भारत का बाघ संरक्षण मॉडल पूरी दुनिया में सराहा जाता है : भूपेंद्र यादव

 




- केंद्रीय वन मंत्री ने किया सुंदरबन में वन्यजीव संरक्षण पर मंथन, बाघ और हाथी संरक्षण की राष्ट्रीय रणनीतियों की समीक्षा

कोलकाता, 21 दिसंबर (हि.स.)। बाघ संरक्षण प्राधिकरण की 28वीं बैठक में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत का बाघ संरक्षण मॉडल पूरी दुनिया में सराहा जाता है। उन्होंने वैज्ञानिक आधार पर प्रबंधन, बड़े भूभाग स्तर की योजना, स्थानीय समुदायों की भागीदारी, राज्यों के बीच समन्वय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बेहद जरूरी बताया। बैठक में 18 अप्रैल को हुई पिछली बैठक के फैसलों की पुष्टि की गई और उन पर की गई कार्रवाई की समीक्षा की गई।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री की अध्यक्षता में रविवार को पश्चिम बंगाल के सुंदरबन टाइगर रिजर्व में बाघ और हाथी संरक्षण से जुड़ी दो राष्ट्रीय बैठकों का आयोजन हुआ। इन बैठकों में देश भर के वरिष्ठ अधिकारी, वैज्ञानिक, वन्यजीव विशेषज्ञ और विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए। उद्देश्य था बाघ परियोजना और हाथी परियोजना की प्रगति की समीक्षा करना और भविष्य की संरक्षण रणनीतियों को मजबूत करना।

बैठक में बाघ अभयारण्यों के सामने आ रही चुनौतियों पर चर्चा के साथ ही बाघ संरक्षण योजनाओं को मंजूरी दी गई। मानव और बाघ संघर्ष को कम करने के लिए अपनाई जा रही तीन स्तर की रणनीति पर जोर दिया गया। वहीं, टाइगर रिजर्व के बाहर बाघों के प्रबंधन से जुड़ी परियोजना की प्रगति पर भी चर्चा हुई। कई राज्यों में कर्मचारियों की कमी, वित्तीय दबाव, आवास क्षेत्र की क्षति और बाहरी प्रजातियों की समस्या को गंभीर बताते हुए आवश्यक निर्देश दिए गए।

चीता परियोजना के विस्तार और नए क्षेत्रों में इसके मूल्यांकन, बाघों के स्थानांतरण, शिकार प्रजातियों की संख्या बढ़ाने, भूभाग प्रबंधन योजना और मांसाहारी वन्यजीवों के स्वास्थ्य प्रबंधन से जुड़े प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर सहमति बनी। इसके साथ ही राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति को भेजे गए प्रस्तावों पर बाघ संरक्षण प्राधिकरण की भूमिका की भी समीक्षा हुई।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि देश में छठे चरण के अखिल भारतीय बाघ आकलन का काम तेजी से आगे बढ़ रहा है। नवंबर 2025 से जमीनी सर्वे शुरू हो चुके हैं। अलग अलग क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। चीता परियोजना के तहत दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना जैसे देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी लगातार बढ़ रहा है। बैठक में उच्चतम न्यायालय के हालिया आदेशों और उनके बाघ संरक्षण पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी विचार किया गया।

इसी क्रम में हाथी परियोजना की 22वीं संचालन समिति की बैठक हुई। इसमें पिछली बैठक के फैसलों पर हुई कार्रवाई की पुष्टि की गई। दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत के लिए तैयार क्षेत्रीय कार्ययोजनाओं की स्थिति पर प्रस्तुति दी गई। इसमें राज्यों के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत पर जोर दिया गया।

बैठक में अखिल भारतीय समन्वित हाथी गणना की प्रगति की समीक्षा की गई। इसे वैज्ञानिक और साक्ष्य आधारित योजना के लिए बेहद अहम बताया गया। नीलगिरी हाथी रिजर्व के लिए तैयार आदर्श संरक्षण योजना और बंदी हाथियों के डीएनए प्रोफाइलिंग के काम पर भी चर्चा हुई। इसका मकसद हाथियों के कल्याण और वैज्ञानिक प्रबंधन को मजबूत करना है।

देश में मानव और हाथी संघर्ष की स्थिति को लेकर भी व्यापक समीक्षा की गई। संघर्ष के कारणों, उसे कम करने के उपायों और राज्यों में मुआवजा व्यवस्था की स्थिति पर विचार हुआ। इसके साथ ही हाथी आबादी के आकलन के तरीकों की समीक्षा, असम के रिहु चिरांग हाथी रिजर्व में एकीकृत संरक्षण रणनीतियों और भविष्य की कार्ययोजनाओं पर चर्चा की गई।

बैठक में यह भी तय हुआ कि सभी हाथी रिजर्व में प्रबंधन प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया जाएगा, जिसके लिए वन विकास निधि से सहायता दी जाएगी। बांधवगढ़ क्षेत्र में हाथी गलियारों, आवास उपयोग और संघर्ष के संवेदनशील इलाकों पर एक विशेष अध्ययन का प्रस्ताव भी रखा गया।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री ने छह प्रकाशनों का विमोचन किया। इनमें चीता परियोजना की प्रगति पर आधारित पुस्तक, बाघ संरक्षण प्राधिकरण की पत्रिका का नया अंक, भारत में बाघ संरक्षण की संस्थागत यात्रा पर पुस्तिका, देश के बाघ अभयारण्यों से जुड़े रोचक तथ्य और कहानियां, बंदी हाथियों के प्रबंधन की सर्वोत्तम प्रक्रियाओं पर मार्गदर्शिका और हाथी परियोजना की तिमाही पत्रिका का दिसंबर 2025 अंक शामिल है।

बैठक के अंत में यह दोहराया गया कि केंद्र सरकार वैज्ञानिक सोच, तकनीक के उपयोग, राज्यों के बीच सहयोग और समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण के जरिए बाघ और हाथियों के लिए सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। -------------------

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर