Pitru Paksha 2023: लाख कोशिशों के बाद भी विधि विधान से नहीं कर पा रहे हैं पितरों का श्राद्ध, तो करें ये उपाय

पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध का काफी महत्व है। 16 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को इनका समापन होता है। इस दौरान तिथि अनुसार पितरों का श्राद्ध, तर्पण आदि किया जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और उनका आशीर्वाद हमेशा उनके परिवार के साथ रहता है। घर में खुशहाली और जीवन में तरक्की पाने के लिए पितरों का प्रसन्न रहना काफी जरूरी होती है। 

 

पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध का काफी महत्व है। 16 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को इनका समापन होता है। इस दौरान तिथि अनुसार पितरों का श्राद्ध, तर्पण आदि किया जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और उनका आशीर्वाद हमेशा उनके परिवार के साथ रहता है। घर में खुशहाली और जीवन में तरक्की पाने के लिए पितरों का प्रसन्न रहना काफी जरूरी होती है। 

जो लोग पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध नहीं करते, उन्हें ना सिर्फ पितृ दोष लगता है, बल्कि उनका जीवन तमाम तरह की परेशानियों से घिर जाता है। ऐसे में पितरों का श्राद्ध करना काफी जरूरी माना गया है। लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं चजो किसी कारण चाहकर भी वधि विधान से श्राद्ध कर्म नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए। आइए जानते हैं -

अगर आप लाख कोशिशों के बाद भी किसी कारणवश पितरों का विधि विधान से श्राद्ध नहीं कर पा रहे हैं तो परेशान होने की जरूर नहीं। सनातन धर्म में हर एक गलती के लिए कोई ना कोई उपाय या विधि जरूर मौजूद है। इस स्थिति से निकलने के लिए भी एक उपाय बताया गया है-

अगर न कर पाएं श्राद्ध तो करें ये उपाय
वैसे तो हर व्यक्ति पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म जरूर करता है, लेकिन अगर आप किसी कारणवश श्राद्ध कर्म नहीं कर पा रहे हैं तो आप ग्रंथो के अनुसार एक उपाय कर सकते हैं। आपको एक शांत स्थान पर जा कर नीचे बताए गए मंत्र का जाप करना है और पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करना है। मंत्र हैं –

न में अस्ति वित्तं न धनं च नान्यच्,

श्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्नतोस्मि ।

तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ,

कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ।।

इस मंत्र का अर्थ यह है – हे मेरे पितृगण, मेरे पास श्राद्ध के उपयुक्त धन और धान्य आदि मौजूद नहीं है। अतः शास्त्रों के अनुसार मैं एकांत स्थान पर बैठ कर पूरी श्रद्धा और भक्ति से अपने दोनों हाथ आकाश की ओर उठा दिए है।  आपसे आग्रह है कि कृपया आप मेरी श्रद्धा और भक्ति से ही तृप्त हो जाइए।  आपको बता दें कि इस तरीके से कोई भी व्यक्ति पितरों का श्राद्ध कर सकता है।