अयोध्या में स्वयं प्रकट हुए थे भगवान शिव, त्रेतायुग का है नागेश्वरनाथ ज्योतिर्लिंग, जानें मंदिर से जुड़ी ये खास बातें

अयोध्या नगरी विश्व की सबसे बड़ी अध्यात्मिक नगरी का केंद्र तो है ही इसी के साथ यह श्री राम का परम धाम भी है। रुद्रायमल ग्रंथ में शिव जी अयोध्या का महत्व पार्वती जी को बताते नहीं थकते। उन्होंने स्वयं कहा है कि मैं अयोध्या पुरी को अपने मस्तक पर धारण करता हूं।अयोध्या में एक बार भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए थे और जब जाने लगे तो भगवान राम के पुत्र कुश ने उनसे आग्रह किया कि है भोलेनाथ आप अयोध्या में ही रूक जाएं और यहीं रहें। भगवान राम में प्रीति रखने वाले शिव आखिर कैसे श्री राम के छोटे पुत्र कुश की बात का मान न रखते। उन्होंने कुश की बात स्वीकार कर ली और अयोध्या से फिर वापस नहीं गए। आइए जानते हैं भगवान शिव अयोध्या में किसकी प्रार्थना करने पर प्रकट हुए थे।

 

अयोध्या नगरी विश्व की सबसे बड़ी अध्यात्मिक नगरी का केंद्र तो है ही इसी के साथ यह श्री राम का परम धाम भी है। रुद्रायमल ग्रंथ में शिव जी अयोध्या का महत्व पार्वती जी को बताते नहीं थकते। उन्होंने स्वयं कहा है कि मैं अयोध्या पुरी को अपने मस्तक पर धारण करता हूं।अयोध्या में एक बार भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए थे और जब जाने लगे तो भगवान राम के पुत्र कुश ने उनसे आग्रह किया कि है भोलेनाथ आप अयोध्या में ही रूक जाएं और यहीं रहें। भगवान राम में प्रीति रखने वाले शिव आखिर कैसे श्री राम के छोटे पुत्र कुश की बात का मान न रखते। उन्होंने कुश की बात स्वीकार कर ली और अयोध्या से फिर वापस नहीं गए। आइए जानते हैं भगवान शिव अयोध्या में किसकी प्रार्थना करने पर प्रकट हुए थे।

सरयू स्नान करते समय गिरा था कुश भगवान का बाजूबंद
यह बात त्रेताकाल की है जब भगवान राम के पुत्र कुश अयोध्या नगरी के स्वर्ग द्वार जिसका वर्तमान नाम राम की पैड़ी है। वहां सरयू तट पर स्नान कर रहे थे। उस समय उनके हाथों में बंधा बाजूबंद नाग लोक की कन्या कुमुदनी को मिल गया और उसने वह बाजूबंद अपने पास रख लिया। काफी प्रयास करने के बाद जब बाजूबंद कुश जी को नहीं मिला तब उन्हें  इस बात का पता चला कि वह बाजूबंद नाग कन्या ने रख लिया है। इस बात से कुश को क्रोध आ गया और उन्होंने संपूर्ण नाग लोक के विनाश का श्राप दे दिया। 

कुश के क्रोध से नागलोक ने की भगवान शिव की आराधना
श्राप से बचने के लिए नाग लोक के अधिपति और कुमुदनी नाग कन्या के पिता कुमुद ने भगवान शिव की आराधाना की और पूरा वृतांत बताया। भगवान शिव तुरंत अयोध्या नगरी में प्रकट हुए और कुश जी से नाग लोक को क्षमा दान करने का आग्रह किया। भोलेनाथ को देख कर कुश जी का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने नाग लोक को दिया हुआ अपना श्राप भोलेनाथ के कहने पर वापस ले लिया। जब भगवान शिव अयोध्या नगरी से जाने लगे तब कुश जी ने महादेव से आग्रह किया की आप न जाएं और अयोध्या नगरी में ही वास करें। कुश जी के कहने पर भगवान शिव ने उनकी बात का मान रखा और ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हो गए। नाग लोक के देवता होने के कारण कुश जी ने भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग को नागों के नाथ अर्थात नागेश्वरनाथ के नाम से संबोधित किया और अयोध्या में स्वर्ग द्वार नाम के स्थान पर उन्हें विराजित किया।

नागेश्वर नाथ नाम से विख्यात हुए अयोध्या में महादेव
जिस जगह भगवान शिव प्रकट हुए थे वहां पर कुश जी नें शिवलिंग स्वयं स्थापित किया वहीं मंदिर अयोध्या धाम में नागेश्वरनाथ मंदिर नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज भी वही ज्योतिर्लिंग इस मंदिर में विराजित है। सोमवार के दिन यहां भक्त जन दर्शन करने आते हैं। शिवरात्रि, नागपंचमी और सावन के दिनों यहां लोखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर श्री राम जन्मभूमि से 2-3 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर उसी जगह पर है जहां अयोध्या दीपोत्सव कार्यक्रम का अयोजन होता है। भगवान नागेश्वरनाथ का दर्शन करना साक्षात महादेव के दर्शन करने के समान माना जाता है। मंदिर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में खुल जाता है।