शिव की नगरी में विराजते हैं पशुपतिनाथ, जीवन के सार को समझाता है ये मंदिर

भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों के आलावा नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ का मंदिर पूरे विश्व में भगवान शिव के लिए प्रसिद्ध है। काशी और काठमांडू का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है दोनों ही सिस्टर्स सिटी के नाम से जानी जाती हैं। काशी मंदिरों के कारण ही सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर है पशुपतिनाथ का। जी हां सही सुना आपने पशुपतिनाथ मंदिर इसका लघु रूप काशी में भी है जिसे नेपाली मंदिर के नाम से जाना जाता है। 

 

भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों के आलावा नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ का मंदिर पूरे विश्व में भगवान शिव के लिए प्रसिद्ध है। काशी और काठमांडू का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है दोनों ही सिस्टर्स सिटी के नाम से जानी जाती हैं। काशी मंदिरों के कारण ही सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर है पशुपतिनाथ का। जी हां सही सुना आपने पशुपतिनाथ मंदिर इसका लघु रूप काशी में भी है जिसे नेपाली मंदिर के नाम से जाना जाता है। 

ललिता घाट पर स्थित यह मंदिर साढ़े तीन सौ साल पुराना ये मंदिर काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर नेपाली वास्तु शैली में निर्मित भगवान शिव को समर्पित है और धार्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्व रखता है।

इस मंदिर के द्वार से लेकर दीवारों पर की गई नक्काशी बहुत ही खूबसूरत है। जो लड़कियों पर उकेरी गई है। उन पर कामुक काम मानव आकृतियां खजुराहो के मंदिरों की तरह बनाई गई है जिसके कारण इस मंदिर को काठ वाला मंदिर और मिनी खजुराहो भी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण काशी के अन्य शिवालयों की तरह पत्थर से नहीं बल्कि नेपाली लकड़ी के प्रयोग से हुआ है।

नेपाली लकड़ी से निर्मित यह मंदिर लोगों को खूब आकर्षित करता है। मंदिर के भीतर गर्भगृह में पशुपतिनाथ के रूप में शिवलिंग स्थापित हैं। माना जाता है कि काशी के इस पशुपतिनाथ के दर्शन से वही फल प्राप्त होता है जो नेपाल के पशुपतिनाथ के दर्शन से होता है।

नेपाल के राजा राणा बहादुर साहा ने करवाया था मंदिर का निर्माण
बता दें कि वर्ष 1800 से 1804 तक नेपाल के राजा राणा बहादुर शाह ने काशी में प्रवास किया। प्रवास के दौरान पूजा पाठ के लिए उन्होंने काशी में शिव मंदिर बनवाने का निर्णय लिया, वो भी नेपाल में बनाये गए पशुपतिनाथ मंदिर के जैसे। गंगा किनारे इस मंदिर का उन्होंने निर्माण शुरू कराया। इसी दौरान 1806 में उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद उनके बेटे राजा राजेन्द्र वीर विक्रम साहा ने इस मंदिर का निर्माण 1843 में पूरा कराया। बीच में कई वर्षों तक इस मंदिर का निर्माण रुका था। यही वजह थी कि इस मंदिर के पूरा होने में चालीस साल का समय लगा।

नेपाल से मंगाई गई थी लकड़ी
मंदिर का निर्माण नेपाल से आये कारीगरों ने किया था। मंदिर निर्माण में प्रयोग की गयी लकड़ी को भी राजा ने नेपाल से ही मंगवाया था। कारीगरों ने मंदिर में लगायी गयी लकड़ी पर बेहतरीन नक्काशी को उभारा। मंदिर के चारों तरफ लकड़ी का दरवाजा होने के साथ भित्ति से लेकर छत तक सबकुछ लकड़ी से बनाया गया है। इन लकड़ियों पर विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां उभारी गई हैं। जो देखने में बेहद आकर्षक लगती हैं।

नेपाल के मंदिरों की तर्ज पर ही इस मंदिर के बाहर भी एक बड़ा सा घण्टा लगाया गया है। वहीं दक्षिण द्वार के बाहर पत्थर का नंदी बैल भी है। यह मंदिर टैराकोटा, लकड़ी और पत्थर के इस्तेमाल से नेपाली वास्तु शैली में बनाया गया है। यह रचना नेपाली कारीगरों की उत्कृष्ट शिल्प कौशल को बखूबी दर्शाती है। नेपाली मंदिर होने की वजह से यहां के पुरोहित भी नेपाली है। पशुपतिनाथ का यह मंदिर सुबह काशी के अन्य मंदिरों के समय ही खुलता और बंद होता है। 

देखें वीडियो 

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