जानिए काशी के उस मंदिर की कहानी, जहां ना आरती होती है ना बजती है घंटी
बनारस की पहचान यहां के घाट और मंदिरों की वजह से है। काशी विश्वनाथ समेत यहां कई ऐसे मंदिर हैं, जो किसी ना किसी कारण से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ऐसा ही एक मंदिर वाराणसी के मणिकर्णिका तीर्थ पर स्थापित है। ये मंदिर भव्य आरती के लिए नहीं, बल्कि आरती ना होने की वजह से प्रसिद्ध है। यहां ना तो पूजा होती है और ना ही घंटी बजती है। इसके अलावा यह मंदिर पानी में डूबे रहने और झुके होने की वजह से भी आकर्षण का केंद्र है।
बनारस की पहचान यहां के घाट और मंदिरों की वजह से है। काशी विश्वनाथ समेत यहां कई ऐसे मंदिर हैं, जो किसी ना किसी कारण से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ऐसा ही एक मंदिर वाराणसी के मणिकर्णिका तीर्थ पर स्थापित है। ये मंदिर भव्य आरती के लिए नहीं, बल्कि आरती ना होने की वजह से प्रसिद्ध है। यहां ना तो पूजा होती है और ना ही घंटी बजती है। इसके अलावा यह मंदिर पानी में डूबे रहने और झुके होने की वजह से भी आकर्षण का केंद्र है।
आपको बता दें कि इस मंदिर का इतिहास लगभग 350 सालों से भी अधिक पुराना है। यह मंदिर पीसा की मीनार की तरह झुका हुआ है। यह मंदिर सैकड़ों साल से एक तरफ 9 डिग्री झुका हुआ है। कई सालों से पानी की मार झेल रहा मंदिर अभी भी वैसे ही खड़ा है। मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। यहां के लोग इसे काशी करवट भी कहते हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 15 शताब्दी में बनाया गया था। भारतीय पुरातत्व विभाग’ के मुताबिक़, इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था, जबकि रेवेन्यू रिकॉर्ड के मुताबिक़, सन 1857 में ‘अमेठी के राज परिवार’ ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
स्थानीय लोगों ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि उनकी एक दासी रत्ना बाई ने मणिकर्णिका घाट के सामने शिव मंदिर बनवाने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद निर्माण के लिए उसने अहिल्या बाई से पैसे उधार लिए थे। अहिल्या बाई मंदिर देख प्रसन्न थीं, लेकिन उन्होंने रत्ना बाई से कहा था कि वह इस मंदिर को अपना नाम न दे, लेकिन दासी ने उनकी बात नहीं मानी और मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रखा। इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन-पूजन हो पाएगी।
वहीं इस मंदिर को लेकर कई दंत कथाएं भी प्रचलित हैं। स्थानीय लोग जहाँ इसे काशी करवट कहते हैं तो वहीं कई लोग इस मंदिर को मातृऋण मंदिर भी कहते हैं। जानकारी के अनुसार, जिस समय राजा मानसिंग शहर में मंदिर और कुण्डों आदि का निर्माण करा रहे थे। उसी समय राजा के मंत्री ने अपनी मां रत्ना बाई के लिये घाट और एक शिव मन्दिर गंगा के किनारे बनवाया और अपनी माता को दिखाया और कहा की मां आज आपके दूध के कर्ज से मैं मुक्त हो गया। मां ने नाराज होकर कहा की जरा अपने मन्दिर की ओर देखो जब बेटे ने मंदिर की तरफ देखा तो वो टेढा हो चुका था। मन्दिर को मां का श्राप लग गया था और शास्त्रीय धार्मिक दृष्टि से टेढे मन्दिर मे पूजा करने से नुक्सान होता है। यही कारण है की इस रत्नेष्वर मन्दिर मे पूजा अर्चना नहीं की जाती है।
रत्नेशवर महादेव के इस मंदिर को जो भी देखता है उसकी आँखे फटी की फ़टी रह जाती है। लोग यकीन नहीं कर पाते कि आखिर 350 सालों के ऊपर तक ये मंदिर किस तरह से टिका हुआ है। इटली की लीनिंग टावर ऑफ पीसा वास्तुशिल्प का अदभुत नमूना है। जो अपने झुकने की वजह से ही दुनिया भर में मशहूर है और वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है। जबकि, पीसा की मीनार से भी खूबसूरत वास्तुशिल्प का नमूना काशी में मौजूद है।