Sawan Shivratri 2025 Date: सावन शिवरात्रि कब है? जानिए पूजा और तिथि का शुभ मुहूर्त
हिंदू धर्म में सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. इस दिन को मासिक शिवरात्रि के रूप में पूजा जाता है. सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि त्रियोदशी तिथि के दिन पड़ती है. श्रावण माह का पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. लेकिन सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का अलग और विशेष महत्व होता है. इस दिन हजारों की संख्या में भक्त शिव मंदिरों में भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
हिंदू धर्म में सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. इस दिन को मासिक शिवरात्रि के रूप में पूजा जाता है. सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि त्रियोदशी तिथि के दिन पड़ती है. श्रावण माह का पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. लेकिन सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का अलग और विशेष महत्व होता है. इस दिन हजारों की संख्या में भक्त शिव मंदिरों में भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
सावन माह की शिवरात्रि का दिन कांवड़ यात्रा का आखिरी दिन होता है. इस दिन को बेहद शुभ और फलदायी माना गया है.श्रावण माह की शिवरात्रि के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है और भक्त गंगाजल शिवलिंग पर अर्पित करते हैं. जानते साल 2025 में सावन माह में शिवरात्रि का पर्व किस दिन पड़ेगा.
सावन शिवरात्रि 2025 डेट
साल 2025 में सावन शिवरात्रि 23 जुलाई, 2025 बुधवार को पड़ेगी और इसी दिन शिवरात्रि का व्रत भी किया जाएगा. इस दिन निशिता काल में पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है. 24 जुलाई, 2025 गुरुवार के दिन निशिता काल में पूजा का समय रहेगा रात 12.07 से लेकर 12.48 मिनट तक रहेगा. इसकी कुल अवधि 41 मिनट की रहेगी. वहीं शिवरात्रि के व्रत का पारण अगले दिन यानि 24 जुलाई को सुबह 05.38 मिनट पर कर सकते हैं.
सावन शिवरात्रि 2025 व्रत विधि
इस दिन सुबह नित्य कर्म करने के बाद व्रत का संकल्प लें.
सुबह मंदिर जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और ‘ऊं नम: शिवाय:’ मंत्र का जाप करें.
सावन माह की शिवरात्रि के दिन भक्तों को एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए.
सावन शिवरात्रि में भगवान शिव की पूजा चार पहर होती है.
शिवरात्रि के दिन सन्ध्याकाल में पूजा का विशेष महत्व होता है.
साथ ही व्रत का पारण अगले दिन करना चाहिए.
भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के बीच के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए.
ऐसी मान्यता है कि शिव पूजा और पारण दोनों चतुर्दशी तिथि अस्त होने से पहले करना चाहिए.