वार्षिकी 2025 : मप्र के छिंदवाड़ा-बैतूल में जहरीले कफ सिरप ने लील ली मासूम जिंदगियां, भारी पड़ी लापरवाही

 


भोपाल, 29 दिसम्‍बर (हि.स.)। नए साल महज़ दो दिन बचे हैं, लेकिन बीतते वर्ष की विदाई के साथ मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही को भुलाया नहीं जा सकता है। इस बड़ी चूक ने 24 मासूम जिंदगियों को छीन लिया, जो व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। जहरीली कफ सिरप पीने से हुई बच्चों की मौत ने पूरे प्रदेश और देश को गहरे सदमे में डाल दिया है।

यह हादसा केवल कुछ परिवारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी त्रासदी बनकर उभरा है जिसने स्वास्थ्य तंत्र, दवा निगरानी व्यवस्था और प्रशासनिक जिम्मेदारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, छिंदवाड़ा और बैतूल के कुछ इलाकों में बच्चों को सामान्य सर्दी-खांसी के इलाज के लिए कफ सिरप दिया गया था। दवा लेने के कुछ ही समय बाद बच्चों की हालत तेजी से बिगड़ने लगी। उल्टी, बेहोशी और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखाई दिए। परिजन बच्चों को अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन कई मासूमों की जान नहीं बचाई जा सकी। कफ सिरप की जांच में कई चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, सिरप में कई जहरीले तत्व पाए गए, जो बच्चों की गुर्दे की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर मौत का कारण बने।

जहरीले कफ सिरप से 24 बच्चों की मौत

जहरीले कफ सिरप के सेवन से 24 बच्चों की मौत हुई है, जिनमें ज्यादातर 5 साल से नीचे के बच्चे शामिल हैं। कई बच्चों को नागपुर एम्‍स और अन्य मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। अस्पतालों में इलाजरत बच्चों में से सबसे छोटे रोगी कूनाल यादववंशी थे, जिन्हें 115 दिनों तक इलाज के बाद घर भेजा गया। हालांकि उन्हें स्थायी दृष्टि से संबंधित समस्या हुई है। इसके अलावा भी कुछ बच्चों ने जीवन रक्षक इलाज के बाद स्वस्थ होने के संकेत दिखाए, लेकिन गंभीर जटिलताओं के साथ कुछ अभी भी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई

इस घटना के बाद मध्य प्रदेश पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त कार्रवाई जारी है। अब तक कुल 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें सिरप बनाने वाली कंपनी के मालिक, डॉक्टर और मेडिकल स्टोर ऑपरेटर शामिल हैं। इनमें फार्मा कंपनी श्रीसन, स्रेसन मेडिकल्स के मालिक एस. रंगनाथन को गिरफ्तार किया गया। साथ ही डॉक्टर प्रवीण सोनी, जिसने यह सिरप बच्चों को दिया था, उसको भी पुलिस ने हिरासत में लिया। इस मामले के बाद जहरीले सिरप पर बैन लगाया गया और आपूर्ति रोक दी है। इस मामले की जांच के लिए एसआईटी/विशेष जांच दल बनाया गया है जो उत्पादन प्रक्रियाओं और आपूर्ति श्रृंखला की समीक्षा कर रहा है। वहीं, नियंत्रण अधिकारियों की निलंबन व स्थानांतरण जैसे प्रशासनिक कदम भी उठाए गए हैं।

परिवारों पर टूटा दुखों का पहाड़

इस घटना ने उन माता-पिता को तोड़कर रख दिया, जिन्होंने भरोसे के साथ अपने बच्चों को दवा दी थी। गांवों और कस्बों में शोक का माहौल छा गया। लोगों में गुस्सा और पीड़ा साफ नजर आई। यह हादसा यह भी दिखाता है कि कैसे गरीब और ग्रामीण परिवार सस्ती या सरकारी दवाओं पर निर्भर रहते हैं और जब वही दवाएं जानलेवा साबित हो जाएं, तो पूरे सिस्टम से विश्वास उठ जाता है। यह मामला न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था में लापरवाही का सबूत है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और औषधि निगरानी में सुधार की सख्त आवश्यकता को भी उजागर करता है।

दवा आपूर्ति श्रृंखला सवालों के घेरे में

छिंदवाड़ा-बैतूल की यह त्रासदी दवा निर्माण से लेकर वितरण तक की पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े करती है। क्या दवा तय मानकों के अनुसार बनी थी? क्या बाजार में आने से पहले उसकी गुणवत्ता की सही जांच हुई थी? और क्या नियामक एजेंसियों ने अपनी जिम्मेदारी निभाई? यदि किसी भी स्तर पर सख्त निगरानी होती, तो शायद यह हादसा टल सकता था। यह मामला औषधि नियंत्रण विभाग और स्वास्थ्य प्रशासन की गंभीर चूक की ओर इशारा करता है।

मुआवजे की घोषणा

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हर मृत बच्चे के परिवार को 4 लाख रुपये आर्थिक सहायता के तौर पर दिये जाने की घोषणा की। इसके अलावा राज्य सरकार इलाजरत बच्चों के इलाज के सारे खर्चे उठाने का वादा किया। हालांकि केवल मुआवजा देना पर्याप्त नहीं माना जा सकता। जरूरत इस बात की है कि दोषियों को साफ तौर पर चिन्हित कर सख्त सजा दी जाए और पूरी जांच प्रक्रिया पारदर्शी हो।

तकनीक के दौर में कैसे पहुंची जहरीली दवा?

जब देश दवा ट्रेसबिलिटी, डिजिटल रिकॉर्ड और ई-हेल्थ सिस्टम को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब यह सवाल और भी गंभीर हो जाता है कि आखिर जहरीली दवा आम लोगों तक कैसे पहुंच गई। विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक दवा निर्माण इकाइयों, थोक विक्रेताओं और खुदरा दुकानों पर निरंतर निगरानी नहीं होगी, ऐसे हादसों का खतरा बना रहेगा।

भरोसे का संकट और बड़ी चुनौती

इस घटना के बाद दवाओं को लेकर आम लोगों में डर और अविश्वास बढ़ गया है। खासकर बच्चों के इलाज को लेकर माता-पिता की चिंता और गहरी हो गई है। यह भरोसे का संकट सरकार और स्वास्थ्य तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है, जिसे केवल आश्वासनों से नहीं, बल्कि ठोस सुधारों से ही दूर किया जा सकता है।

एक चेतावनी, जो अनसुनी नहीं होनी चाहिए

छिंदवाड़ा और बैतूल में जहरीले कफ सिरप की त्रासदी एक कड़ी चेतावनी है। यह हमें याद दिलाती है कि स्वास्थ्य व्यवस्था में थोड़ी-सी भी लापरवाही कितनी भारी पड़ सकती है। अब समय आ गया है कि सरकार गहराई से आत्ममंथन करें, दवा नियंत्रण कानूनों को मजबूत बनाएं, निगरानी तंत्र को कड़ा करें और हर स्तर पर जवाबदेही तय करें। तभी यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि भविष्य में किसी भी बच्चे की इलाज के दौरान जान खतरे में न पड़े।

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हिन्दुस्थान समाचार / उम्मेद सिंह रावत