आज भी लोक जीवन में समाहित हैं प्रभु श्रीराम के आदर्श : कृष्णगोपाल
- संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने अयोध्या उत्सव का किया शुभारंभ
अयोध्या, 23 दिसंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने शनिवार को श्री मणिराम दास छावनी स्थित श्रीराम सत्संग भवन में तीन दिवसीय अयोध्या उत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि हम सभी आनंद के वातावरण में हैं। वर्षों से हम इस क्षण की प्रतीक्षा कर रहे थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मंदिर का निर्माण हो रहा है। 22 जनवरी 2024 को मंदिर के उद्घाटन की तिथि निश्चित है। सारे विश्व में हिंदू समाज उत्साहित व आनंदित है।
बहुभाषी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि पिछले हजार वर्षों की यात्रा में कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने यहां के मंदिरों का विध्वंश किया। हिंदुओं पर अत्याचारों की पराकाष्ठा की गई, किंतु राम का सहारा लेकर हिंदू समाज लड़ाई लड़ता रहा। कभी शांत होकर तो कभी उग्र होकर। हिंदुओं को इस्लाम स्वीकारने के लिए विवश किया गया। तीर्थ यात्रा पर टैक्स लगे। फिर, धर्म को सुरक्षित रखने का यत्न करना पड़ा। लोग मंदिर छोड़कर घर में सिमट गए थे और ऐसी विकट परिस्थिति से जो सबको उबारकर बाहर ले आया, उनका नाम श्रीराम है।
उन्होंने कहा कि वैदिक मन्त्रों का दर्शन, लोक भाषा में आने लगा। हर भाषा में रामायण आ गई। हर क्षेत्र ने रामायण का गायन शुरू कर दिया है। रामचरितमानस मिला। राम, लोक जीवन में समा गए। यहां तक कि राम नाम के नमस्कार से लेकर पूरा जीवन राममय हो गया।
उन्होंने कहा कि राम का आदर्श लोगों ने स्वीकार किया। राम जैसे भाई की कामना की जाने लगी। प्रभु श्रीराम सारीखे एक पत्नी व्रती को आदर्श माना जाने लगा। यहां तक कि सर्वाधिक शहरों के नाम में ’राम’ ऊपर आ गए। कथा, कहानी, नाटक में भी राम, लोक-रंजन में व्याप्त हो गये। राम, धर्म के ज्ञाता के रूप में विख्यात और साक्षात विग्रहमान हुए। ऐसा कोई दूसरा आदर्श नहीं जो समाज की गहराइयों तक बैठ पाया हो।
डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि भगवान श्रीराम ने 14 वर्ष की अल्पायु में पृथ्वी को राक्षसों से विहीन करने की प्रतिज्ञा ली। राज्याभिषेक की खुशी की विशालता की कोई परवाह नहीं थी। यह केवल राम ही कर सकते हैं। चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के बड़े राजकुमार ने राजतिलक को भुलाकर, केवट से नाव मांगना मुनासिब समझा। राम के मन में केवट के प्रति आदर है तो केवट के मन में राम के प्रति अधिकार का भाव। इतना ही नहीं, राम को गिद्धराज जटयु मिलता है। यह किसी पक्षी का नहीं, बल्कि मनुष्य का विचार है, जो एक स्त्री को बचाने के लिए पूरे सामर्थ्य के साथ लड़ता है। जटायु का आदर्श बताता है कि किसी महिला के सम्मान के लिए लड़ना चाहिए न कि उसे छोड़कर भाग जाना चाहिए।
डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि श्रीराम ने मानव जाति ही नहीं सृष्टि को मित्रता और वचन निभाने का पाठ पढ़ाया। सुग्रीव को राज्य देकर अपने वचन का पालन किया तो लक्ष्मण से सुग्रीव का राज्याभिषेक करावाकर 14 वर्षों तक वनगमन का दिया गया वचन भी निभाया। राम ने इस 14 वर्षों में कभी भी किसी नगर में प्रवेश नहीं किया। विभीषण के साथ भी कुछ ऐसा ही व्यवहार सामने आया। भारत में आज भी विभीषण के अतिथि सत्कार को माना जाता है। यहां के लोकभाव में आज भी यह दृष्टव्य है। पारसी लोग अतिथि के रूप में भारत में आए। यहां आदरणीय हो गए। आज किसी भी देश के लोगों को भारत में सम्मान दिया जाता है। सम्मान देने का यह दर्शन भी प्रभु श्रीराम ने ही स्थापित किया।
संस्कार भी राम की ही देन
सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि राम अपने आदर्शों के कारण ही जनमन में समाए हैं। राम-रावण युद्ध के दौरान रावण मारा गया। विभीषण अंतिम संस्कार को तैयार नहीं थे, लेकिन प्रभु श्रीराम के समझाने के बाद बैर खत्म हुआ और विभीषण अंतिम संस्कार को तैयार हुए। आज भी यह भारतीय समाज में स्थापित है। जिनके संबंध बिगड़े होते हैं, वे भी किसी की मृत्यु के बाद अपना बैर समाप्त करने को इस दुख की घड़ी में उसके घर जाते हैं।
लालच के त्याग की दी सीख
राम ने भारतीय समाज को लालच न करने का सबक दिया। सोने की लंका को देखकर भी उनके मन में लालच न आना इसका जीता जगाता उदाहरण है। उन्होंने समाज को आदर्श दिया कि दूसरे का सोना भी हमारे लिए मिट्टी है। यही वजह है कि भारतीय राजाओं ने भी किसी दूसरे देश के लोगों को लूटने का प्रयास नहीं किया। महाराज विक्रमादित्य जैसे शक्तिशाली राजा के मन में भी लूटने जैसा कार्य करने का कुत्सित विचार मन में नहीं आया।
मंदिर तोड़े गये, लेकिन लोकमन से नहीं निकल सके राम
उन्होंने कहा कि आतताइयों ने भारत के अनेक मठ-मंदिरों को नष्ट किया, लेकिन भारत के जन जन में स्थापित श्रीराम के आदर्शों की वजह से उन्हें किसी के मन से नहीं निकाल सके। इसका परिणाम है कि हम आज लगभग 500 वर्षों की लंबी यात्रा के बाद श्रीराम मंदिर बना रहे हैं। अब हर व्यक्ति के आध्यात्मिक भाव को पुनर्जीवित किया जा सकेगा। विश्व को एक नई दिशा दे सकेंगे। राम का दर्शन भी यही है। सबके सुख की मंगल कामना करना। प्रभु श्रीराम का यह मंदिर इन सभी भावनाओं का प्रतीक है।
हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/महेश/आमोदकांत/पवन