करते हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि अगर खेती रहेगी, तो वन रहेगा। भू-जल बचेगा, गायों की रक्षा होगी, हरियाली रहेगी और प्रदूषण खत्म होगा। वह कहते हैं कि भारत उदय गुरुकुल की परियोजना बच्चों को आर्थिक आत्मनिर्भर बनाने के साथ नैतिकता का पाठ पढ़ाकर उन्हें विश्व नागरिक बनाने का प्रयास करेगी।

उन्होंने कहा कि, साल में दो-चार बार उत्तर प्रदेश आने पर सड़कों पर घूम रही लावारिस गायों और बैलों को देखकर पीड़ा होती है। यह मुद्दा विधानसभा चुनाव में भी गूंज चुका है। हालांकि यह मुद्दा देशव्यापी है, फिर भी भारत उदय प्रथम चरण में उत्तर प्रदेश के हर जिले में गाय अभयारण्य की स्थापना के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने कहा कि इन्हें गतिशील केंद्रों के रूप में डिजाइन किया गया है। यह केंद्र शहरी और ग्रामीण हितों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध होंगे। सड़कों पर घूम रहे गोधन के लिए यह केन्द्र आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित आश्रय स्थल होंगे। इनके गोबर से जैव-सीएनजी का उत्पादन कर ऊर्जा संकट से देश को उबारने की कोशिश की जाएगी। दूध एवं डेयरी उत्पादन केंद्र स्थापित कर स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जाएगा। इससे निश्चिततौर पर क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। इसका एक प्रकल्प बागवानी विकास केंद्र भी होंगे।

डॉ. पाठक ने बताया कि लगभग 20 हजार गायों और बैलों को रखने के लिए प्रत्येक अभयारण्य में लगभग 500 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी। हम सरकार से सिर्फ बंजर भूमि की मांग करते हैं। भारत उदय इस भूमि को उपजाऊ बनाकर सरकार के ग्रामीण भारत को समृद्ध बनाने की को यात्रा में सहभागी बनेगा।

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद/सुनील