धुरंधर मूवी रिव्यू : देशभक्ति, हिम्मत और जज़्बे से भरपूर एक दमदार फ़िल्म

 




निर्देशक/लेखक: आदित्य धर

कलाकार: रणवीर सिंह, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, आर. माधवन, अर्जुन रामपाल, सारा अर्जुन, राकेश बेदी

अवधि: 196 मिनट

रेटिंग: 4

कई महीनों से दर्शकों के दिलों में एक बेचैनी थी, धुरंधर कब आएगी? पोस्टर से लेकर ट्रेलर तक, हर झलक ने ऐसा भरोसा जगाया था कि यह फ़िल्म कुछ असाधारण होने वाली है। और जब पर्दा उठा, तो साफ़ हो गया कि इंतज़ार पूरी तरह सफल रहा। आदित्य धर ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे उन चुनिंदा निर्देशकों में से हैं जो कहानी को सिर्फ दिखाते नहीं, उसे महसूस करा देते हैं। उनका विज़न बड़ा है, पर पकड़ बेहद बारीक।

फ़िल्म की नींव उन दो घटनाओं पर रखी गई है जिन्होंने भारत की सुरक्षा व्यवस्था को हिला दिया था 1999 का IC-814 हाईजैक और 2001 का भारतीय संसद हमला। इन घटनाओं को फ़िल्म में महज़ पृष्ठभूमि की तरह नहीं रखा गया, बल्कि इन्हीं से कहानी में वह तीखापन और संवेदनशीलता आती है जो दर्शकों को भीतर तक छू जाती है। शुरुआत से ही माहौल ऐसा बनता है मानो देश का इतिहास आँखों के सामने जीवंत हो उठा हो। आदित्य धर दिखाते हैं कि उस दौर में खुफ़िया एजेंसियों पर किस स्तर का दबाव था और देश के राजनीतिक गलियारों में कैसी घुटन भरी रणनीतियाँ चल रही थीं।

फ़िल्म में अंतरराष्ट्रीय आतंकी हमलों, 9/11 और भारत को निशाना बनाने की साज़िशों से जुड़ी ऑडियो-क्लिप्स और वास्तविक फुटेज का उपयोग बेहद असरदार अंदाज़ में हुआ है। ये दृश्य दर्शक को रोमांच से ज्यादा एक जागरूकता की अवस्था में ले जाते हैं—कि दुनिया कितनी अस्थिर है और भारत को किस स्तर पर अपनी ढाल मज़बूत रखनी पड़ती है। कहानी और असल घटनाओं का यह मिश्रण फ़िल्म को एक भयंकर वास्तविकता देता है, जो इसे आम एक्शन फ़िल्मों से कहीं ऊपर ले जाता है।

रणवीर सिंह इस फ़िल्म की धड़कन हैं। उनका हमज़ा दो हिस्सों में बँटा किरदार है, एक तरफ भावनात्मक घावों से भरा इंसान और दूसरी तरफ एक ऐसा ऑपरेटिव जो हर सांस में खतरा समेटे हुए चलता है।उनका तीखापन, गुस्सा, टूटा हुआ मन सब कुछ इतना स्वाभाविक है कि दर्शक उनसे दूर नहीं हो पाता। दूसरे हाफ़ में उनका रूप और भी खतरनाक, सधा हुआ और बिजली की तरह दमदार दिखता है।

अक्षय खन्ना एक ऐसे विलेन के रूप में उभरते हैं जो चीखता नहीं, लेकिन उसकी खामोशी ही डर पैदा करती है। संजय दत्त की स्क्रीन पर मौजूदगी बम के धमाके जैसी है, कच्ची ताकत, कच्चा असर।आर. माधवन कहानी का संतुलन हैं, गंभीर, गहरे और अनुभवी।अर्जुन रामपाल का शांत लेकिन खतरनाक एप्रोच कहानी को और रहस्यमयी बनाता है। सारा अर्जुन अपनी पहली ही फिल्म में बेहद परिपक्व दिखाई देती हैं।हर कलाकार कहानी के तनाव को और मजबूत करता है, जैसे हर मोहरा किसी बड़े खेल का हिस्सा हो।

196 मिनट लंबी इस फ़िल्म का हर सेकेंड मायने रखता है। एडिटिंग इतनी कसी हुई कि समय का एहसास नहीं होता।बैकग्राउंड स्कोर कहानी का इंजन है, धड़कनें तेज़ करता है, तनाव बढ़ाता है, और सीनों को नई ऊंचाई देता है।सिनेमेटोग्राफी बड़े कैनवास को इतने प्रभावशाली तरीक़े से पेश करती है कि कई दृश्य सीधे आंखों में बस जाते हैं। हिंसा दिखाई जाती है, पर उतनी ही जितनी कहानी की ज़रूरत है। असली हिंसा है भावनाओं, चालों और विश्वासघात में।

फ़िल्म का अंत ऐसा है जो दर्शक को खामोश छोड़ देता है और मन में सिर्फ एक सवाल उठता है, अब आगे क्या?फ़िल्म वहीं खत्म होती है जहाँ कहानी का दांव सबसे बड़ा लगता है, और यही जगह पार्ट टू के लिए परफ़ेक्ट बिल्ड-अप तैयार करती है।

ज्योति देशपांडे, लोकेश धर और आदित्य धर ने B62 स्टूडियो व जियो स्टूडियोज के साथ मिलकर एक ऐसी दुनिया रची है जिसमें धमाका भी है, रिसर्च भी है, भावनाएँ भी हैं और तकनीकी कौशल भी। बड़े सेट्स हों या लोकेशंस हर फ्रेम दिखाता है कि यह फ़िल्म दिल से बनाई गई है। यदि आप एक्शन, राजनीति, इतिहास, इमोशन और बड़े पर्दे पर धमाके की तलाश में हैं धुरंधर आपका जवाब है। यह फ़िल्म न सिर्फ उम्मीदों पर खरी उतरती है, बल्कि और भी ऊपर उठ जाती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / लोकेश चंद्र दुबे