खाद्य संरक्षण की दिशा में जल्दी ही विकिरण उपचार के लिए शुरू किए जाएंगे 50 और संयंत्र
नई दिल्ली, 23 सितंबर (हि.स.)। किसानों के फसल उत्पादन को जल्दी खराब होने से बचाने और उसकी सेल्फ लाइफ को तीन गुना तक करने वाली तकनीक विकिरण उपचार के लिए केन्द्र सरकार और 50 संयंत्र स्थापित करने जा रही है। इनमें से पहली बार मोबाइल खाद्य विकरणन प्रसंस्करण संयंत्र भी शामिल होंगे। मौजूदा समय में देश में 35 खाद्य विकरण संयंत्र हैं जिसमें से तीन केन्द्र सरकार के अधीन हैं।
खाद्य विकरणन विभाग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रदीप मुखर्जी ने बताया कि खाद्य पदार्थों के उपचार में मुख्य रूप से तीन प्रकार के विकिरण का उपयोग होता है- गामा किरणें, एक्स रे किरणें तथा फास्ट इलेक्ट्रान (फोटोन) ये विकिरण खाद्य पदार्थों में आवेशधारी अणुओं का निर्माण करते हैं, जिसके कारण इन्हें आयनिक विकिरण भी कहा जाता है। इस पद्धति में खाद्यानों को संक्रमित करने वाले जीवाणुओं एवं कीड़ों का आंक्षिक या पूर्ण नाश कर देती है, क्योंकि विकिरण प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से इनके डीएनए को प्रभावित करते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी से बात करते हुए प्रदीप मुखर्जी ने बताया कि खाद्य विकरणन प्रसंस्करण संयंत्र को किसानों तक पहुंचाने के लिए मोबाइल संयंत्र की शुरुआत की जा रही है ताकि किसान इस सुविधा से अपनी फसल उत्पादन को सड़ने और नुकसान से होने बचा सकें और ज्यादा मुनाफा कमा सकें। इस पद्धति का इस्तेमाल कर वे अपने फलों के उत्पाद की सेल्फ लाइफ डेढ़ साल तक बढ़ा सकते हैं। इसके लिए उन्हें करीब एक रूपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान करना होता है। वहीं, मोटे अनाज के लिए यह कीमत 8-10 रुपये प्रति किलो हो सकती है। उन्होंने कहा कि विकिरण के द्वारा पदार्थ की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आती है। विकिरण उपचार से अब हिलसा मछली के सेल्फ लाइफ बढ़ाई जा रही है।इसके साथ आलू, प्याज, हरे पत्तेदार सब्जी, गोभी, गरम मसाले, अनाज, दालों, मसालों में विकिरण पद्धति का इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकार अब इस दिशा में लोगों को ट्रेनिंग भी उपलब्ध करा रही है।
उल्लेखनीय है कि खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि दुनिया में हर वर्ष कुल खाद्य उत्पादन का 25 से 30 प्रतिशत जीवाणु, फफूंदी, कीड़े एवं अन्य परजीवियों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है, जिसे अब नई विकिरण उपचार विधि से कम किया जा सकता है।
खाद्य विकरणन तकनीक का इतिहास-
खाद्य संरक्षण में विकिरण के उपयोग का प्रथम उल्लेख 1895 में एक जर्मन मेडिकल जर्नल में मिलता है। उसी वर्ष रेडियोधमिर्ता की खोज की गई थी। वर्ष 1916 में वैज्ञानिक जी.ए.रनर ने एक्स. किरणों को तंबाकू पत्तियों में पाए जाने वाले कीड़ों, अंडा तथा लार्वा को नष्ट करने तथा सिगरेट की गुणवत्ता सुधारने में उपयोगी पाया। वर्ष 1920 में बी.स्वाटेज ने इन्हीं किरणों को सूअर के मांस से ट्राइकिनेला नामक परजीवी को दूर करने में प्रभावी पाया। भारत में इस दिशा में प्रयास वर्ष 1950 में ही भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुंबई में शुरू हुआ तथा 1967 में एक प्रयोगशाला की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य भारतीय परिदृष्य में कृषि, पशु एवं मत्स्य उत्पादों में होने वाली भंडारण को रोकने के लिए विकिरण की उपयोगिता पर शोध करना था।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी