वनाग्नि को लेकर उत्तराखंड सरकार के रिस्पॉन्स से हाई कोर्ट संतुष्ट, अब भविष्य के लिए रणनीति बनाने को कहा
- हाई कोर्ट में वनाग्नि के मामले पर हुई सुनवाई, सितंबर तक स्थगित
देहरादून, 17 मई (हि.स.)। उच्चतम न्यायालय नैनीताल ने शुक्रवार को उत्तराखंड में जंगल की आग के मामले पर सुनवाई की। राज्य का प्रतिनिधित्व भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उत्तराखंड राज्य के डिप्टी एडवोकेट जनरल जतिंदर कुमार सेठी ने किया। केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति का प्रतिनिधित्व परमेश्वर एडवोकेट ने किया। भारत की एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया। सुनवाई में राज्य की मुख्य सचिव के साथ प्रधान मुख्य वन संरक्षक और अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक मौजूद थे।
शुरुआत में मुख्य सचिव के कार्यालय के तैयार रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत की गई। इसमें वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कैंपा निधियों के उपयोग का विवरण दिया गया था जिसमें दिखाया गया था कि संपूर्ण निधि का उपयोग विभिन्न अग्नि रोकथाम और अग्निशमन उपायों के लिए किया गया था। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए राष्ट्रीय कैंपा से स्वीकृत 10 करोड़ रुपये में से 5.25 करोड़ रुपये अग्निशमन उपायों के लिए जारी किए गए। शेष 4.75 करोड़ रुपये अगले फायर सीजन 2025 से पहले सर्दियों के महीनों में वनाग्नि की रोकथाम और नियंत्रण कार्यों के लिए निर्धारित किए गए हैं।
राज्य ने अदालत को अग्नि शमन के लिए एसडीएमएफ निधि जारी करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न प्रयासों को भी दिखाया। आपदा प्रबंधन सचिव ने डीएम को अग्निशमन उपकरणों की आपातकालीन खरीद के लिए प्रति जिले 50 लाख रुपये आवंटित करने और आवश्यकता पड़ने पर एनडीआरएफ-एसडीआरएफ की सहायता लेने के आदेश जारी किए थे। इसके अलावा आग के मौसम के दौरान वाहनों के साथ कर्मियों की तैनाती के लिए अनटाइड फंड का उपयोग किया गया है। यह भी कहा गया कि राज्य में नियमित बैठकें होती थीं। इसमें मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, वन, सचिव, आपदा प्रबंधन और सरकार के सभी विंग जैसे अग्निशमन सेवा, पुलिस, एसडीआरएफ व आपदा क्यूआरटी आदि के निर्देश शामिल होते थे। जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) ने वन अग्नि शमन के लिए लाइन विभागों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एसडीएम की अध्यक्षता में आईआरटी का गठन किया।
राज्य ने न्यायालय को यह भी बताया कि वन विभाग में क्षेत्रीय स्तर पर रिक्त पदों को भरने के लिए तत्काल कदम उठाए जा रहे हैं तथा उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (यूकेपीएससी) और उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) इस पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।
राज्य ने चीड़ की पत्तियों से लगने वाली आग को नियंत्रित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी और बताया कि राज्य सरकार ने चीड़ की पत्तियों (पाइन नीडल) व अन्य बायोमास से बिजली उत्पादन के लिए नीति अधिसूचित की है। चीड़ की पत्तियों के संग्रह को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय संग्रहकर्ताओं को तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से भुगतान किया जा रहा है तथा इसे पारगमन शुल्क से छूट दी गई है। इसके अलावा चीड़ की पत्तियों को एकत्र कर एनटीपीसी के साथ मिलकर ब्रिकेट-पेलेट बनाने तथा बिजली उत्पादन के लिए इकाइयों को आपूर्ति की जा रही है।
चुनाव ड्यूटी के लिए अधिकारियों की तैनाती के संबंध में बताया गया कि वन्यजीव अभ्यारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों से कोई भी क्षेत्रीय अधिकारी तथा वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी चुनाव ड्यूटी में नहीं लगे थे। यहां तक कि चुनाव ड्यूटी में लगे वन विभाग के कुछ क्षेत्रीय अधिकारियों ने भी वनाग्नि नियंत्रण गतिविधियों को फिर से शुरू कर दिया था।
न्यायालय को वनों में लगने वाली आग को बुझाने के लिए अग्निशमन कर्मियों को उपलब्ध कराए गए अग्निशमन उपकरणों का विवरण भी दिखाया गया तथा राज्य में 1429 क्रू स्टेशनों की फील्ड क्रू टीमों को 40184 विभिन्न उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं। इसके अलावा विश्व बैंक से सहायता प्राप्त उत्तराखंड Disaster preparedness and resilient project के तहत 27151 अग्निशमन उपकरण (फायर प्रॉक्सिमिटी सूट, जूते, हेलमेट, अग्निरोधी दस्ताने, पानी की बोतलें, हेड लाइट, प्राथमिक चिकित्सा किट और जीपीएस) खरीदे जा रहे हैं।
राज्य के रिस्पॉन्स से संतुष्ट होकर और उसकी सराहना करते हुए न्यायालय ने सभी पक्षों से एक साथ बैठकर भविष्य के लिए रणनीति बनाने को कहा तथा मामले की सुनवाई सितंबर 2024 तक स्थगित कर दी।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/प्रभात