काशी का अनोखा शिवालय : यहां सावन महीने में भी महादेव को नहीं चढ़ता जल, बंद रहता है मंदिर का कपाट
सावन का महीना बहुत ही पावन और भोलेनाथ का प्रिय माना जाता है। महादेव के प्रसन्न करने के लिए भक्त सावन महीने में उनकी अराधना करते है उन्हें जल अर्पित करते है। लेकिन, आज हम आपको वाराणसी के एक ऐसे अनोखे शिवालय के बारे में बताएंगे जहां सावन के महीने में भी मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। जी हां आप भी सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा शिव मंदिर है जो सावन में भी बंद हो और वहां महादेव को जल न चढ़ाया जाए। तो चलिए जानते है इस मंदिर के बारे में कि ये काशी में कहां स्थित है और इसके पीछे का क्या रहस्य है...
कहते है कि धर्म व अधात्म की नगरी कहते हैं कि काशी के कण-कण में शंकर का वास है, यहां किसी पत्थर पर भी शंकर मानकर अगर आपने जल अर्पित कर दिया तो आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। सावन में यहां बाबा विश्वनाथ पर जलाभिषेक के लिए लाखों लोग पहुंचते हैं। काशी की कोई ऐसी गली कोई ऐसा मोहल्ला नहीं होगा जहां के मन्दिरो में स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक न किया जाता हो, लेकिन काशी में महादेव का एक मंदिर ऐसा भी है जो साल में बस एक बार शिवरात्रि के दिन खुलता है। बाकी पूरे साल यह मंदिर बन्द रहता है। यह मंदिर है काशी विश्वनाथ के पिता महेश्वर महादेव का।
भगवान शिव के पिता के तौर माने जाते हैं महेश्वर महादेव
काशी विश्वनाथ मंदिर से करीब आधे किमी दूर चौक क्षेत्र के शीतला गली में इस मंदिर में स्थापित मन्दिर के बारे में ऐसा माना जाता है कि जब गंगा और काशी का कोई अस्तित्व नहीं था तभी से इस यह मन्दिर यहां स्थापित है। मान्यता है कि जब देवी देवता काशी आये तो यहां पर अपने पिता को न देख उन्हें बड़ी निराशा हुई। उनके मन मे एक भाव आया कि इस जगह पर उनके माता-पिता का भी वास होना चाहिए। तब देवों ने परमपिता महेश्वर का आह्वान किया और देवों के आह्वान पर यहां भगवान शिव के पिता के महेश्वर महादेव को स्थापित किया।
साल में बस एक दिन खुलता है कपाट
सिंधिया घाट के पास स्थित इस मंदिर के पुजारी के अुसार इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग ज़मीन से करीब 30 फीट नीचे है। शिवलिंग के ऊपर एक बड़ा सा छेद है उसी से लोग दर्शन करते हैं। इस मंदिर के अंदर जाने के रास्ते को साल में बस शिवरात्रि के दिन एक बार खोला जाता है और उस दिन विधिवत रुद्राभिषेक भी किया जाता है। दर्शनार्थियों की सुरक्षा को लेकर यह मंदिर बन्द रहता है क्योंकि मन्दिर परिसर का रास्ता काफी पुराना और जर्जर है इसलिए इसे साल में बस एक बार ही खोला जाता है। बाकी पूरे साल शिवलिंग के ऊपर छेद से ही महेश्वर महादेव का जलाभिषेक किया जाता है।
पुजारी का कहना हैं कि महेश्वर मंदिर और सिद्धेश्वरी माता का मंदिर काशी के सबसे पुराने मन्दिर हैं। महेश्वर महादेव शिवलिंग के ऊपर पंचमुखी शेषनाग भी छत्र के रूप में स्थापित हैं। इसका जिक्र काशी खण्ड में भी है।