नेपाल : काठमांडू में संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने को लेकर विपक्ष की सियासत तेज

 




काठमांडू, 18 अक्टूबर (हि.स.)। दशहरा के 15 दिनों के लंबे अवकाश के बाद काठमांडू में एक बार फिर से राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। प्रमुख प्रतिपक्षी दल के नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल ने शुक्रवार को प्रतिपक्षी गठबंधन की बैठक बुलाकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई। विपक्षी दलों के गठबंधन ने सरकार को ज्ञापन पत्र सौंपने और संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग करने का फैसला किया है।

संसद भवन में विपक्षी दलों की संयुक्त बैठक में विपक्षी दलों की ओर से सरकार को ज्ञापन देने का निर्णय लिया गया और सुनवाई नहीं होने पर विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लिए जाने की जानकारी बैठक में सहभागी एकीकृत समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल ने दी है। उन्होंने कहा है कि यदि सरकार बाढ़ पीड़ितों के राहत-पुनर्वास और लोगों की आजीविका के प्रति गंभीर नहीं हुई तो संसद का विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लिया गया है।

इस बैठक में प्रचंड की तरफ से ताजा राजनीतिक स्थिति, सरकार की तीन महीने की कार्रवाई, प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान आदि के बारे में जानकारी दी गई। माओवादी के उप महासचिव शक्ति बस्नेत ने कहा कि बैठक में ओली सरकार के तीन महीने में ही विफल रहने का निष्कर्ष निकाला गया है। बैठक में प्रचण्ड ने आपदा के दौरान सरकार की तरफ से किए गए बचाव और राहत का काम भी पूरी तरह से असफल होने की बात कही है।

बैठक में सहभागी नेताओं के मुताबिक ओली सरकार पर जन सरोकारों की बजाय निजी और दलीय हितों को ध्यान में रखकर काम करने का आरोप लगाया गया है। इस मामले में विपक्षी दलों की ओर से सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए संयुक्त ज्ञापन पत्र देने का फैसला किया गया है। इसकी सुनवाई नहीं होने पर विपक्षी दल संसद का विशेष सत्र बुलाने पर सहमत हो गये हैं।

राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अध्यक्ष राजेंद्र लिंगदेन ने कहा कि सरकार के तीन महीने के कामकाज को देखने के बाद विपक्षी दलों ने निष्कर्ष निकाला कि यह पूरी तरह विफल रही है। लिंगदेन ने बताया कि यदि सरकार बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत, पुनर्वास, सार्वजनिक आजीविका, सुशासन और सामाजिक न्याय के प्रति गंभीर नहीं है तो विशेष सत्र बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि ओली सरकार के तीन महीने पूरी तरह से विफल रहे हैं। पूर्व सूचना के बावजूद सरकार ने जोखिम कम करने पर कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार बाढ़ पीड़ितों के राहत और पुनर्वास के प्रति भी उदासीन दिखी।

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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास