मन्दिर सनातनियों के शक्ति, सामर्थ्य व मानवता को विकसित करने का केन्द्र : नरेन्द्रानंद सरस्वती

 


प्रयागराज, 23 सितम्बर (हि.स.)। मन्दिर मात्र उपासना स्थल ही नहीं, अपितु हम सनातनियों के शक्ति, सामर्थ्य एवं मानवता के श्रेष्ठ गुणों को विकसित करने के केन्द्र हैं। इतिहास साक्षी है कि जब तक मन्दिर आधारित व्यवस्था के अनुरूप इस देश के सनातनधर्मी समाज का आचार-विचार चल रहा था, दुनिया की हर ताकत से यहाँ का समाज विजय श्री का वरण करता रहा। किन्तु जैसे ही यह व्यवस्था कमजोर हुई, देश पराधीनता के दंश को भुगतने को विवश हो गया।

यह बातें श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने शुक्रवार की सायं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में सनातन भाव जागृति “राष्ट्र निर्माण के काम-दो घण्टे मन्दिर के नाम“ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही।

उन्होंने कहा कि सनातनधर्मियों के शक्ति, सामर्थ्य के लिए मन्दिर कितने महत्वपूर्ण हैं, यह मुगल इस्लामिक आतताइयों ने बहुत भली भांति समझ लिया था। इसलिए मुगल आतताइयों ने मन्दिरों का बहुत ही बर्बरता पूर्वक ध्वंश किया।

शंकराचार्य ने आगे कहा कि आज आवश्यक है कि हम सभी मन्दिर केन्द्रित व्यवस्था को प्रभावशाली बनाने की दिशा में तीव्रगति से काम करें।

इस अवसर पर महन्त स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाराज, स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ महाराज, स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती महाराज, ऋषि केशरवानी, स्वाती गुप्ता, भावना गौर, सुधा शुक्ला, प्रीति शर्मा, बीएन मिश्रा, संगीता सिंह, सीमा सिंह, आनन्द मिश्र, सौरभ, जयप्रकाश पाण्डेय, मयंक द्विवेदी, नीलिमा सिंह, कार्यक्रम के आयोजक अमित शर्मा सहित सैकड़ों सनातनधर्मी उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त