सीईए ने हाइड्रो श्रेणी की स्वदेश में विकसित एसएचकेटी प्रौद्योगिकी को मान्यता दी

 




-सीईए ने अक्षय ऊर्जा नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई

नई दिल्ली, 26 नवंबर (हि.स.)। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने हाइड्रो श्रेणी की स्वदेश में विकसित सतही हाइड्रोकाइनेटिक टरबाइन प्रौद्योगिकी को मान्यता दी है। इसका उद्देश्‍य शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को प्राप्त करना, देश के बिजली क्षेत्र में सतत विकास को सुनिश्चित करना और नवाचारों को बढ़ावा देना है।

विद्युत मंत्रालय ने मंगलवार को जारी एक बयान में कहा कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को प्राप्त करने, देश के बिजली क्षेत्र में सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए नवाचारों को बढ़ावा देने तथा वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों की खोज करने के लिए हाइड्रो श्रेणी के तहत सतह हाइड्रोकाइनेटिक टर्बाइन (एसएचकेटी) प्रौद्योगिकी को अपनी मान्यता दे दी है।

मंत्रालय के मुताबिक एसएचकेटी विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के लिए व्यावहारिक रूप से शून्य खिंचाव हेड के साथ बहते पानी की गतिज ऊर्जा का उपयोग करता है, जबकि पारंपरिक इकाइयां आवश्यक 'हेड' के निर्माण के लिए बांध, डायवर्सन वियर और बैराज जैसे उपयुक्त सिविल संरचनाओं के निर्माण के माध्यम से पानी की संभावित ऊर्जा का उपयोग करती हैं। ये तकनीक एक ऐसा समाधान है, जो बिजली क्षेत्र को बेस-लोड, चौबीसों घंटे अक्षय ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने में सहायता मिल सकती है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां ग्रिड की पहुंच कम है। सरफेस हाइड्रोकाइनेटिक टर्बाइन को लगाना आसान है और यह लागत प्रभावी है, जिसकी उत्पादन लागत 2-3 रुपये प्रति यूनिट है। यह तकनीक अक्षय ऊर्जा के खरीदारों और निर्माताओं दोनों के लिए फायदा पहुंचाती है।

विद्युत मंत्रालय ने कहा कि एसएचकेटी तकनीक को अपनाना, भारत की नहरों, जलविद्युत टेल्रेस चैनल के व्यापक जल अवसंरचना को स्थायी ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोग करने की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। इस तकनीक में गीगावाट पैमाने पर अपार संभावनाएं हैं, जिसमें अक्षय ऊर्जा से लाभ लेने के बहुत से अवसर हैं, जिससे बिजली क्षेत्र का समग्र विकास होगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रजेश शंकर