अस्सी घाट पर बहुभाषी काव्यार्चन में गूंजे विविध भाषाओं के स्वर, में संस्कृत, बांग्ला और भोजपुरी की महिला रचनाकारों ने दी प्रस्तुति

वाराणसी। साहित्य और संस्कृति की नगरी वाराणसी के अस्सी घाट पर मंगलवार को सुबह बनारस आनंद कानन की ओर से बहुभाषी काव्यार्चन का आयोजन किया गया। इस माह के दूसरे मंगलवार को आयोजित इस काव्य-संगोष्ठी में संस्कृत, बांग्ला और भोजपुरी की महिला रचनाकारों ने अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृत विदुषी प्रो. मनुलता शर्मा ने की, जबकि शुभारंभ लोकगायक राजन तिवारी और श्रद्धा तिवारी की सरस्वती वंदना से हुआ। इसके बाद भोजपुरी कवयित्री संगीता श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं के माध्यम से होली के विभिन्न रंगों को जीवंत किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में शिव-पार्वती विवाह, गौना, नई दुल्हन की होली और देवर-भाभी के होली प्रसंगों को शामिल किया। साथ ही, उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी कविताओं के जरिए सवाल उठाए।
बांग्ला रचनाकार शुभ्रा चट्टोपाध्याय ने अपने काव्यपाठ में बंगीय पारिवारिक परिवेश में माता-पिता के महत्व को केंद्र में रखा। उन्होंने एक बेटी के उन सपनों का भी जिक्र किया जो वह ससुराल जाने से पहले देखती है। इसके साथ ही, उन्होंने पुनर्जन्म से जुड़ी एक मार्मिक कविता भी प्रस्तुत की, जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा।
संस्कृत विदुषी प्रो. मनुलता शर्मा ने अपनी रचना के माध्यम से भगवान शिव की अष्ट मूर्तियों का गुणगान किया। उन्होंने अपने संस्कृत गीत में यह संदेश दिया कि यदि सिर्फ सूर्य चमकता रहेगा तो जीवन में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आएंगी, और यदि सिर्फ रात होगी तो हम क्या-क्या खो देंगे। उनके इस भावपूर्ण विश्लेषण ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. नागेश शांडिल्य ने किया। शुरुआत में रचनाकारों का परिचय एवं अभिनंदन डॉ. वात्सला श्रीवास्तव ने कराया, जबकि रंगकर्मी राजलक्ष्मी मिश्रा ने रचनाकारों का माल्यार्पण किया। अंत में, श्रद्धा तिवारी और डॉ. वात्सला श्रीवास्तव ने रचनाकारों को प्रमाणपत्र प्रदान किए। एडवोकेट रुद्रनाथ त्रिपाठी ‘पुंज’ ने धन्यवाद ज्ञापन किया।