खास है काशी का मल्लिकार्जुन मंदिर, लोग चढ़ाते हैं जीभ, मिलती है 84 योनियों से मुक्ति

काशी को महादेव की नगरी कहते हैं। ये ऐसी नगरी है, जहां 12 ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है, मल्लिकार्जुन महादेव का मंदिर। इसे वाराणसी का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। मान्यता है कि 84 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचने से इंसान को 84 लाख योनियों (जीवन) से मुक्ति मिल जाती  है। हालांकि 4 सीढ़िया दब जाने के बाद 80 सीढ़ियां ही अब बची हैं। इस मंदिर में दक्षिण भारत से दर्शन के लिए सबसे ज्यादा भक्त यहाँ पहुँचते हैं। ये मंदिर सिगरा महमूरगंज रोड पर स्थित है। यहाँ के पुजारी बृजेन्द्र कुमार ओझा ने बताया कि इस मंदिर को मल्लिकार्जुन और त्रित्पुरांतकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। 

 

काशी को महादेव की नगरी कहते हैं। ये ऐसी नगरी है, जहां 12 ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है, मल्लिकार्जुन महादेव का मंदिर। इसे वाराणसी का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। मान्यता है कि 84 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचने से इंसान को 84 लाख योनियों (जीवन) से मुक्ति मिल जाती  है। हालांकि 4 सीढ़िया दब जाने के बाद 80 सीढ़ियां ही अब बची हैं। इस मंदिर में दक्षिण भारत से दर्शन के लिए सबसे ज्यादा भक्त यहाँ पहुँचते हैं। ये मंदिर सिगरा महमूरगंज रोड पर स्थित है। यहाँ के पुजारी बृजेन्द्र कुमार ओझा ने बताया कि इस मंदिर को मल्लिकार्जुन और त्रित्पुरांतकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। 

शिवपुराण के अनुसार रामायण काल में श्रृंगी ऋषि का आश्रम था, जो राजा दशरथ के पुरोहित थे। कालांतर में कई ऋषियों ने यहां आकर तप किया। इसी के बाद यहां त्रित्पुरांतकेश्वर के रूप में मल्लिकार्जुन महादेव ज्योतिर्लिंग में स्वंयभू अवतरित हुए। आंध्रा में कृष्णा नदी के किनारे मल्लिकार्जुन महादेव विराजमान हैं।ये उन्हीं के प्रतिकृति हैं। कहा जाता है कि उस समय ऋषियों ने अपने तप से मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग के सामने कृष्णा नदी के जलस्रोत को प्रकट कर दिया था। आज भी इस नदी का पानी कृष्णा कूप में रहता है। इसी जल से मल्लिकार्जुन महादेव का अभिषेक भी किया जाता है।

इस मंदिर की खासियत यह है कि ऋषियों ने अपनी तप, साधना से गंगा की जलधारा को मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर तक मोड़ दिया। मंदिर के नीचे सुरंग है, जिसमें आज भी गंगा मौजूद हैं। जल सिद्धि वाले ऋषियों ने सुरंग में बैठकर गंगा की अराधना की थी। सुरंग का रास्ता बंद रखा जाता है। क्योंकि पहले लोग उस रास्ते से गंगा जी जाते थे। बाद में उनका पता नहीं चल पाया। इसके बाद उस सुरंग को बंद कर दिया गया। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में महादेव रात 12 बजे से भोर में चार 4 बजे तक विश्राम करने के लिए रोजाना आते हैं। 

अगर इस मंदिर की खासियत की बात की जाय तो यहां स्थापित मां काली को आज भी चढ़ावे के रूप में चांदी की जीभ चढ़ाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि जिस भी बच्चे की वाणी लड़खड़ाती हो, तुतलाना या चोट लगी हो तो यहां चांदी की जीभ चढ़ाने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भक्तों ने यहां जीभ चढ़ाकर तोतलेपन, हकलाहट, कोट-कचहरी बाधा, शादी संबंधी परेशानी से मुक्ति पाई है।

यह मंदिर हजारों साल पुराना है। भक्तों की आस्था इस मंदिर से बहुत ज्यादा है। जिन भक्तों की आस्था इस मंदिर से एकबार जुड़ जाती है वो फिर टूटती नहीं। शायद यही कारण है कि कई सालों से श्रद्धालु दर्शन के लिए इस मंदिर में बाबा का आशीर्वाद लेने आ रहे हैं। 

वहीं दर्शन के लिए आई मधुलिका ने बताया कि वो पिछले 10 सालों से यहाँ दर्शन के लिए आ रही हैं। इस मंदिर इतिहास के पन्नों में पहाड़ों वाले बाबा के नाम से वर्णित हैं। इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान राम यहां से जल लेकर बाबा का रुद्राभिषेक किया करते थे।

काशी के कण-कण में बसे शिव को भले ही हम किसी भी नाम से पुकारें लेकिन वो अपने भक्तों के लिए बाबा ही रहेंगे। श्रद्धालु पूरी श्रद्धा के साथ महादेव को पूजने के लिए काशी के सभी शिवलयों में पहुँचते हैं। खासकर सावन में तो ऐसा कोई शिवालय नहीं होगा जहां आपको भक्त नहीं मिलेंगे। काशी तो शिव की ही है। शिव यहां के राजा और कोतवाली बाबा कालभैरव। बिना कालभैरव की अनुमति के काशी में कोई रह नही सकता। भोले की नगरी में वैसे  हर समय शिव की महिमा का बखान करते भक्त मिल जाएंगे। हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ पूरे सावन भर काशी में हर-हर, बम बम, के बोल गूंजते रहते हैं.... 

देखें वीडियो 

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