रंगमंच, रिश्ते और हकीकत की दास्तां बयॉ कर गया नाटक ’उम्मीद’
--’रंग आगाज नाट्योत्सव’ में गुरु-शिष्य के अनकहे रिश्तों की परतें खुलीं--दर्शकों ने महसूस की ’अश्वत्थामा’ सी पीड़ा और रिश्तों की गर्माहट
प्रयागराज, 28 दिसम्बर (हि.स.)। अक्सर जो दिखता है, सच उससे कहीं अलग होता है। रंगमंच की दुनिया की चमक-दमक के पीछे छुपे अकेलेपन और रिश्तों की नाजुक डोर को उजागर करते हुए नाटक ’उम्मीद’ का भावपूर्ण मंचन रविवार काे वीआरएसएस बॉक्स थिएटर में किया गया। ’रंग आगाज़ नाट्योत्सव’ की श्रृंखला में प्रस्तुत इस नाटक ने दर्शकों को गुरु-शिष्य के रिश्तों के एक नए आयाम से रूबरू कराया।
नाटक की कहानी एक बुजुर्ग रंगमंच निर्देशक सुधीर और उनके शिष्य अर्जुन के इर्द-गिर्द घूमती है। सुधीर, जिनका जीवन अब घर की जिम्मेदारियों और अकेलेपन में सिमट गया है, खुद को महाभारत के ’अश्वत्थामा’ की तरह पीड़ित और उपेक्षित महसूस करते हैं। कहानी में नाटकीय मोड़ तब आता है जब वर्षों बाद फिल्म स्टार बन चुका उनका शिष्य अर्जुन वापस लौटता है।
सुधीर का यह ताना कि “तुमने थिएटर को केवल सफलता की सीढ़ी मानकर इस्तेमाल किया“, दर्शकों के मन में एक कलाकार की टीस पैदा करता है। लेकिन जैसे-जैसे संवाद आगे बढ़ते हैं, हकीकत की परतें खुलती हैं। यह खुलासा कि अर्जुन ने थिएटर अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि गुरु के बेटी की विनती पर छोड़ा था। ताकि सुधीर अपने परिवार को समय दे सकें, और उधर सुधीर का अपनी बेटी की फीस के पैसे अर्जुन के बीमार पिता के इलाज में लगा देना-इन दो सच्चाइयों ने सभागार में उपस्थित हर दर्शक की आँखें नम कर दीं।
नाटक का समापन गिले-शिकवे दूर होने और रिश्तों की एक नई ’उम्मीद’ के साथ हुआ। बॉक्स थिएटर के अंतरंग माहौल में दर्शकों ने महसूस किया कि रंगमंच केवल अभिनय नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का जीवंत दस्तावेज है। नाटक में मंच पर उत्कर्ष जायसवाल, दिव्यांश राज गुप्ता व आशू ने अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया। मंच परे प्रकाश परिकल्पना सुजॉय घोषाल, संगीत एवं सह निर्देशन शुभम वर्मा एवं निर्देशन अजय मुखर्जी का रहा।
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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र