तुर्किये में एर्दोगन की सत्ता को करारा झटका, मेयर चुनाव में इस्तांबुल, अंकारा सहित पांच बड़े शहरों में विपक्षियों की जीत
अंकारा, 1 अप्रैल (हि.स.)। दो दशक से ज्यादा समय से तुर्किये की सत्ता पर काबिज रेचेप तैयप एर्दोगन को करारा झटका लगा है। रविवार को देशभर में हुए मेयर चुनाव में उनकी पार्टी एकेपी को भारी हार का सामना करना पड़ा है। तुर्किये की मुख्य विपक्षी पार्टी ने राजधानी अंकारा, इस्तांबुल और इजमिर समेत पांच बड़े शहरों में जीत हासिल की है।
तुर्किये के राष्ट्रपति के रूप में तीसरा कार्यकाल हासिल करने के एक साल के भीतर ही बड़े शहरों में मेयर चुनाव में हुई इस हार ने 70 वर्षीय एर्दोगन की हुकूमत को हिलाकर रख दिया है। उनकी पार्टी की इस हार से राजनीतिक विश्लेषक भी हैरान हैं। राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद एर्दोगन शहरों के राजनीतिक नेतृत्व पर अपने वर्चस्व को लेकर निश्चिंत थे लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की हार ने उन्हें आईना दिखा दिया है।
खास बात यह है कि इंस्ताबुल में एर्दोगन ने खुद प्रचार किया था लेकिन यहां सेक्युलर विपक्षी दल सीएचपी के एकरम इमामोगोलु चुनाव जीत गए। चुनाव प्रचार के दौरान एर्दोगन ने इंस्ताबुल में नए युग की शुरुआत का वादा किया था लेकिन एक करोड़ साठ लाख आबादी वाले इस शहर ने विरोधी दल में विश्वास जताया। इसी तरह राजधानी अंकारा में एर्दोगन की पार्टी को शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा है। विपक्षी मेयर मंसूर यावस अपने प्रतिद्वंद्वी से इतने आगे निकल गए कि उन्होंने आधे से अधिक वोटों की गिनती से पहले ही अपनी जीत की घोषणा कर दी।
स्थानीय चुनावों में खराब प्रदर्शन को स्वीकार करते हुए एर्दोगन ने कहा कि वैसा नहीं हुआ जैसा उन्हें उम्मीद थी। तुर्किये टेलीविजन पर आधी रात में दिए अपने संबोधन में एर्दोगन ने हार स्वीकार करते हुए कहा कि उनकी सरकार लोगों की इच्छा का सम्मान करेगी। हम लोगों की इच्छा का सम्मान करेंगे और अपनी गलतियों का आकलन करेंगे।
एर्दोगन ने राजनीतिक करियर की शुरुआत इस्तांबुल से ही की थी। साल 1994 में तुर्की के पूर्व प्रधानमंत्री नेजमेट्टिन एरबाकां की वेलफेयर पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर एर्दोगन इस्तांबुल के मेयर चुने गए और 1998 तक इस पद पर रहे। इसके बाद 2003 में प्रधानमंत्री बनकर इस पद पर तीन कार्यकाल बिताने के बाद 2014 में देश के राष्ट्रपति बने।
ताजा हार इसका संकेत है कि एर्दोगन की राजनीतिक पकड़ कमजोर होने लगी है। वह कई मौकों पर कह चुके हैं कि जो भी इस्तांबुल जीतता है, वही तुर्किये जीतता है।
हिन्दुस्थान समाचार/ संजीव